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मेरा भारत क्यों महान है ?? जानिए भारत की ऋषि परम्परा

मेरा भारत क्यों महान है ?? जानिए भारत की ऋषि परम्परा - bharat ki rishi parampara
सारी मानवता कोरोना की त्रासदी से जूझ रही है ऐसे में वैज्ञानिकों ने जो सलाहें दी हैं वे भारतीय परम्पराओं से और शास्त्रों से उल्लेखित आचरणों के नियमों से बहुत मेल खाती है। जूते चप्पल घर के बाहर रखना, शुद्धि-अशुद्धि विचार, सुतक  व मुक्ति विचार, रसोईघर  में शुद्धि, जल वायु व अन्न को शुद्ध रखना।अनावश्यक वस्तु या व्यक्ति के स्पर्श से  बचना जैसी मर्यादाएं ही तो वैज्ञानिक आवरण ले कर प्रस्तुत  की जा रही है। तुलसी, हल्दी, काली मिर्च, लौंग और अदरक जैसी औषधियों में देवताओं का वास शायद हमें इनसे निकटता, इनके संरक्षण व इनके समुचित प्रयोग के लिए प्रेरित करने हेतु ही  ऋषि मुनियों ने सिखाया था। 
 
विज्ञान के अनेक अविष्कार जो पश्चिम की देन  माने जाते हैं उनका उल्लेख या उनके बारे में सैद्धांतिक विचार ही  सही पर भारत के चिंतन में मिलता अवश्य है। ऐसे कई ऋषि मुनि हुए हैं जिनके ग्रंथों पर विदेशों पर शोध कार्य हो रहे हैं। भले ही हम उन्हें भुला बैठे हों लेकिन विज्ञान के विकास में उनके योगदान का उल्लेख ही हमें  गौरव से भरने के लिए पर्याप्त है। इसीलिए तो भारत को महान कहा जाता है।  
1 महर्षि दधीचि
 
विज्ञान ने अब इतनी प्रगति अवश्य कर ली है कि वह रक्तदान, नेत्रदान से आगे बढ़ कर अंग दान तक चला गया है। ग्रीन कॉरिडोर बना कर मृत व्यक्ति के अंग दान दे कर किसी अन्य व्यक्ति की सहायता की जा सकती है लेकिन जन कल्याण के लिए केवल एक अंग नहीं अपितु पूरा शरीर दान देने का इतिहास भारत में महर्षि दधीचि के नाम है। वे महातपोबलि और शिव भक्त ऋषि थे।
 
संसार के लिए कल्याण व त्याग की भावना रख वृत्तासुर का नाश करने के लिए अपनी अस्थियों का दान करने की वजह से महर्षि दधीचि बड़े पूजनीय हुए। इस संबंध में पौराणिक कथा है कि एक बार देवराज इंद्र की सभा में देवगुरु बृहस्पति आए। अहंकार से चूर इंद्र गुरु बृहस्पति के सम्मान में उठकर खड़े नहीं हुए। बृहस्पति ने इसे अपना अपमान समझा और देवताओं को छोड़कर चले गए। देवताओं को विश्वरूप को अपना गुरु बनाकर काम चलाना पड़ा, किंतु विश्वरूप देवताओं से छिपाकर असुरों को भी यज्ञ-भाग दे देता था। इंद्र ने आवेशित होकर उसका सिर काट दिया। विश्वरूप त्वष्टा ऋषि का पुत्र था। उन्होंने क्रोधित होकर इंद्र को मारने के लिए महाबली वृत्रासुर को पैदा किया। वृत्रासुर के भय से इंद्र अपना सिंहासन छोड़कर देवताओं के साथ इधर-उधर भटकने लगे।
 
ब्रह्मादेव ने वृत्तासुर को मारने के लिए वज्र बनाने के लिए देवराज इंद्र को तपोबली महर्षि दधीचि के पास उनकी हड्डियां मांगने के लिये भेजा। उन्होंने महर्षि से प्रार्थना करते हुए तीनों लोकों की भलाई के लिए अपनी हड्डियां दान में मांगी। महर्षि दधीचि ने संसार के कल्याण के लिए अपना शरीर दान कर दिया। महर्षि दधीचि की हड्डियों से वज्र बना और वृत्रासुर मारा गया। इस तरह एक महान ऋषि के अतुलनीय त्याग से देवराज इंद्र बचे और तीनों लोक सुखी हो गए। 
2आचार्य कणाद
 
भारतीय चिंतन वृहद से सूक्ष्म, सूक्ष्म से वृहद की यात्रा करना भी सिखाता है। आधुनिक विज्ञान में डेल्टन और रदर फोर्ड जैसे वैज्ञानिकों ने अणु-परमाणु चिंतन नए रूप में प्रस्तुत किया लेकिन इसका उद्गम हमें महर्षि कणाद के वैशेषिक दर्शन में मिलता है। कणाद परमाणुशास्त्र के जनक माने जाते हैं। आधुनिक दौर में अणु विज्ञानी जॉन डाल्टन के भी हजारों साल पहले आचार्य कणाद ने यह रहस्य उजागर किया कि द्रव्य के परमाणु होते हैं। 
3 भास्कराचार्य 
 
आधुनिक युग में धरती की गुरुत्वाकर्षण शक्ति (पदार्थों को अपनी ओर खींचने की शक्ति) की खोज का श्रेय न्यूटन को दिया जाता है। किंतु बहुत कम लोग जानते हैं कि गुरुत्वाकर्षण का रहस्य न्यूटन से भी कई सदियों पहले भास्कराचार्यजी ने उजागर किया। भास्कराचार्यजी ने अपने ‘सिद्धांतशिरोमणि’ ग्रंथ में पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के बारे में लिखा है कि ‘पृथ्वी आकाशीय पदार्थों को विशिष्ट शक्ति से अपनी ओर खींचती है। इस वजह से आसमानी पदार्थ पृथ्वी पर गिरता है’।
4आचार्य चरक 
 
आधुनिक चिकित्सा विज्ञान हिप्पोक्रेटस की देन माना जाता है।लेकिन आज तक एलोपेथिक चिकित्सा शरीर के कई रहस्यों तक नहीं पहुंच सकी है। सर्दी-खांसी-बुखार का जितना व्यापक वर्गीकरण भारतीय चिकित्सकों ने किया था वहाँ तक विज्ञान अभी तक नहीं पहुंच पाया है।
 
‘चरकसंहिता’ जैसा महत्वपूर्ण आयुर्वेद ग्रंथ रचने वाले आचार्य चरक आयुर्वेद विशेषज्ञ व ‘त्वचा चिकित्सक’ भी बताए गए हैं। आचार्य चरक ने शरीरविज्ञान, गर्भविज्ञान, औषधि विज्ञान के बारे में गहन खोज की। आज के दौर की सबसे ज्यादा होने वाली डायबिटीज, हृदय रोग व क्षय रोग जैसी बीमारियों के निदान व उपचार की जानकारी बरसों पहले ही उजागर की। 
5 भारद्वाज
 
रावण  के पुष्पक विमान से पहले भी ऋग्वेद में विमानों का वर्णन है।वेदों में कहा गया है कि जल-थल के ऊपर  से जो उडान भरने में समर्थ हो उसे विमान कहा जाता है।-
 
 ‘य: समर्थो भवेत् गन्तुं स विमान इति स्मृत:’
 
 आधुनिक विज्ञान के मुताबिक राइट बंधुओं ने वायुयान का आविष्कार किया। वहीं हिंदू धर्म की मान्यताओं के मुताबिक कई सदियों पहले ऋषि भारद्वाज ने विमानशास्त्र के जरिए वायुयान को गायब करने के असाधारण विचार से लेकर, एक ग्रह से दूसरे ग्रह व एक दुनिया से दूसरी दुनिया में ले जाने के रहस्य उजागर किए।

इस तरह ऋषि भारद्वाज को वायुयान का आविष्कारक भी माना जाता है भारद्वाज के विमान शास्त्र के आधार पर विश्व में पहला विमान 1895 में बम्बई में शिवकर बापूजी तलपड़े ने बना कर 1500 फीट ऊंचा उड़ाया था।

तलपड़े ने अपने विमान को ‘मरुतसखा’ नाम दिया था।लेकिन बाद में उनकी इस उपलब्धि को भुला दिया गया। मजेदार बात यह है की तलपड़े के जीवन पर आधारित एक फिल्म सन  2015 में जारी हुई थी, जिसका नाम ‘हवाईजादा’था। जिसमें आयुष्मान खुराना ने काम किया है।
6कण्व
 
वैज्ञानिक प्रयास कर रहे हैं कि यज्ञ  के माध्यम से या तकनीक से पर्यावरण सुधार किया जाए । इसकी शुरुआत कण्व ने ही की थी। वैदिक कालीन ऋषियों में कण्व का नाम प्रमुख है इनके आश्रम में ही राजा दुष्यंत की पत्नी शकुंतला और उनके पुत्र भरत का पालन-पोषण हुआ था। माना जाता है कि उसके नाम पर देश का नाम भारत हुआ। सोमयज्ञ परंपरा भी कण्व की देन मानी जाती है। 
7 कपिल मुनि 
 
चार्ल्स डार्विन ने  विकास वाद का सिद्धांत दिया था। जिसे बड़ी उपलब्धि बता कर  प्रचारित किया गया।लेकिन वास्तव में यह सिद्धांत सांख्य दर्शन का छोटा सा रूप है।यह दर्शन मानता है की सृष्टि की उत्पति भगवान ने नहीं की है अपितु यह एक विकासात्मक प्रक्रिया है। और सृष्टि अनेक अवस्थाओं से गुजरने के बाद अपने वर्तमान स्वरूप को प्राप्त हुई। डार्विन ने इसे ही पश्चिम की भाषा में प्रस्तुत किया है। मत भिन्नता से ये भगवान विष्णु का पांचवां अवतार माने जाते हैं। इनके पिता कर्दम ऋषि थे।
 
इनकी माता देवहूती ने विष्णु के समान पुत्र चाहा। इसलिए भगवान विष्णु खुद उनके गर्भ से पैदा हुए। कपिल मुनि ‘सांख्य दर्शन’ के प्रवर्तक माने जाते हैं। इससे जुड़ा प्रसंग है कि जब उनके पिता कर्दम संन्यासी बन जंगल में जाने लगे तो देवहूती ने खुद अकेले रह जाने की स्थिति पर दुःख जताया।

इस पर ऋषि कर्दम देवहूती को इस बारे में पुत्र से ज्ञान मिलने की बात कही। वक्त आने पर कपिल मुनि ने जो ज्ञान माता को दिया, वही ‘सांख्य दर्शन’ कहलाता है। इसी तरह पावन गंगा के स्वर्ग से धरती पर उतरने के पीछे भी कपिल मुनि का शाप संसार के लिए कल्याणकारी बना।
8 पतंजलि 
 
आधुनिक दौर में जानलेवा बीमारियों में एक कैंसर या कर्करोग का आज उपचार संभव है। किंतु कई सदियों पहले ही ऋषि पतंजलि ने कैंसर को रोकने वाला योगशास्त्र रचकर बताया कि योग से कैंसर का भी उपचार संभव है।
9 शौनक 
 
वैदिक आचार्य और ऋषि शौनक ने गुरु-शिष्य परंपरा व संस्कारों को इतना फैलाया कि उन्हें दस हजार शिष्यों वाले गुरुकुल का कुलपति होने का गौरव मिला। शिष्यों की यह तादाद कई आधुनिक विश्वविद्यालयों तुलना में भी कहीं ज्यादा थी। 
10 महर्षि सुश्रुत 
 
ये शल्यचिकित्सा विज्ञान यानी सर्जरी के जनक व दुनिया के पहले शल्यचिकित्सक(सर्जन) माने जाते हैं। वे शल्यकर्म या आपरेशन में दक्ष थे। महर्षि सुश्रुत द्वारा लिखी गई ‘सुश्रुतसंहिता’ ग्रंथ में शल्य चिकित्सा के बारे में कई अहम ज्ञान विस्तार से बताया है। इनमें सुई, चाकू व चिमटे जैसे तकरीबन 125 से भी ज्यादा शल्यचिकित्सा में जरूरी औजारों के नाम और 300 तरह की शल्यक्रियाओं व उसके पहले की जाने वाली तैयारियों, जैसे उपकरण उबालना आदि के बारे में पूरी जानकारी बताई गई है।
 
जबकि आधुनिक विज्ञान ने शल्य क्रिया की खोज तकरीबन चार सदी पहले ही की है। माना जाता है कि महर्षि सुश्रुत मोतियाबिंद, पथरी, हड्डी टूटना जैसे पीड़ाओं के उपचार के लिए शल्यकर्म यानी आपरेशन करने में माहिर थे। यही नहीं वे त्वचा बदलने की शल्य चिकित्सा भी करते थे। 
11वशिष्ठ :
 
वशिष्ठ ऋषि राजा दशरथ के कुलगुरु थे। दशरथ के चारों पुत्रों राम, लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न ने इनसे ही शिक्षा पाई। देवप्राणी व मनचाहा वर देने वाली कामधेनु गाय वशिष्ठ ऋषि के पास ही थी। 
12 विश्वामित्र :
 
ऋषि बनने से पहले विश्वामित्र क्षत्रिय थे। ऋषि वशिष्ठ से कामधेनु गाय को पाने के लिए हुए युद्ध में मिली हार के बाद तपस्वी हो गए। विश्वामित्र ने भगवान शिव से अस्त्र विद्या पाई। इसी कड़ी में माना जाता है कि आज के युग में
प्रचलित प्रक्षेपास्त्र या मिसाइल प्रणाली हजारों साल पहले विश्वामित्र ने ही खोजी थी। ऋषि विश्वामित्र ही ब्रह्म गायत्री मंत्र के दृष्टा माने जाते हैं।
 
विश्वामित्र का अप्सरा मेनका पर मोहित होकर तपस्या भंग होना भी प्रसिद्ध है। शरीर सहित त्रिशंकु को स्वर्ग भेजने का चमत्कार भी विश्वामित्र ने तपोबल से कर दिखाया। 
13महर्षि अगस्त्य 
 
वैदिक मान्यता के मुताबिक मित्र और वरुण देवताओं का दिव्य तेज यज्ञ कलश में मिलने से उसी कलश के बीच से तेजस्वी महर्षि अगस्त्य प्रकट हुए। महर्षि अगस्त्य घोर तपस्वी ऋषि थे। उनके तपोबल से जुड़ी पौराणिक कथा है कि एक बार जब समुद्री राक्षसों से प्रताड़ित होकर देवता महर्षि अगस्त्य के पास सहायता के लिए पहुंचे तो महर्षि ने देवताओं के दुःख को दूर करने के लिए समुद्र का सारा जल पी लिया। इससे सारे राक्षसों का अंत हुआ। 
14 गर्गमुनि
 
पश्चिम के देश कुछ सौ वर्ष पूर्व तक धरती का आकार ही नहीं सोच पाए थे। पृथ्वी  सृष्टि  की परिक्रमा करती है- ऐसा कहने वाले वैज्ञानिकों की हत्याएं कर दी गई थीं। जबकि भारत में हजारों वर्षों से ग्रह नक्षत्रों की गति का
सूक्ष्म अध्ययन  किया जाता है। पञ्चांग देख कर हजारों वर्ष से इस देश में सूर्योदय, सूर्यास्त चंद्रोदय, ग्रहण, तिथि पर्व त्यौहार आदि की पूर्ण शुद्ध गणना कर ली जाती है। जिसका श्रेय महर्षि गर्ग को जाता है। गर्ग मुनि नक्षत्रों के खोजकर्ता माने जाते हैं। यानी सितारों की दुनिया के जानकार। ये गर्गमुनि ही थे, जिन्होंने श्रीकृष्ण एवं अर्जुन के  बारे में नक्षत्र विज्ञान के आधार पर जो कुछ भी बताया, वह पूरी तरह सही साबित हुआ।
 
कौरव-पांडवों के बीच महाभारत युद्ध विनाशक रहा।  इसके पीछे वजह यह थी कि युद्ध के पहले पक्ष में तिथि क्षय होने के तेरहवें दिन अमावस थी। इसके दूसरे पक्ष में भी तिथि क्षय थी। पूर्णिमा चौदहवें दिन आ गई और उसी दिन चंद्रग्रहण था। तिथि-नक्षत्रों की यही स्थिति व नतीजे गर्ग मुनिजी ने पहले बता दिए थे। 
15बौधायन 
 
प्राचीन भारत में रेखा गणित का जितना सटीक विश्लेषण हुआ था उतना पश्चिम में अब तक नहीं हो पाया।पायथागोरस ने जो प्रमेय बनाया अब उसे बोधायन पायथागोरस प्रमेय कहा जाता है। रेखा गणित से संबंधित अत्यंत सूक्ष्म गणना बोधायन ने ‘ शुल्ब सूत्र, श्रोत सूत्र’ में कर  दी थी। बोधायन ने पहली बार दो का वर्गमूल निकलने की विधि विकसित कर ली थी। आज विश्व में युक्लिड का रेखा गणित पढाया जाता है लेकिन वास्तव में वह बोधायन का ही रेखागणित है। त्रिकोण का जितना सटीक विश्लेषण  बोधायन ने किया उतना आज तक कोई  नहीं कर पाया। 
 
 ये भारतीय त्रिकोणमितिज्ञ के रूप में जाने जाते हैं। कई सदियों पहले ही तरह-तरह के आकार-प्रकार की यज्ञवेदियां बनाने की त्रिकोणमितिय रचना-पद्धति बौद्धयन ने खोजी। दो समकोण समभुज चौकोन के क्षेत्रफलों का योग करने पर जो संख्या आएगी, उतने क्षेत्रफल का ‘समकोण’ समभुज चौकोन बनाना और उस आकृति का उसके क्षेत्रफल के समान के वृत्त में बदलना, इस तरह के कई मुश्किल सवालों का जवाब बोधायन ने आसान बनाया।
हमें गर्व होना चाहिए कि भारत की धरती को ऋषि, मुनि, सिद्ध और देवताओं की भूमि पुकारा जाता है। इनके विलक्षण ज्ञान के आगे आधुनिक विज्ञान भी नतमस्तक होता है।
 
हमारी भारत भूमि कई तरह के विलक्षण ज्ञान व चमत्कारों से अटी पड़ी है। सनातन धर्म वेद को मानता है। 
 
कई ऋषि-मुनियों ने तो वेदों की मंत्र-शक्ति को कठोर योग व तपोबल से साधकर ऐसे असंकलन एवं प्रस्तुति :डॉ.छाया मंगल मिश्रद्भुत कारनामों को अंजाम दिया कि बड़े-बड़े राजवंश व महाबली राजाओं को भी झुकना पड़ा।प्राचीन ऋषि-मुनियों ने घोर तप, कर्म, उपासना, संयम के जरिए वेद में छिपे इस गूढ़ ज्ञान व विज्ञान को ही जानकर हजारों साल पहले ही कुदरत से जुड़े कई रहस्य उजागर करने के साथ कई आविष्कार किए व युक्तियां बताईं। इसीलिए तो मेरा भारत महान है।
संकलन एवं प्रस्तुति :डॉ.छाया मंगल मिश्र

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