जंजीर : फिल्म समीक्षा
प्रकाश मेहरा के बेटों में इतना दम नहीं है कि वे कुछ नया बना पाएं, इसलिए अपने पिता की सुपरहिट फिल्म ‘जंजीर’ (जिसने हमें एंग्री यंग मैन दिया) के रीमेक का सहारा लेकर उन्हें फिल्म प्रोड्यूस करने का अवसर मिल गया। जंजीर के नाम पर दक्षिण के स्टार रामचरण, बॉलीवुड की टॉप हीरोइन प्रियंका चोपड़ा और निर्देशक अपूर्व लाखिया जैसे लोग भी जुड़ गए इस उम्मीद के साथ कि जंजीर के नाम पर कुछ दर्शक भी जुट जाएंगे। जंजीर (2013) में पुरानी जंजीर के किरदारों, कुछ यादगार दृश्यों और संवादों को जस का तस रख दिया गया। कुछ बदलाव आज के दौर के मुताबिक कर दिए गए, लेकिन ये बदलाव भी इतने घिसे-पिटे हैं कि यह फिल्म आज के दौर के नहीं बल्कि बीस साल पुरानी फिल्म जैसी लगती है। मूल बात तो ये है कि ‘जंजीर’ का रीमेक बनाना ही सही नहीं है। उस दौर के हिसाब से जरूर कहानी ठीक-ठाक थी, जिसमें अमिताभ बच्चन ने अपने अभिनय से ऐसी आग लगाई कि सीधे दर्शकों के दिल में जगह बनाई और नंबर वन स्टार बन बैठे। लेकिन अब मां-बाप की मौत का बदला और विलेन से सीधी टक्कर का फॉर्मूला इतनी बार दोहराया जा चुका है कि इस थीम पर फिल्म देखना थकाऊ और पकाऊ है। न रामचरण के अभिनय में बिग बी जैसी आग है कि वे फिल्म को अपने कंधो पर ढो सके। ऊपर से निर्देशक अपूर्व लाखिया ने कहानी का प्रस्तुतिकरण ऐसा रखा है जैसे दक्षिण भारत की कोई डब फिल्म देख रहे हों। सामान्य से तेज गति के डांस और फाइट सीन, बेमतलब की डायलॉगबाजी, कान के परदे हिला देने वाला बैकग्राउंड म्युजिक और जंप लेते सीन की इडली-सांबर फिल्मों का दौर जो चल रहा है। फिल्म के हीरो विजय खन्ना (रामचरण) को सपने में उस कातिल के हाथ पर बना टैटू दिखता है, जिसने चाकू घोंप पर उसके माता-पिता को मार डाला था। उसे एक घोड़ा भी नजर आता रहता है, क्यों? इसका जवाब आखिर तक नहीं मिलता। ईमानदार पुलिस ऑफिसर होने के कारण उसके तबादले होते रहते हैं। हद तो तब हो जाती है जब उसका आंध्र प्रदेश से ट्रांसफर सीधे महाराष्ट्र हो जाता है। माला नामक एक लड़की एक हत्या की चश्मदीद गवाह रहती है। यह भूमिका प्रियंका चोपड़ा ने निभाई है और याद नहीं पड़ता कि इतनी घटिया एक्टिंग उन्होंने पिछली बार कब की थी।माला गवाह बन जाती है तो उसकी जान पर खतरा मंडराने लगता है। विजय अपने घर में उसे जगह दे देता है। ये पता ही नहीं चलता कि कब दोनों में प्यार हो गया और तुरंत दोनों बिस्तर पर नजर आते हैं।
फिल्म समीक्षा का शेष भाग और रेटिंग अगले पेज पर..
जे डे नामक क्राइम रिपोर्टर की मुंबई में गोली मार कर हत्या कर दी गई थी। उससे प्रेरित किरदार नई जंजीर में जोड़ा गया है। फिल्म में शेर खान (संजय दत्त) भी है जो बेईमानी का धंधा भी ईमानदारी से करता है। प्राण और अमिताभ कि एक्टिंग कितनी दमदार थी, इसकी तुलना आप एक महान सीन से कर सकते हैं, जिसमें प्राण पुलिस थाने में जाते हैं और जैसे ही कुर्सी पर बैठते वाले होते हैं तो अमिताभ कुर्सी पर लात मारकर बोलते हैं ये पुलिस स्टेशन है तुम्हारे बाप का घर नहीं। उस सीन में अमिताभ की आंखों में अंगारे देखे जा सकते हैं। इस सीन के फिल्मांकन के बाद प्राण निर्देशक प्रकाश मेहरा को कोने में ले गए थे और उन्होंने कहा था कि बॉलीवुड को नया सुपरस्टार मिल गया है। नई जंजीर में रामचरण और संजय दत्त उस सीन का पांच प्रतिशत प्रभाव भी पैदा नहीं कर पाए। विजय की सीधी टक्कर होती है तेजा (प्रकाश राज) से। वह ऑइल माफिया है और बातें भी वैसी ही करता है। अपने से उम्र में ज्यादा छोटी मोना (माही गिल) को कहता है ‘ऐज नहीं माइलेज देखना चाहिए।‘ तो मोना उसे वियाग्रा की गोलियां दिखाते हुए कहती है ‘मुझे लांग ड्राइव पर कब ले जाओगे?’ प्रकाश राज और माही गिल के अभिनय को देख तरस आता है कि अच्छे कलाकारों से भी घटिया काम निकलवाया जा सकता है। रामचरण में आत्मविश्वास की कमी नजर आती है। किरदार तो उन्होंने एक दबंग पुलिस ऑफिसर का निभाया है, लेकिन वे डरे हुए और असहज नजर आते हैं। निर्देशक अपूर्व लाखिया ने असेम्बलिंग की है। बिना सिचुएशन के फाइट सीन और गाने घुसेड़ दिए। कही-कही तो कन्टीन्यूटी का ध्यान भी नहीं रखा। फिल्म में ऐसे कई सीन हैं जिनका कोई मतलब नहीं है। उनके सामने एक रेडीमेड मनोरंजक फिल्म थी, उसकी नकल भी ठीक से नहीं कर पाए। फिल्म देखने के बाद विचार आता है कि रीमेक के नाम पर अच्छी-खासी फिल्मों का कबाड़ा करने का खेल जाने कब खत्म होगा?बैनर : रिलायंस एंटरटेनमेंट, अदाई मेहरा प्रोडक्शन्स प्रा.लि., फ्लाइंग टर्टल फिल्म्स, रैम्पेज मोशन पिक्चर्स लि. निर्देशक : अपूर्व लाखिया संगीत : चिरंतन भट्ट, आनंद राज आनंद कलाकार : राम चरण, प्रियंका चोपड़ा, संजय दत्त, प्रकाश राज, अतुल कुलकर्णी, माही गिलसेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 17 मिनट रेटिंग : 1.5/5