गंगा दशहरा द्वार पत्र पर जो मंत्र अंकित होता है उसमें पंचमुनि अगस्त्य,पुलस्त्य,वैशम्पायन,जैमिनी और सुमंत के नाम आते हैं, आइए जानें कौन हैं ये 5 मुनि....
अगस्त्यश्च पुलस्त्यश्च वैशम्पायन एव च।
जैमिनिश्च सुमन्तुश्च पञ्चैते वज्र वारका:।।1।।
मुने कल्याण मित्रस्य जैमिनेश्चानु कीर्तनात।
विद्युदग्निभयंनास्ति लिखिते च गृहोदरे।।2।।
यत्रानुपायी भगवान् हृदयास्ते हरिरीश्वर:।
भंगो भवति वज्रस्य तत्र शूलस्य का कथा।।3।।
अगस्त्य,पुलस्त्य,वैशम्पायन,जैमिनी और सुमंत ये पंचमुनि वज्र से रक्षा करने वाले मुनि हैं। ये मुनि प्राकृतिक आपदाओं से रक्षा करते हैं। प्राचीन काल में हमारे ऋषि मुनि में इतनी सिद्धि होती थी कि वे आमजन की रक्षा के लिए अपनी साधना और शक्तियों का प्रयोग कर सकते थे। यह परंपरा है कि गंगा दशहरा पर इन 5 मुनियों का स्मरण कर द्वार पत्र लगाया जाता है, आइए जानें विस्तार से....
महर्षि अगस्त्य : महर्षि अगस्त्य वैदिक कालीन महान ऋषि थे इनके भाई का नाम विश्रवा और पिता पुलत्स्य ऋषि थे ऐसे महान महर्षि अगस्त्य का जन्म श्रावण शुल्क पंचमी (3000 ई. पू.) काशी में हुआ था। जिसे आज अगस्त्य कुंड के नाम से जाना जाता है। महर्षि अगस्त्य का विवाह विदर्भ देश की राजकुमारी लोपमुद्रा से हुआ था। ऋग्वेद के कई मंत्रों की रचना महर्षि अगस्त्य ने की है। पूरे समुद्र को सुखाने की शक्ति सिर्फ अगस्त्य मुनि के पास थी। एक कथा के अनुसार देवताओं की मदद के लिए और राक्षसों का नाश करने के लिए महर्षि अगस्त्य सारे समुद्र को पी गए थे। इसके बाद देवताओं ने कहा समुद्र का जल वापस भर दीजिए तब अगस्त्य मुनि ने कहा, देवताओं अब यह संभव नहीं है। क्योंकि जो समुद्र का जल जो मैंने पिया था वह पच गया है। तब ब्रह्मा जी ने कहा जब भागीरथ धरती पर गंगा लाने का प्रयत्न करेंगे तब समुद्र जल से भर जाएगा। इस तरह गंगा और गंगा दशहरा से अगस्त्य मुनि का कनेक्शन है।
महर्षि पुलस्त्य: महर्षि पुलस्त्य ब्रह्मा के छह मानस पुत्रों में से एक माना जाता है। इनकी गणना शक्तिशाली महर्षियों में की जाती है। कर्दम प्रजापति की कन्या हविर्भुवा से इनका विवाह हुआ था। इन्हें दक्ष का दामाद और शंकर का साढू भी बताया गया है। दक्ष के यज्ञ-ध्वंस के समय ये जलकर मर गए थे। वैवस्वत मन्वंतर में ब्रह्मा के सभी मानस पुत्रों के साथ पुलस्त्य का भी पुनर्जन्म हुआ था।महर्षि पुलस्त्य ब्रह्मा जी के कानों से उत्पन्न हुए थे। विष्णुपुराण के अनुसार इनके माध्यम से ही कुछ पुराण आदि मानवजाति को प्राप्त हुए। तुलसीदास ने रावण के संबंध में उल्लेख करते हुए लिखा है- "उत्तम कुल पुलस्त्य कर गाती।"
एक बार पुलस्त्य मेरु पर्वत पर तपस्या कर रहे थे तो बार-बार परेशान करने वाली अप्सराओं को इन्होंने शाप दे दिया कि जो इनके सामने आएगी, वह गर्भवती हो जाएगी। वैशाली के राजा की कन्या असावधानी से इनके सामने आकर गर्भवती हो गई। बाद में उसका पुलस्त्य से विवाह हुआ और उसने 'विश्रवा' नामक पुत्र को जन्म दिया। रावण इन्हीं विश्रवा का पुत्र और पुलस्त्य का पौत्र था। पुलस्त्य ऋषि ने ही गोवर्धन पर्वत को शाप दिया था। गोवर्धन पर्वत को गिरिराज पर्वत भी कहा जाता है। 5,000 साल पहले यह गोवर्धन पर्वत 30,000 मीटर ऊंचा हुआ करता था और अब शायद 30 मीटर ही रह गया है। पुलस्त्य ऋषि के शाप के कारण यह पर्वत एक मुट्ठी रोज कम होता जा रहा है। इसी पर्वत को भगवान कृष्ण ने अपनी चींटी अंगुली पर उठा लिया था। श्री गोवर्धन पर्वत मथुरा से 22 किमी की दूरी पर स्थित है।
महर्षि वैशम्पायन : महर्षि वैशम्पायन वेद व्यास के विद्वान शिष्य थे। हिन्दुओं के दो महाकाव्यों में से एक महाभारत को मानव जाति में प्रचलित करने का श्रेय उन्हीं को जाता है। पाण्डवों के पौत्र महाबलि परीक्षित के पुत्र जनमेजय को वैशम्पायन ने एक यज्ञ के दौरान यह कथा सुनाई थी। कृष्ण यजुर्वेद के प्रवर्तक भी ऋषि वैशम्पायन ही है जिन्हें उनके गुरु वेदव्यास यह कार्य सौंपा था। इनके शिष्य याज्ञवल्क्य ऋषि थे। वेदव्यास की आज्ञा से इन्हीं ने जनमेजय को महाभारत की कथा सुनाई थी।
महर्षि जैमिनी : आचार्य जैमिनी महर्षि कृष्णद्वैपायन व्यासदेव के शिष्य थे। सामवेद और महाभारत की शिक्षा जैमिनी ने वेदव्यास से ही पायी थीं। ये ही प्रसिद्ध पूर्व मीमांसा दर्शन के रचयिता हैं। इसके अतिरिक्त इन्होंने 'भारतसंहिता' की भी रचना की थी, जो 'जैमिनी भारत' के नाम से प्रसिद्ध है। आपने द्रोणपुत्रों से मार्कण्डेय पुराण सुना था। इनके पुत्र का नाम सुमन्तु और पौत्र का नाम सत्वान था। इन तीनों ने वेद की एक-एक संहिता बनाई है। हिरण्यनाभ, पैष्पंजि और अवन्त्य नाम के इन के तीन शिष्यों ने उन संहिताओं का अध्ययन किया था।
महर्षि सुमंत : वाल्मीकि रामायण' के अनुसार अयोध्या के महाराज दशरथ के आठ कूटनीतिक मंत्रियों में से एक का नाम था। सुमन्त्र महाराज दशरथ के सबसे मुख्य मंत्री थे, जो राजा को सर्वदा उचित सलाह देते थे। वह दशरथ के दरबार में सात मंत्रियों के बाद में आठवें मंत्री थे, किंतु राजा दशरथ उन्हीं से सलाह लेते थे। राजा दशरथ के दरबार में सुमन्त्र से पहले जो मुख्य सात मंत्री थे, उनके नाम इस प्रकार थे- धृष्टि जयन्त विजय सुराष्ट्र राष्ट्रवर्धन अकोप धर्मपाल यह सुमन्त्र ही थे, जो राम, सीता तथा लक्ष्मण को वनगमन के दौरान अपने रथ में अयोध्या से गंगा के तट तक छोड़ने आये थे। दूसरे शब्दों में संत सुमंत भगवान श्रीराम के पिता राजा दशरथ के मित्र एवं विश्वासपात्र सारथी थे। जब कैकेयी के कहने पर मजबूर होकर राजा दशरथ ने श्रीराम को 14 साल के वनवास पर जाने का आदेश दिया। तब राजा दशरथ के सारथी संतों की तरह जीवन जीने वाले सुमंत ने अश्रु भरे नेत्रों के साथ श्रीराम, माता सीता, और लक्ष्मण को रथ पर बिठाकर वनवास तक छोड़कर राजा दशरथ के आदेश का पालन किया।