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Written By ND

पुराने सत्य और अहिंसा

पुराने सत्य और अहिंसा -
- हेमंत पा

गाँधीवाद
एक साधारण भारतीय और दुनिया के सारे लोगों के लिए गाँधीजी के विचारों, शब्दों और कार्यों का क्या मतलब है और अपने स्वयं के भविष्य निर्माण हेतु वे इनका किस तरह प्रयोग करें। गाँधीवाद अराजनीतिक और असामाजिक व्यक्ति के परिमंडल में प्रवेश भी कर गया है।
गाँधीवाद भारत के प्रमुख राजनीतिक और आध्यात्मिक नेता मोहनदास करमचंद गाँधी के दृष्टिकोण, केंद्रीय प्रेरणाओं, सिद्धांतों, मान्यताओं और दर्शन का एक अनौपचारिक संदर्भ है। यह उन विचारों और सिद्धांतों का आईना है, जो न केवल बेहतर तरीकों से प्रेरणा, दृष्टिकोण और महात्मा गाँधी के जीवन कार्यों का वर्णन करते हैं, बल्कि यह भी बताते हैं कि एक साधारण भारतीय और दुनिया के सारे लोगों के लिए गाँधीजी के विचारों, शब्दों और कार्यों का क्या मतलब है और अपने स्वयं के भविष्य निर्माण हेतु वे इनका किस तरह प्रयोग करें। गाँधीवाद अराजनीतिक और असामाजिक व्यक्ति के परिमंडल में प्रवेश भी कर गया है।

यदि यह खोज की जाए कि गाँधीजी के कार्यों और शिक्षाओं ने व्यक्तियों और राष्ट्रों को किस तरह प्रभावित किया और किस तरह उनके शब्दों और क्रियाओं की व्याख्याओं ने गाँधी को अप्रासंगिक बना दिया, तो पता चलेगा कि गाँधीजी खुद मानते थे कि उनकी बातों और कामों में पूरी तरह उनके मूल विचार नहीं थे। उन्होंने वही सब कुछ कहा और किया जो पहले से मौजूद था। उन्होंने अपने बारे में खुद कहा था कि 'इस दुनिया को सिखाने के लिए मेरे पास कुछ नहीं है। सत्य और अहिंसा उतने ही पुराने हैं, जितने कि नदी और पर्वत।'

गाँधीजी ने सत्य के साथ अपने लगातार प्रयोग द्वारा अपने दृष्टिकोण, विचार तथा जीवन के तरीकों को विकसित किया था। सत्य को अपने जीवन में शामिल करने से पूर्व उन्होंने अपनी बाल्यावस्था और किशोरावस्था में कई पीड़ादायी त्रुटियाँ की थीं, लेकिन उनमें उन गलतियों को स्वीकारने तथा सुधारने की ताकत थी। इन्हीं दृढ़ विश्वास, त्याग के आधार पर गाँधीवाद की नींव पड़ी थी।

गाँधी सत्य की खोज
गाँधीवाद के मूलभूत और व्याख्यात्मक तत्व सत्य, अहिंसा और सादगी हैं। गाँधीजी और उनके अनुयायियों के लिए सत्य राजनीति, समाज और परंपरा के सभी पहलुओं में व्याप्त हो जाना चाहिए। गाँधीजी न तो शांतिवादी थे, न ही समाजवादी और न ही व्याख्यामय।
विभिन्न दर्शनों के लक्ष्य भी अलग-अलग हैं। समाजवाद में एक समानतावादी अर्थव्यवस्था और राजनीति प्रणाली वांछित है, शांतिवाद में यह अपेक्षा की जाती है कि किसी भी परिस्थिति में युद्ध को टाला जाए, बौद्धवाद मोक्ष चाहता है। इस तरह गाँधीवाद वास्तव में गाँधीजी की सत्य की खोज की यात्रा ही है। यह गाँधीजी की शिक्षाओं का आधार है तथा स्वयं को सारी उम्र समझने तथा जाँचने की भावनाओं की बुनियाद है। इसके लिए उन्होंने किसी अन्य को आदर्श नहीं बनाया बल्कि सारे प्रयोग स्वयं खुद पर ही किए थे।

गाँधीवाद के मूलभूत और व्याख्यात्मक तत्व सत्य, अहिंसा और सादगी हैं। गाँधीजी और उनके अनुयायियों के लिए सत्य राजनीति, समाज और परंपरा के सभी पहलुओं में व्याप्त हो जाना चाहिए। गाँधीजी न तो शांतिवादी थे, न ही समाजवादी और न ही व्याख्यामय राजनीतिक रंग में रंगने वाले व्यक्ति थे। वे बस, जीवन के शुद्ध विद्यमान सत्यों से जुड़े रहे।

और इसी को आधार बनाकर उन्होंने सारे निर्णय लिए। वैसे देखा जाए तो आम आदमी के लिए सत्य का पालन करना और उसे व्यवहार में लाना मुश्किल होता है। गाँधीजी का जीवन इस बात का साक्षी है तथा प्रेरित करता है कि सत्य का आचरण किया जा सकता है। अहिंसा, मानवीय स्वतंत्रता, समानता तथा न्याय के प्रति गाँधीजी की प्रतिबद्धता सावधानीपूर्वक व्यक्तिगत परीक्षण के बाद जीवन के सत्य से ही पैदा हुई थी।

भावना का अनुसरण
सत्य की व्याख्या विजयात्मक रूप से की जाती है। इसलिए गाँधीवाद इस बात की माँग नहीं करता है कि गाँधीजी के सिद्धांत से ही चिपका रहा जाए, लेकिन यह जरूरी है कि उसकी भावना का अनुसरण किया जाए। यदि कोई ईमानदारी से यह मानता है कि कभी-कभार हिंसा अपरिहार्य है तथा अनैतिक स्थिति की सफाई हेतु आवश्यक है तो ऐसा करना ही सच्चाई है। सच्चाई पर चलना गाँधीवाद की भावना है।

उन्होंने पाया था कि हमेशा सत्य को अनावृत करना ही लोकप्रिय नहीं होता, जैसा कि कई लोग स्वार्थ अथवा दिग्भ्रमित मान्यताओं के चलते ऐसा मानते हैं। तथापि उन्होंने यह भी खोजा था कि यदि एक बार सत्य की राह पर चल पड़े तो कोई उसे रोक नहीं सकता है। गाँधीजी ने कहा था- जनसंहार के किसी भी हथियार से सत्य ज्यादा शक्तिशाली है।