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Written By WD
Last Modified: -जनकसिंह झाला , शुक्रवार, 21 दिसंबर 2007 (19:38 IST)

हिन्दुत्व पर भारी है मोदीत्व

हिन्दुत्व पर भारी है मोदीत्व -
बयान-ए
'कांग्रेस कह रही है कि मोदी ने सोहराबुद्दीन का एन्काउंटर करवाया। अब आप ही बताइए मुझे क्या करना चाहिए था? क्या मुझे इसके लिए सोनिया बेन की इजाजत लेने की जरूरत थी और अब भी मैं दोषी हूँ तो केन्द्र मुझे फाँसी पर लटका सकती है'।

बयान-दो
'गुजरात तो क्या, जम्मू में हर दिन कई आतंकवादी मुठभेड़ का शिकार होते हैं। मैं एन्काउंटर का नहीं, बल्कि फर्जी मुठभेड़ का विरोधी रहा हूँ। कांग्रेस अध्यक्ष ने ही मुझे चुनाव प्रचार में हिन्दुत्व का मुद्दा उठाने के लिए उत्तेजित किया और जब भी कांग्रेस यह मुद्दा उठाएगी तब मैं भी उसे उठाऊँगा। मुझे मेरा पक्ष रखने का पूरा अधिकार है'।

आदमी एक और बयान दो, वह भी विपरी‍त। यह बात कुछ हजम नहीं हुई। जी हाँ, गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने यह दोनों अलग-अलग बयान दिए हैं। सोहराबुद्दीन का एन्काउंटर जायज ठहराकर वो शायद गुजरात चुनाव तो जीत ही जाएँगे, लेक‍िन बाद में उनके ऊपर कितनी मुसीबतों का पहाड़ गिरने वाला है, खुद मोदीजी भी नहीं जानते। क्या वे सोहराबुद्दीन के परिजन, जानी-मानी सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता शितलवाड़ और चुनाव आयोग के प्रहार को झेल पाएँगे?

'दिल को देखो चेहरा ना देखो, चेहरे ने लाखों को लूटा, दिल सच्चा और चेहरा झूठा...' फिल्म सच्चा-झूठा का यह गाना मुझे याद आ गया। यहाँ अगर हम मोदीजी का चेहरा न देखें और सिर्फ उनका दिल देखने की ख्वाइश रखें तो भी हम देख नहीं पाएँगे, क्योंकि अब तो उनके समर्थक भी उनका मुखौटा पहनकर चुनाव प्रचार में जुट गए हैं। अब बात यह है कि क्या गुजरात की जनता उस प्लास्टिक के मुखौटे के पीछे छिपे असली चेहरे को पहचान पाएगी। मुझे तो यह भाजपा की पार्टी नहीं, कोई 'मास्करेड पार्टी' लग रही है, जहाँ पर हर शख्स एक जैसे कपड़े और मुखौटे पहने होता है।

दु:ख की बात यह है क‍ि यहाँ पर सिर्फ एक ही शख्स का मुखौटा है और वह है नरेन्द्र मोदी का। आखिर वाजपेयी, आडवाणी और राजनाथ के मुखौटे कहाँ गए? बाजार में तो कहीं दिखाई नहीं दिए। मुखौटे बनाने वाली कंपन‍ियों ने इसके बारे में क्यों नहीं सोचा? मेरा खयाल है इनके मुखौटे बनाकर उन्हें घाटा ही होता।

और तो और चुनाव प्रचार में भाजपा का चुनाव चिह्न 'कमल' भी मुझे कहीं दिख नहीं रहा। कहीं यह कमल मुरझा तो नहीं गया? क्या भाजपा के माली उसकी साज-संभाल नहीं कर रहे।

मुझे याद है एक समय था जब चुनाव के दौरान मेरे शहर की हर दीवार पर, हर नुक्कड़ पर भाजपा का यह नारा- 'जब-जब कमल खिलता रहेगा, देश में भाजपा को समर्थन मिलता रहेगा" लिखा दिखता था।

अब तो 'मोदीत्व' के सामने 'हिन्दुत्व' भी नहीं दिख रहा है। शायद यह मुद्दा अगले पाँच सालों के लिए खूँटी पर टाँग दिया गया है। अब तो सिर्फ और सिर्फ 'सोहराबुद्दीन' और 'मौत का सौदागर' वाला मुद्दा ही भाजपा की कार्यशाला में हाज‍िरी दे रहे हैं।

कृषि, पशुपालन, ग्रामीण विकास, सिंचाई, उद्योग और ऊर्जा के क्षेत्रों को 23 पृष्ठ के घोषणापत्र में बंद कर दिया गया है और इन पृष्ठों में 'अल्पसंख्यक' के नाम पर 'इरेजर' लगा दिया गया है।

भाजपा के प्रवक्ता पुरुषोत्तम रूपाला नरेन्द्र मोदी को 'गुजरात की अस्मिता के प्रतीक' और 'वन-मेन शो' बता रहे हैं तो दूसरी तरफ कांग्रेस मोदी को 'विकास पुरुष' नहीं बल्कि 'विनाश पुरुष' बता रही है। खुद सोनिया गाँधी मोदी को 'मौत का सौदागर' कहती हैं। मुझे तो यह चुनाव भाजपा बनाम कांग्रेस नहीं बल्कि मोदी बनाम सोनिया लग रहा है।