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2019 में वो लेखक जिनकी कलम थमी और दुनिया को कहा अलविदा

2019 में वो लेखक जिनकी कलम थमी और दुनिया को कहा अलविदा - writers death in 2019
साल 2019 में हिन्‍दी साहित्‍य के खाते में कई उपलब्‍धियां रहीं, कई अच्‍छी किताबें आई तो कई कविताएं लिखी गई। लेकिन यह साल पाठकों को टीस भी देकर गया। इस साल हिन्‍दी के कई वरिष्‍ठ लेखकों ने अपनी कलम को विराम दिया और वे दुनिया को अलविदा कहकर चले गए। दुखद यह था कि कुछ लेखक असमय हादसे का शिकार हो गए। गंगाप्रसाद विमल एक ऐसा ही नाम है जिनका दुर्घटना में निधन हो गया।  

अपनी कलम से आत्‍मा और मन की अनंत गहराइयों को खोजने का काम करने वाले इन लेखकों ने हिन्‍दी साहित्‍य में जो योगदान दिया वो कालजयी रहेगा। आईये जानते हैं आलोचक  नामवर सिंह और बेबाक लेखिका कृष्‍णा सोबती से लेकर अन्‍य लेखकों के बारे में जिन्‍होंने कहा अलविदा।

नामवर सिंह (लेखक,आलोचक)
हिन्‍दी साहित्‍य में नामवर सिंह एक प्रतिष्‍ठित नाम रहा है। उन्‍होंने हिन्‍दी साहित्‍य में साहित्यकार और आलोचना की विधा में श्रेष्ठ काम किया। इस साल 20 फरवरी को 92 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया। हिन्‍दी साहित्य में उन्‍हें दूसरी परंपरा का अन्वेषी माना जाता है। क्‍योंकि उन्‍होंने आलोचना और साक्षात्कार विधा में नए आयाम पैदा किए। वे साहित्य अकादमी सम्मान से भी सम्मानित किए गए थे। जब भी लेखन में आलोचना का जिक्र होगा सबसे पहले नामवर सिंह का नाम आएगा। 

कृष्णा सोबती, (लेखिका)
इस साल 25 जनवरी को लेखिका कृष्णा सोबती का भी निधन हो गया, उन्‍हें साहित्य अकादमी और ज्ञानपीठ सम्‍मान मिला था। 18 फरवरी 1925 को पाकिस्तान के एक कस्बे में सोबती का जन्म हुआ था। उन्होंने अपनी रचनाओं में महिला सशक्तिकरण और स्त्री जीवन की जटिलताओं का जिक्र किया था। उनके उपन्यास ‘मित्रो मरजानी’ को हिन्‍दी साहित्य में एक बेहद बोल्ड रचना में गिना जाता है। 2015 में देश में असहिष्णुता के माहौल से नाराज होकर उन्होंने अपना साहित्य अकादमी अवॉर्ड वापस लौटा दिया था। उनके एक और उपन्यास ‘जिंदगीनामा’ को हिन्‍दी साहित्य की कालजयी रचनाओं में माना जाता है। उन्हें पद्मभूषण सम्‍मान की पेशकश की गई थी, लेकिन उन्होंने ठुकरा दिया था। उनके उपन्यासों में सूरजमुखी अंधेरे के, दिलोदानिश, ज़िन्दगीनामा, ऐ लड़की, समय सरगम, मित्रो मरजानी का आज भी नाम लिया जाता है।

गिरीश कर्नाड, (अभिनेता)
मशहूर एक्टर और जाने माने रंगमंच कलाकार गिरीश कर्नाड भी इस साल दुनिया को अलविदा कह गए। 10 जून को उनका निधन हुआ था। अभिनेता, फिल्म डायरेक्टर और लेखक गिरीश कर्नाड ने बॉलीवुड और साउथ सिनेमा में कई फिल्में की थी। गिरीश कर्नाड को 1978 में नेशनल अवॉर्ड भी दिया गया था। उन्‍हें ज्ञानपीठ पुरस्कार भी मिला। कमर्शियल के साथ ही समानांतर सिनेमा में भी उन्होंने कई बेहतरीन फिल्में दी। कर्नाड ने 100 से ज्यादा फिल्मों में काम किया है। आखिरी बार वो सलमान खान की फिल्म टाइगर जिंदा है में नजर आए थे।

गंगाप्रसाद विमल, (लेखक)
लेखकों के अलविदा कहने की खबरों में सबसे दुखद खबर गंगा प्रसाद विमल को लेकर आई। हिन्‍दी के जाने माने लेखक, अनुवादक और जवाहरलाल नेहरू विश्विद्यालय के पूर्व प्रोफेसर गंगा प्रसाद विमल का हाल ही में श्रीलंका में एक सड़क दुर्घटना में निधन हो गया। वे 80 वर्ष के थे।  हादसे में उनके परिवार के 2 अन्य सदस्यों की भी मौत हो गई। वे दक्षिण गेले टाउन से कोलंबो की ओर एक वैन से जा रहे थे। इसी दौरान ड्राइवर को नींद की झपकी आ गई और उनकी कार दुर्घटनाग्रस्‍त हो गई। उत्तराखंड में 3 जून 1939 में विमल का जन्म हुआ था। विमल केंद्रीय हिंदी निदेशालय के निदेशक भी रह चुके थे। वह ओस्मानिया विश्विद्यालय और जेएनयू में शिक्षक भी रहे थे और दिल्ली विश्विद्यालय के जाकिर हुसैन कॉलेज से भी जुड़े थे। पंजाब विश्विद्यालय से 1965 में पीएचडी करने वाले विमल महत्वपूर्ण कवि, कहानीकार, उपन्यासकार और अनुवादक भी थे। विमल का काव्य संग्रह 1967 में विज्जप नाम से आया था। पहला उपन्यास ‘अपने से अलग’ 1972 में आया था। उन्‍होंने प्रेमचंद और मुक्तिबोध पर किताबें थी। उनकी करीब 20 से अधिक पुस्तकें छपी थीं और कई राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी मिले थे।

किरण नागरकर, (लेखक)
प्रसिद्ध उपन्यासकार और नाटककार किरण नागरकर का इस साल मुंबई में निधन हुआ। 1942 में मुंबई में पैदा हुए नागरकर ने 1974 में मराठी में अपना पहला उपन्यास 'सात सक्कं त्रेचाळीस' प्रकाशित किया था। इसके बाद 'क्यूकोल्ड' (1997) ने उन्हें साल 2001 का साहित्य अकादमी पुरस्कार दिलाया और उन्हें अंग्रेजी भाषा में आजादी के बाद के सबसे सम्मानित भारतीय लेखकों में शामिल किया गया था। उनकी दूसरी किताबों में 'गॉड्स लिटिल सोल्जर' (2006), 'रावण एंड एडी' (2004) और इसके दो सीक्वेल- 'द एक्स्ट्रा' (2012) और 'रेस्ट इन पीस' (2015) औ 'बेडटाइम स्टोरीज' और फिर,' जसोदा '(2018) शामिल है। उनका सबसे हालिया काम 'द आर्सेनिस्ट' (2019) में आया था। नागरकर ने एक अकादमिक, पत्रकार, पटकथा लेखक के तौर पर काम किया था। 77 साल के नागरकर को ब्रेन हेमरेज हुआ था।

 
प्रदीप चौबे, (हास्‍य कवि)
हास्‍य कविता में मंच पर प्रथम श्रेणी के कवि रहे प्रदीप चौबे का भी इसी साल निधन हो गया। उनकी कई रचनाएं प्रसिद्ध हैं, जिनमें 'आलपिन', 'खुदा गायब है', 'चुटकुले उदास हैं' और 'हल्के-फुल्के' शामिल हैं। उनके निधन के दो महीने पहले ही उनके दूसरे बेटे का भोपाल में निधन हो गया था। इससे भी वे सदमे थे। महाराष्‍ट्र के चंद्रपुर में उनका 26 अगस्त 1949 को उनका जन्‍म हुआ था। बाद में वे ग्वालियर आकर बस गए। वे बैंक में नौकरी करते थे, लेकिन बाद में कवि सम्‍मेलनों की व्‍यस्‍तता के चलते उन्‍होंने नौकरी छोड़ दी।
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