मंगलवार, 30 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. धर्म-संसार
  2. गणेश चतुर्थी 2023
  3. गणेशोत्सव सेलिब्रेशन
  4. Ganesh Chaturthi 2023
Written By

इंदौर का खरगोनकर परिवार छः पीढ़ियों से बना रहा है राजवाड़ा और होलकर राज परिवार के लिए गणपति

Ganesh Chaturthi 2023
Ganesh Chaturthi 2023
Ganesh Chaturthi 2023: भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को पूरे देश में गणेश उत्सव का प्रारंभ होता है। इस दौरान हर घर में और सार्वाजनिक पांडालों में गणेश प्रतिमा स्थापित की जाती है। इंदौर में गणेश प्रतिमा बनाने की परंपरा भी कई पीढ़ियों से जारी है। इसी क्रम में विगत छः पीढ़ियों से खरगोनकर परिवार राजवाड़े और राज परिवार के लिए गणपति निर्माण का काम कर रहे हैं। आइये जानते हैं खरगोनकर परिवार की कहानी उन्हीं की जुबानी।

कब हुई शुरुआत?
खरगोनकर परिवार के हरीश खरगोनकर ने बताया कि उनके परदादा त्रियम्बक राव खरगोनकर ने इस प्रथा की शुरुआत की। खरगोनकर परिवार की पिछली पीढ़ियाँ होलकर राजघराने में कलाकारों के रूप में काम करती थीं। जहाँ वे राज परिवार के किसी भी उत्सव के समय रंगोली या चित्र इत्यादि बनाने का काम किया करते थे। तब सार्वजनिक गणेश उत्सव की शुरुआत नहीं हुई थी। तब होलकर राज घराने की ओर से इन्हीं कलाकारों को मिट्टी की गणेश प्रतिमा बनाने के लिए कहा गया था। उस समय गणेश प्रतिमा का जो स्वरुप तैयार किया था वही आज तक गणेश उत्सव के लिए बनाते आ रहे हैं। उल्लेखनीय है कि खरगोनकर परिवार द्वारा निर्मित गणेश प्रतिमा के माथे पर होलकर घराने की पारंपरिक पगड़ी शोभायमान होती है।

पहले और आज के समय में गणेश प्रतिमा में क्या अंतर आया है?
हरीश खरगोनकर ने बताया कि पहले गणेश प्रतिमा को ठोस बनाया जाता था। जिससे उसका वजन अपेक्षाकृत अधिक होता था। धीरे-धीरे हमने कुछ नए प्रयोग किए और प्रतिमा को कम वजनी बनाने के लिए उसे अंदर से खोखला बनाने की शुरुआत की। पहले राजवाड़ा के लिए जिस गणेश प्रतिमा का निर्माण किया जाता था उसकी पालकी राजवाड़े तक ले जाने के लिए कुल सोलह आदमियों की ज़रूरत पड़ती थी। आठ व्यक्ति आधे रास्ते प्रतिमा को पालकी से ले जाते थे और शेष आधे रास्ते के लिए दूसरे आठ व्यक्ति प्रतिमा को ले जाते। इस प्रकार कुल सोलह व्यक्तियों के द्वारा गणेश प्रतिमा ले जाई जाती थी। साथ ही गणेश जी को ले जाने के लिए पालकी के साथ गाजे-बाजे और हाथी-घोड़े भी होते थे। आज के समय गणेश प्रतिमा को ले जाने के लिए सिर्फ पालकी का ही प्रयोग होता है।

शुरुआत से ही बनाए जा रहे हैं मिट्टी के गणेश:
खरगोनकर परिवार ने हमेशा ही गणेश प्रतिमा बनाने के लिए मिट्टी का उपयोग किया है। प्रतिमा निर्माण के लिए कभी भी प्लास्ट ऑफ़ पेरिस का प्रयोग नहीं किया। गणेश प्रतिमाओं पर इको फ्रेंडली रंगों का ही इस्तेमाल किया जाता है जो कि पर्यावरण की दृष्टि से सुरक्षित हैं। खरगोनकर परिवार द्वारा प्रतिवर्ष आठ सौ से हज़ार गणेश मूर्तियों का निर्माण किया जाता है जिनकी मध्यप्रदेश के साथ-साथ बाहर के राज्यों में भी काफ़ी माँग होती है।

इंदौर के बालाजी मंदिर में आए थे बाल गंगाधर तिलक:
बाल गंगाधर तिलक ने भारत में सार्वजनिक गणपति उत्सव की शुरुआत की। उस समय इंदौर में बालाजी मंदिर में तिलक आए थे और इस प्रकार इंदौर में भी सार्वजनिक गणेश उत्सव की शुरुआत हुई। उस समय नवभारत मंडल, जिसमें खरगोनकर परिवार भी शामिल था ने सार्वजनिक गणेश उत्सव के लिए मंदिरों में गणेश स्थापना के लिए मूर्ति निर्मित करने की शुरुआत की। आज भी यह प्रथा यथावत है। हरीश खरगोनकर ने बताया कि उस समय गणेश उत्सव के दौरान विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों जैसे नाटकों आदि का आयोजन भी किया जाता था।

कब शुरू होता है गणेश प्रतिमा का निर्माण कार्य?
बसंत पंचमी के शुभ मुहूर्त पर पूरे विधि-विधान और पूजा-पाठ के साथ तीन छोटी गणेश प्रतिमाएँ निर्मित की जाती हैं। फिर अथर्व शीर्ष का पाठ करके उनका पूजन किया जाता है। इसके बाद ही बड़ी मूर्तियों के निर्माण का काम विधिवत शुरू किया जाता है। मूर्ति पर रंग चढ़ाने के लिए भी मुहूर्त देखकर ही काम शुरू किया जाता है।

गणेश प्रतिमा के निर्माण के लिए होलकर राज परिवार से कीमत नहीं, लेते हैं मानदेय:
खरगोनकर परिवार अपने पूर्वजों द्वारा स्थापित गणेश प्रतिमा निर्माण की इस परंपरा को पूरी निष्ठा से निभा रहा है। हरीश खरगोनकर ने कहा कि मूर्ति निर्माण एक कला है। इसीलिए वे गणेश प्रतिमा के निर्माण के लिए होलकर राज परिवार से प्राप्त राशि को कीमत नहीं मानदेय के रूप में स्वीकार करते हैं। साथ ही खरगोनकर परिवार गणेश मूर्ति निर्माण सीखने के इच्छुक व्यक्तियों को निशुल्क यह कला सिखाता है जिसका उद्देश्य अपनी संस्कृति और परंपरा को आगे बढ़ाना है।

खरगोनकर परिवार के पास है लगभग डेढ़ सौ साल पुराना शमी वृक्ष:
शमि वृक्ष का उल्लेख महाभारत समय से मिलता है। कहते हैं जब अर्जुन वनवास के लिए गए तो उन्होंने अपने सारे शस्त्र इसी पेड़ पर रखे थे। साथ ही शमी के पेड़ का आयुर्वेदिक महत्व भी है। शमी वृक्ष की पत्तियों का पूजा में विशेष महत्व होता है। दशहरे के दिन इस पेड़ की पत्तियों का विशेष महत्व होता है। खरगोनकर परिवार के पास लोग इस डेढ़ सौ वर्ष पुराने शमी वृक्ष के दर्शन के लिए आते हैं ।

इंदौर में दुर्गा माता की मूर्तियों के निर्माण की शुरुआत भी श्री हरीश खरगोनकर ने की:
इंदौर में दुर्गा माता की मूर्तियों का निर्माण शुरू करने का श्रेय भी हरीश खरगोनकर को जाता है। जिन स्थानों और पाण्डालों पर उनके हाथों से बनी मूर्तियां स्थापित होने की शुरुआत हुई आज वहाँ दुर्गा माता के स्थाई मंदिरों का निर्माण हो चुका है।

गरिमा मुद्गल