बेचारी नहीं है हिन्दी
एमके सांघी
प्रश्न : दद्दू, लोग शिक्षक दिवस पर शिक्षक को तथा हिन्दी दिवस पर हिन्दी भाषा को बेचारा/बेचारी साबित करने के लिए क्यों पिल पड़ते हैं? उत्तर : ऐसा सिर्फ शिक्षकगण या हिन्दी भाषा के साथ ही नहीं है। हमारे देश में वक्त-वक्त पर लोगों को किसी को भी बेचारा समझने-साबित करने में बहुत मजा आता है। उदाहरण के लिए शादी के समय दूल्हे को, कॉलेज प्रवेश के समय जूनियर छात्र/छात्राओं को, कार से बैठकर गुजरने पर पैदल/दो-पहिया यात्रियों को, रेल की एसी क्लास में सफर करते समय सामान्य कोच के यात्रियों को, बाइक पर चलते समय साइकिल यात्रियों को, रिश्वत लेते पकड़ाए जाने पर शासकीय अधिकारी/बाबू को, चुनाव के दिनों में नामी-गिरामी नेताओं को, घोटाले या स्कैंडल में फंसने पर ताकतवर मंत्रियों को बेचारा बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी जाती है।