गुरुवार, 25 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. »
  3. वेबदुनिया विशेष 07
  4. »
  5. गाँधी जयंती
Written By ND

पूरे विश्व में धाक जमाई है गाँधीजी की विचारधारा ने

पूरे विश्व में धाक जमाई है गाँधीजी की विचारधारा ने -
- सुधीन्द्र मोहन शर्म

ND
देश की नई पीढ़ी के बहुत से लोग अक्सर बातचीत में एक-दूसरे से पूछते हैं कि गाँधी विचारधारा की वर्तमान में सार्थकता क्या है?

महात्मा गाँधी ने कहा था- आँख के बदले आँख का प्रतिशोध भरा कानून अगर विश्व में लागू हो गया, तो पूरा विश्व अंधा हो जाएगा। वर्तमान में जब घृणा और बदले की मानसिकता व्यक्तिगत स्तर के ऊपर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आ चुकी है, आतंकवाद चरम पर है, परंतु आतंकवाद का जवाब भी आतंकवाद से ही दिया जा रहा है, बदले लेने के लिए किसी देश की अर्थव्यवस्था ध्वस्त कर वहाँ के बच्चों तक को दवाइयों और खाने से वंचित कर दिया जा रहा है, तब ऐसे समय में गाँधी विचारधारा और अधिक प्रासंगिक लगने लगी है।

महात्मा गाँधी से पूरा विश्व प्रभावित रहा है। विश्व स्तर पर विशेषकर पश्चिमी प्रेस में महात्मा गाँधी पर आधारित जो समाचार प्रकाशित हुए हैं, उन्हें देखें तो गाँधी विचारधारा का विश्व में कितना प्रभाव है, इसका अंदाजा हमें हो सकता है।

ग्यारह जनवरी 2003 को इलीनोयस (अमेरिका) के गवर्नर ने 167 मृत्युदंड प्राप्त कैदियों की सजा उम्रकैद में बदल दी। अपने फैसले में उन्होंने महात्मा गाँधी के विचार 'आँख के बदले आँख' का उल्लेख भी किया है और कहा कि वे नेल्सन मंडेला और बिशप टूटू से प्रभावित होकर यह निर्णय कर रहे हैं। (द टेलीग्राफ, कोलकाता, 12 जनवरी 2003, वाशिंगटन से प्राप्त समाचार) न्यूयॉर्क टाइम्स ने 25 दिसंबर 2003 की अपनी रिपोर्ट में कहा कि लंदन से एक पूरी बस भरकर कार्यकर्ता इराक के लिए रवाना हुए जहाँ वे निर्दोष नागरिकों की रक्षा के लिए जा रहे हैं।

इसी तरह नॉर्वे में एक इंस्टीट्यूट है जो कोसोवो और बोस्निया में काम करने के लिए शांति रक्षकों को प्रशिक्षण दे रहा है। इस प्रशिक्षण में महात्मा गाँधी पर एक पूरा पाठ्यक्रम है।
इसके अलावा रंगभेद से संघर्ष करने के लिए महात्मा गाँधी के सत्याग्रह को भला कौन भूल सकता है। दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों से रंग के आधार पर भेदभाव का सत्याग्रही विरोध, महात्मा गाँधी को आज भी प्रासंगिक बना देता है।


कैलिफोर्निया में एक स्कूल टीचर जान क्वीगले ने अपने आपको एक पेड़ से चेन से बाँध रखा है। वह 1 नवंबर 2002 से इसी पेड़ पर बने हुए एक प्लेटफार्म पर रह रहा है। यह एक 400 वर्ष पुराना ओक वृक्ष है जिसे वह कटने से बचाना चाहता है। पुलिस ने जब बलपूर्वक 11 जनवरीको उसे हटाया तो उसने कहा कि मैं यह सब सिर्फ महात्मा गाँधी के अहिंसा धर्म में विश्वास रखने के कारण कर पाया (एसोसिएटेड प्रेस, 11 जनवरी 2003)

इसके अलावा रंगभेद से संघर्ष करने के लिए महात्मा गाँधी के सत्याग्रह को भला कौन भूल सकता है। दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों से रंग के आधार पर भेदभाव का सत्याग्रही विरोध, महात्मा गाँधी को आज भी प्रासंगिक बना देता है।

वहीं दक्षिण अफ्रीका सरकार ने भी एक प्रतिष्ठित राष्ट्रीय पुरस्कार की घोषणा की है। यह पुरस्कार दक्षिण अफ्रीका के बाहर के उन लोगों को दिया जाएगा जिन्होंने स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान एवं लोकतंत्र की स्थापना के बाद दक्षिण अफ्रीका के लोगों का साथ दिया था। प्रथम पुरस्कार की घोषणा की गई, और उसमें जो नाम थे वे थे- महात्मा गाँधी, ओलोफ पाल्मे एवं कैनेथ काउंडा। शायद पुरस्कार देने वालों के मन में यह विचार रहा था कि अपनी मृत्यु के बाद भी महात्मा गाँधी एक शक्ति थे, और भारत ने दक्षिण अफ्रीकी स्वतंत्रता संघर्ष के लिए जो भी कुछ किया, उसके मूल में गाँधीवादी विचारधारा ही थी।

इसी प्रकार पश्चिमी जगत ने गाँधीजी को खेलों से भी जोड़ दिया है। इंग्लैंड में एक ब्रिटिश कंपनी ने एक फुटबॉल टी-शर्ट बनाई है। इसमें सीने पर गाँधीजी की तस्वीर छपी है। कंपनी के अनुसार उन्होंने गाँधीजी को इसलिए चुना क्योंकि वे अहिंसक फुटबॉल को बढ़ावा देना चाहते हैं।

तो हम देखते हैं कि महात्मा गाँधी को विश्व समुदाय कितने विभिन्न रूपों में आदर देता है- शांतिदूत, बराबरी का मसीहा, स्वतंत्रता नायक, पर्यावरण रक्षक और एक स्वस्थ खिलाड़ी। फिर भारत में तो महात्मा गाँधी की प्रासंगिकता कभी कम नहीं हो सकती है। अतः यह दुर्भाग्यपूर्ण ही होगा यदि घृणा और बदले की भावना से भरी राजनीति के कारण हम महात्मा गाँधी को अप्रासंगिक मानने लगें और हमारी अगली पीढ़ी को गाँधी विचारधारा को भी पश्चिम से आयात करना पड़े।