हमें क्यों करना चाहिए पापमोचनी एकादशी का व्रत, जानिए व्रत का महत्व
चैत्र मास में आनेवाली एकादशी इस बार 13 मार्च 2018 को है। यह एकादशी सभी तरह के पापों से मुक्ति दिलाती है। चैत्र कृष्ण एकादशी को पापमोचिनी एकादशी कहा जाता है।
इस व्रत को करने से मनुष्य जहां विष्णु पद को प्राप्त करता है वहीं उसके समस्त कलुष समाप्त होकर निर्मल मन में श्रीहरि का वास हो जाता है। यह व्रत चैत्रादि सभी महीनों के शुक्ल और कृष्ण दोनों पक्षों में किया जाता है। फल दोनों का ही समान है। शुक्ल और कृष्ण में कोई विशेषता नहीं है। पापमोचनी एकादशी का व्रत करने से सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति होती है तथा मनुष्य को मोक्ष प्राप्ति मिलने की संभावना बढ़ जाती है।
जिस प्रकार शिव और विष्णु दोनों आराध्य हैं, उसी प्रकार कृष्ण और शुक्ल दोनों पक्षों का एकादशी उपोष्य है। विशेषता यह है कि पुत्रवान् गृहस्थ शुक्ल एकादशी और वानप्रस्थ तथा विधवा दोनों का व्रत करें तो उत्तम होता है। इसमें शैव और वैष्णव का भेद भी आवश्यक नहीं क्योंकि जो जीवमात्र को समान समझे, निजाचार में रत रहे और अपने प्रत्येक कार्य को विष्णु और शिव को अर्पण करता रहे। वही शैव और वैष्णव होता है। अतः दोनों के श्रेष्ठ बर्ताव एक होने से शैव और वैष्णवों में अपने आप ही अभेद हो जाता है।
इस सर्वोत्कृष्ट प्रभाव के कारण ही शास्त्रों में एकादशी का महत्व अधिक माना गया है। इसके शुद्धा और विद्धा- ये दो भेद हैं। दशमी आदि से विद्ध हो, वह विद्धा और अविद्ध हो वह शुद्धा होती है। इस व्रत को शैव, वैष्णव सब करते हैं। इस विषय में बहुतों के विभिन्न मत हैं। उनको शैव, वैष्णव और सौर पृथक-पृथक ग्रहण करते हैं। सिद्धांत रूप से उदयव्यापिनी ली जाती है।
शास्त्रों में कहा गया है कि एकादशी का उपवास 80 वर्ष की आयु होने तक करते रहना चाहिए। किंतु असमर्थ व्यक्ति को उद्यापन कर देना चाहिए जिसमें सर्वतोभद्र मण्डल पर सुवर्णादि का कलश स्थापन करके उस पर भगवान की स्वर्णमयी मूर्ति का शास्त्रोंक्त विधि से पूजन करें। घी, तिल, खीर और मेवा आदि से हवन करें।
दूसरे दिन द्वादशी को प्रातः स्नान के पीछे गोदान, अन्नदान, शय्यादान, भूयसी आदि देकर और ब्राह्मण भोजन कराकर स्वयं भोजन करें। ब्राह्मण भोजन के लिए 26 द्विजदंपतियों को सात्विक पदार्थों का भोजन कर सुपूजित और वस्त्रादि से भूषित 26 कलश दें।
चैत्र कृष्ण एकादशी को पापमोचनी एकादशी कहा गया है। यह पापों से मुक्त करती है। च्यवन ऋषि के उत्कृष्ट तपस्वी पुत्र मेधावी ने मंजुघोषा के संसर्ग से अपना संपूर्ण तप-तेज खो दिया था किंतु पिता ने उससे चैत्र कृष्ण एकादशी का व्रत करवाया। तब उसके प्रभाव से मेधावी के सब पाप नष्ट हो गए और वह पहले की तरह अपने धर्म-कर्म, सदनुष्ठान और तपस्या में संलग्न हो गया। ऐसी पवित्रता पूर्ण है यह पापमोचनी एकादशी।