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Written By WD

राहुल गांधी सबक ले रहे हैं, कांग्रेस को बचाने की कोशिश

वेबदुनिया चुनाव डेस्क

राहुल गांधी
कांग्रेस पार्टी की छवि लगातार खराब हुई है, भले ही केंद्र में पिछले 10 सालों से उस के नेतृत्व में सरकार हो, लेकिन पार्टी की लोकप्रियता में लगातार गिरावट आई है। पिछले साल दिसंबर माह में दिल्ली, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में हुए विधानसभा चुनावों में पार्टी को करारी हार झेलनी पड़ी।

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इन सभी बातों से लगता है पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने सबक लिया है और अब वे पार्टी को 2014 के चुनाव में बचाने की पूरी तैयारी से लगे हैं।

आइए जानते हैं कि लोकसभा चुनाव के लिए राहुल गांधी ने पार्टी को मुकाबले में बने रहने के लिए कौन से तरीके अपनाए और वे इनमें कितने कामयाब हो रहे हैं।

1. भाषण देने का अंदाज़ बदला : राहुल गांधी ने लोकसभा चुनावों की तारीख घोषित होने के बाद अपने चुनाव प्रचार अभियान में तेजी दिखाई है। राजस्थान और गुजराज जैसे बड़े राज्यों में उन्होंने एक-एक दिन में कई रेलियां कीं। साथ ही भाषण देने के अपने अंदाज़ को भी बदला। पहले जिस तरह कांग्रेस उपाध्यक्ष भाषण देते थे, उस तरीके को उन्होंने बदला है और अब वे जनता से अधिक करीब से जुड़ने की कोशिश कर रहे हैं।

2. सरकार की उपलब्धियों का बखान : यूं तो राहुल गांधी पहले भी यूपीए और यूपीए2 की उपलब्धियों को अपने भाषण में शामिल करते रहे हैं, लेकिन फिलहाल उनका तरीका और आक्रमक हो गया है। वे यूपीए सरकार की खाद्य सुरक्षा बिल, सूचना का अधिकार, लोकपाल बिल, मनरेगा जैसी योजनाओं का उल्लेख अपने हर भाषण में कर रहे हैं। राजस्थान में एक रैली में राहुल ने कहा, लोकपाल कांग्रेस पार्टी लेकर आई और भाजपा भ्रष्टाचार दूर करने की बात कर रही है।

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3. कार्यकर्ताओं की पसंद : राहुल गांधी ने कांग्रेस पार्टी के अधिवेशन में कहा था कि वे लोकसभा चुनाव में 15 सीटों पर कार्यकर्ताओं की पसंद के उम्मीदवार खड़ा करेंगे। राहुल के इस प्रयोग में दम हो या न हो, लेकिन उन्होंने कार्यकर्ताओं तक पहुंचने की कोशिश की और उन्हें अगामी चुनाव के लिए प्रोत्साहित किया।

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4. बड़े नेताओं की दखलअंदाजी कम की : पिछले साल दिसंबर माह में विधानसभा चुनाव के परिणाम के बाद राहुल ने कहा था कि हम पार्टी में बड़ा बदलाव कर देंगे। राहुल के बड़े बदलाव अचानक नजर नहीं आए, लेकिन राजस्थान, मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में युवा नेताओं को प्रदेश कांग्रेस की बागडोर देने के साथ ही वहां बड़े नेताओं की दखलअंदाजी बंद की। मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को राज्यसभा में भेजकर राहुल ने यह संकेत दिया भी।

5. गठबंधन पर नजर : हालांकि राहुल गांधी सार्वजनिक रूप से कहते रहे हैं कि पार्टी के लिए गठबंधन का काम उनकी पार्टी के वरिष्ठ नेता एके एटोनी देख रहे हैं, लेकिन इसमें राहुल की सहमति से ही निर्णय होता है। अंदरूनी रूप से पार्टी में गठबंधन के लिए नए साथी तलाशने का काम तेजी से जारी है। साथ ही राहुल की नजर तीसरे मौर्चे के दलों पर भी है, जिसके समीकरण चुनाव के बाद बन सकते हैं। फिलहाल राहुल गांधी के सामने अपनी पार्टी की प्रतिष्ठा बचाने की जिम्मेदारी है और साथ ही उन्हें यह साबित करना है कि वे कमजोर नेता नहीं हैं।