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एक गंधर्व का दु:स्वप्न

सांप्रदायिकता पर चोट करती रचना

Book review | एक गंधर्व का दु:स्वप्न
पुष्पपाल सिंह
ND
इतिहास में कुछ ऐसी घटनाएँ घटित होती हैं जो इतिहास बन कर जातीय स्मृति में ऐसे जख्म छोड़ती हैं जो जब-तब हरे होते रहते हैं। साहित्य और कला के विवेकवान स्वर बार-बार उन घटनाओं का आकलन अपनी दृष्टि से कर समाज को एक नई समझ प्रदान करते हैं। बाबरी मस्जिद ध्वंस, राम जन्मभूमि प्रकरण, गुजरात का गोधरा कांड तथा आपातकाल ऐसी ही घटनाएँ हैं जिन्हें हरीचरन प्रकाश अपने उपन्यास 'एक गन्धर्व का दुःस्वप्न' में अनूठे शिल्प में प्रस्तुत करते हैं।

एक प्रशासनिक अधिकारी के रूप में लेखक ने इन घटनाओं का यथार्थ बहुत निकट से देखा था कि किस प्रकार राजनीतिक नेतृत्व ने तंत्र व्यवस्था का प्रयोग कर स्थितियों को विकटतर बना दिया था। बाबरी मस्जिद ध्वंस और गोधरा के नर-संहार में उग्र हिंदूवाद ने जो भूमिका निभाई और राजनीतिक नेतृत्व ने उसे जो प्रश्रय दिया, उसकी सच्चाई को बड़े निर्मम रूप में उघाड़ा गया है।

उपन्यास की कथा भूमि लेखक का गृह जनपद फैजाबाद और उसके निकटस्थ अयोध्या और फैजाबाद के चार मील लंबे फासले पर पड़ने वाला टीकापाली गाँव है। टीकापाली का परिचय देते-देते कथा इतिहास और वर्तमान में संचरण करती हुई सांप्रदायिकता पर करारी चोट करती हुई उन घटनाओं की इंगित करती है जिनसे शताब्दियों से चली आ रही हिंदू मुस्लिम एकता के सूत्र विच्छिन्न हो रहे थे। 1946-47 ई. से ही किस प्रकार बाबरी मस्जिद की समस्या को चिंगारी से आग का रूप दिया गया इसका विवेचन म्युनिस्पिलिटी के सरकारी रिकॉर्डों के आधार पर किया गया है कि किस प्रकार कब्रिस्तान की जमीन पर कब्जा कर सांप्रदायिकता का जहर फैला दिया गया और वहाँ रामलीला का कामचलाऊ मंदिर खुल गया।

फिर उपन्यास की कथा आपातकाल पर केंद्रित होती है और शाह ए वक्त (जो एकाधिक थे) को तुष्ट और प्रसन्न करने के लिए जिस प्रकार नसबंदी गिरफ्तारियों दस-सूत्री से बढ़ कर बीस-सूत्री कार्यक्रमों आदि के लिए अफसरशाही और व्यवस्था का इस्तेमाल किया गया, उसका भुक्तभोगी प्रामाणिक चित्रण बहुत जानी-पहचानी घटनाओं को एक नया कोण दे देता है।

फिर उपन्यास बाबरी मस्जिद ध्वंस के समय की घटनाओं पर आता है, जब पूरा प्रशासनिक तंत्र, अर्द्धसैन्य बल सत्ता के इशारों पर कहर ढाते हुए मस्जिद तोड़ने में लगे हुए थे। इसी प्रसंग को वह राम प्रसाद बिस्मिल और अश्फाक उल्ला खाँ के फाँसी से पूर्व के आत्मकथनों को देकर भारतीय समाज की उन ताकतों के प्रयत्नों को रेखांकित करता है जिन्होंने सांप्रदायिकता सौहार्द बनाए रखने के लिए एक दृढ़ पीठिका निर्मित की थी।

इस उपन्यास का बहुत विशिष्ट पक्ष इसका कसा हुआ शिल्प है जो अपनी नई-नई कथा युक्तियों से एक आकर्षण बनाए रखता है और शैली में फंतासी तथा व्यंग्य का प्रयोग कर भाषा को एक नया लालित्य प्रदान कर छोटे से आकार में उपन्यास के कथ्य को सरस बनाकर एक विस्मृति देता है।

पुस्तक : एक गंधर्व का दु:स्वप्न
लेखक : हरीचरन प्रकाश
प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन
मूल्य : 225रुपए