बंद को भगवान का समर्थन?
- एमके सांघी
प्रश्न : दद्दू, आज से लेकर दो दिनों के लिए 11 ट्रेड यूनियनों के द्वारा भारत बंद के आयोजन एवं उसके कारण आम जनता को होने वाली तकलीफों के बारे में आप क्या कहेंगे? उत्तर : यही कि बंद के आयोजक अपने मन की संवेदनाओं के द्वार खुले रखकर उसे ऐतिहासिक बना दें। क्या यही अच्छा हो यदि आटो वाले बीमारों तथा रोगियों को अस्पताल ले जाने से मना नहीं करें, एम्बुलेंस व दूध वाहनों को आने-जाने दें, दवा की दुकानों को खुला रखें और अंत में यदि ट्रेन व बस को रोकें तो उसमें बैठे यात्रियों का स्वागत बारात की तरह कर उनके खाने-पीने तथा अन्य आवश्यक जरूरतों का इंतजाम करें और उनका दिल जीत कर अपनी मांगों के लिए समर्थन जुटा लें। असली बंद तो वह होगा जब बंद के आयोजक खुद अपने घर में बंद रहें और उनके समर्थन में जनता ऐच्छिक रूप से काम बंद रखे। बंद दो दिनों के बजाय दो घंटों का भी तो हो सकता है। आह्वान किया जा सकता है कि लोग अपना काम दिन के ग्यारह बजे के बजाए एक बजे आरंभ करें। मांगें जायज होने पर ऐसे किसी भी बंद को जनता दिल से समर्थन देगी और देश का करोड़ों रुपयों का नुकसान भी नहीं होगा। वैसे आजतक किसी भी बंद के दौरान दद्दू ने किसी मंदिर, मस्जिद, चर्च या गुरुद्वारे पर ताला लगा नहीं देखा। इसका अर्थ क्या यह नहीं हुआ कि ईश्वर मांगों को मनवाने के लिए बंद जैसे कृत्य का कभी समर्थन नहीं करता है।