Hinduism and Environment: हिंदू धर्म में प्रकृति के सभी तत्वों की पूजा और प्रार्थना का प्रचलन और महत्व है, क्योंकि हिंदू धर्म मानता हैं कि प्रकृति से हमें बहुत कुछ प्राप्त होता है। इसीलिए पूजा के माध्यम से हम उन्हें आभार व्यक्त करते हैं। प्रकृति ही ईश्वर की पहली प्रतिनिधि है। प्रकृति के सारे तत्व ईश्वर के होने की सूचना देते हैं। इसीलिए प्रकृति को देवता, भगवान और पितृ माना गया है।
1. वृक्ष पूजा : हिंदू शास्त्र में वृक्ष को ईश्वर का प्रतिनिनिध माना गया है। प्रत्येक वृक्ष एक देवाता का प्रतिनिधित्व करता है। जैसे पीपल विष्णु और लक्ष्मी का, शमी शनिदेव का, तुलसी वृंदा का और बिल्वपत्र शिवजी का। यहां पर वृक्ष के नाम पर व्रत भी रखे जाते हैं। जैसे आंवला नवमी, वट सावित्री व्रत, अश्वत्थोपनयन व्रत आदि। शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति एक पीपल, एक नीम, दस इमली, तीन कैथ, तीन बेल, तीन आँवला और पाँच आम के वृक्ष लगाता है, वह पुण्यात्मा होता है और कभी नरक के दर्शन नहीं करता और इन वृक्षों को काटना है वह घोर पाप कर्म करता है। किसी भी कारण से वृक्ष के काटने पर दूसरे 10 वृक्षों का रोपण और पालन करने वाला उसके पाप से मुक्त हो सकता है।
अश्वत्थमेकम् पिचुमन्दमेकम्
न्यग्रोधमेकम् दश चिञ्चिणीकान्।
कपित्थबिल्वाऽऽमलकत्रयञ्च पञ्चाऽऽम्रमुप्त्वा नरकन्न पश्येत्।।
अर्थात्- जो कोई इन वृक्षों के पौधों का रोपण करेगा, उनकी देखभाल करेगा उसे नरक के दर्शन नहीं करना पड़ेंगे।
अश्वत्थः = पीपल (100% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
पिचुमन्दः = नीम (80% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
न्यग्रोधः = वटवृक्ष(80% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
चिञ्चिणी = इमली (80% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
कपित्थः = कविट (80% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
बिल्वः = बेल(85% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
आमलकः = आवला(74% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
आम्रः = आम (70% कार्बन डाइऑक्साइड सोखता है)
(उप्ति = पौधा लगाना)
2. नदी पूजा : हिंदू धर्म में नदियों को देवी कहा गया है। गंगा, यमुना, नर्मदा, सरस्वती, ताप्ती, कावेरी आदि कई नदियों के महत्व का पुराणों में उल्लेख मिलता है। नदियों को गंदा करना, उनमें थूकना, नदी किनारे पेशाब करना, उनका जल नहरों के रूप में अन्य जगर विस्तारित करना और उन पर बांध बनाना पाप माना गया है। नदियों की हिंदू धर्म में पूजा और आरती होती है।
3. देव और देवियां की पूजा : इस प्रकृति को मुख्य रूप से पांच देवियां संचालित करती हैं। 1.देवी दुर्गा, 2.महालक्ष्मी, 3.सरस्वती, 5.सावित्री और 5.राधा। इनके बारे में सभी जानते ही हैं। षठप्रहरिणी असुरमर्दिनी माता दुर्गा का एक रूप है वनदुर्गा। वनों की पीड़ा सुनकर उनमें आश्रय लेने वाले दानवोंका वध करने और वनों की रक्षा करने वनदुर्गा के रूपमें अवतरित हुई एक शक्ति है। वनों की पुत्री देवी मारिषा के पोषण हेतु वनदुर्गाका यह अवतार सभी मातृकाओंमे श्रेष्ठ माना जाता है। देवी तुलसी का नाम वृंदा है। देवी आर्याणि जंगल की रक्षा करने वाली देवी हैं। विश्वदेवों से से एक वनस्पति देव हैं जो वनस्पति की रक्षा करते हैं। आरण्यिका नागदेव भी वनों की रक्षा करते हैं।
4. ग्रह नक्षत्र और प्रकृति : ज्योतिष के अनुसार प्रत्येक पेड़, पौधा और वस्तु किसी ना किसी ग्रह, नक्षत्र और राशियों से जुड़े हुए हैं। यह सभी हमारे जीवन को संचालित करते हैं। ज्योतिष मानता है कि हम प्रकृति के प्रभाव से मुक्त नहीं हो सकते क्योंकि हम प्रकृति का हिस्सा ही हैं। यदि हम उक्त ग्रहों के अनुसार नगर, ग्राम और घर के आसपास वैसे ही वृक्ष लगाएं तो इससे एक ओर जहां पर्यावरण में सुधार होगा वहीं ग्रह नक्षत्रों का बुरा प्रभाव भी नहीं रहता है।
ज्योतिष मानता है कि शमी को जल चढ़ाने से शनि की बाधा, पीपल को जल चढ़ाने से बृहस्पति की बाधा, नीम को जल चढ़ाने से मंगल की बाधा, मंदार, तेजफल या सूर्यमुखी को जल चढ़ाने या सूर्य को अर्ध्य देने से सूर्य की बाधा, पोस्त, पलाश या दूध वाले पेड़ पोधों को सिंचित करने से चंद्र की बाधा, केला और चौड़े पत्ते वाले पेड़ को जल देने से बुध की बाधा, मनी प्लांट, कपास, गुलर, लताएं या फलदार वृक्ष की सेवा करने से शुक्र की बाधा, नारियल पेड़ में जल देने से राहु की बाधा और इमली के पेड़ में जल देने से केतु की बाधा दूर होती है।
इसी तरह ज्योतिष अनुसार पशु, पक्षी और कई तरह की वस्तुएं भी किसी न किसी ग्रह नक्षत्रों का प्रतिनिधित्व करती हैं। जैसे हाथी और जंगली चूहा राहु का, कुत्ता, गधा, सूअर और छिपकली केतु का, भैंस या भैंसा शनि का, बंदर या कपिला गाय सूर्य का, घोड़ा चंद्र का, शेर, ऊंट और हिरण मंगल का, बकरा, बकरी और चमगादढ़ बुध का, बब्बर शेर गुरु का और अश्व, गाय और बैल शुक्र का प्रतिनिधित्व करते हैं।
5. पहाड़ : हिंदू और जैन धर्म के कई तीर्थ पहाड़ों पर भी स्थित है। हिंदू धर्म में अधिकतर पहाड़ों पर देवियों के मंदिर स्थित है जो जैन धर्म में मुनियों के तपोस्थल। भारतीय संस्कृति और धर्म में पहाड़ों को बहुत महत्व दिया गया है।