'दोस्त, दोस्त ना रहा/ प्यार प्यार ना रहा/ जिंदगी हमें तेरा एतबार ना रहा।' राजेन्द्रकुमार, राजकपूर, वैजयंतीमाला अभिनीत फिल्म संगम का यह गीत दर्शाता है कि दोस्त की बेवफाई जिंदगी से एतबार उठने की तरह निराशा की चरम सीमा होती है। जाहिर तौर पर दोस्ती...
दोस्ती इस दुनिया में सबसे बड़ा उपहार है और फ्रेंडशिप-डे यानी दोस्ती का दिन दोस्तों के नाम। यह दिन है आपके और आपके विशेष दोस्तों के नाम। इस दिन दोस्त घूमते-फिरते हैं मौज मस्ती करते हैं। उपहारों का आदान-प्रदान करते हैं। युवाओं में बेहद लोकप्रिय...
महानगरीय सभ्यता के युवा शायद सहमत न हों मगर वास्तविकता यह है कि उनकी 'मित्रता' की अवधारणा और वास्तविक 'मित्रता' की अवधारणा में बुनियादी फर्क है। सायबर कैफे से उपजी यह पीढ़ी इंटरनेट पर चैटिंग, डिस्को, बार
दोस्तों, सोचिए अगर हमारे दोस्त न होते तो यह दुनिया कितनी बेरंग होती। जिंदगी में खुशियों के रंग भरने वाला हसीन रिश्ता है - दोस्ती।
हम किस घर में जन्म लेंगे, हमारे माता-पिता, भाई-बहन, चाचा-ताऊ कौन होंगे, कैसे होंगे,
महाभारत काल के महामानव कृष्ण और उनके बाल सखा सुदामा की मित्रता पर लिखी गई नरोत्तम दास की इन दो पंक्तियों को पढ़कर आज भी मित्रता का सरल व सजीव अनुभव भाव-विभोर कर देता है। दरअसल ये शब्द सिर्फ किसी पद्य का भाग नहीं हैं,
बाहर तेज़ बारिश हो रही थी। बूँदों की टप-टप के बीच बाहरी दुनिया का शोर मंद पड़ रहा था। तंग गली के छोटे से, मगर पक्के मकान में रहने वाला व्यक्ति तेज़ बारिश में भी कुछ देखने का प्रयास कर रहा था।
नन्हे पैर लड़खड़ाते हुए कब खुद सँभलना सीख जाते हैं, पता ही नहीं चलता। माँ-बाप के लिए यह एक सुखद अहसास होता है। अपने बच्चों को यूँ आत्मनिर्भर होते देखना, लेकिन समय के साथ-साथ उनकी मानसिक जरूरतें भी तेजी से बढ़ने लगती हैं।
आज हमारी दिनचर्या इतनी व्यस्त हो गई है कि सुबह से शाम कैसे बीत जाती है, पता ही नहीं चलता। कभी-कभी इतने काम होते हैं कि किसी को देखने या सुनने का भी शायद समय नहीं होता है, पर अक्सर जब हम फुर्सत के क्षणों में होते हैं या अकेले होते हैं
एक संयुक्त परिवार के पास एक पति-पत्नी ने मकान किराए पर लिया था। उस दिन फ्रेंडशिप डे ही था। उस परिवार के लोग बहुत ज्यादा पढ़े-लिखे तो नहीं थे लेकिन व्यवहारकुशल थे।
जब वे पति-पत्नी पड़ोसी बनकर वहाँ पर रहने लगे तो हमेशा उस महिला को लगता था
जिस तरह जोडियाँ स्वर्ग में बनने की बात लोग करते हैं, शायद सच्ची दोस्ती भी स्वर्ग में ही बनती होगी। तभी तो लोग एक बार अपने खून के संबंध को भूल जाते हैं, लेकिन अपने सच्चे दोस्त को कभी भुला नहीं पाते। जहाँ रिश्तों में भौतिकता अहम हो गई है,