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कैसे Oscar में select की जाती हैं फ़िल्में?

कैसे Oscar में select की जाती हैं फ़िल्में? - How are films selected in Oscar
Oscar Award 
 
- ईशु शर्मा 
 
हर साल की तरह इस साल भी अकादमी मोशन ऑफ़ पिक्चर्स आर्ट्स एंड साइंस (academy motion of picture arts and science) द्वारा 95वें अकादमी अवार्ड 12 मार्च 2023 को आयोजित किया जाएगा। भारतीय फिल्मों में से अब तक मेहबूब खान की मदर इंडिया, मीरा नायर की सलाम बॉम्बे और आशुतोष गोवारीकर की लगान ही ऑस्कर अवार्ड के लिए भेजी गई पर इनमें से कोई भी फिल्म ऑस्कर नहीं जीती। 
 
हाल ही में 2022 में रिलीज़ (release) हुई 'छेलो शो' इंटरनेशनल फीचर फिल्म केटेगरी (international feature film category) और 'RRR' फिल्म का गाना 'Nattu Nattu' ओरिजिनल सॉन्ग केटेगरी (original song category) में शामिल हुए हैं। क्या आप भी जानना चाहते हैं कि कैसे फिल्मों को ऑस्कर मिलता है और इसकी प्रक्रिया क्या है? चलिए जानते हैं कि कैसे फिल्में ऑस्कर के लिए भेजी जाती हैं...
 
ऑस्कर फिल्म के लिए कैसे होता है सिलेक्शन ? 
 
दरअसल ऑस्कर अवार्ड में विदेशी भाषा की सर्वश्रेष्ठ फिल्म नाम से केटेगरी होती है जिसके अंतर्गत ऑस्कर अकादमी दुनिया भर की फिल्मों को आमंत्रित करती है। भारतीय फिल्मों को ऑस्कर में भेजने की ज़िम्मेदारी फिल्म फेडरेशन ऑफ़ इंडिया समिति की होती है। इसके लिए भारतीय फिल्मों को कुछ नियमों का पालन करना होता है।

नियम ये हैं कि फिल्म पिछले एक साल में किसी सिनेमा हॉल (cinema hall) में रिलीज़ हुई हो, फिल्म अंग्रेजी भाषा में न हो बल्कि किसी भी भारतीय आधारिक भाषा में होनी चाहिए और फिल्म में इंग्लिश सबटाइटल्स (English subtitles) होना ज़रूरी है। इन नियमों का पालन करने के बाद ही भारतीय फिल्म ऑस्कर में भेजी जाती है। 
 
प्रमोशन होता है ज़रूरी-  
 
ऑस्कर अवार्ड जीतने के लिए अच्छी फिल्म के साथ अच्छा प्रमोशन करना भी ज़रूरी है और उसके लिए करोड़ों का बजट भी होना चाहिए। दरअसल, ऑस्कर अवार्ड के लिए दो तरह की समिति होती हैं जो ये तय करती है कि कौनसी फिल्म ऑस्कर के लिए नॉमिनेट होगी और कौन ऑस्कर जीतेगी।

पहली समिति अकादमी ऑफ़ मोशन पिक्चर्स आर्ट्स एंड साइंस की होती है, जिसमें करीब 6000 मेंबर शामिल होते हैं और दूसरी समिति एकाउंटिंग कंपनी प्राइम वोटर हाउस कूपर की होती है। इन समिति के लिए फिल्म निर्माता को जी-हुजूरी के साथ फिल्म स्क्रीनिंग, नाश्ता और बाकी खर्चा भी उठाना पड़ता है।

साथ ही अमेरिका में फिल्म निर्माता को अपनी फिल्म का विज्ञापन प्रमुख खबर और मैगजीन में देना भी ज़रूरी है और इन सब व्यवस्था का खर्चा करोड़ों में आता है। जबकि एक भारतीय फिल्म का बजट ही 500 करोड़ तक जाता है। शायद इन्ही कारणों की वजह से भारतीय फिल्म कही न कही पीछे रह जाती है।