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जानिए ईदुज्जुहा का महत्व, कोरोना काल में ऐसे मनाएं बकरीद, रहें सुरक्षित
शुक्रवार,जुलाई 31, 2020
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ईद-उल-अजहा को कई नामों से जाना जाता है। ईदे-अजहा को नमकीन ईद भी कहा जाता है। यह मुस्लिम भाइयों का महत्वपूर्ण त्योहार है।
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मुसलमानों के लिए अल्लाह ने खुशी मनाने के लिए साल में मुकर्रर दो ईद में से एक ईदुल-अजहा है। ईद-उल-अजहा पैगंबर हजरत इब्राहीम अलेहिस्सलाम द्वारा अल्लाह के
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ईद-उल-अजहा को 'नमकीन ईद' के नाम से भी जाना जाता है। आइए जानें पर इस खास मौके पर बनाई जाने वाली खास डिशेस
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ईद उल फित्र का दिन पवित्र रमज़ान माह के बाद आता है़ जब सभी लोग पूरे माह रमज़ान के रोज़े रखने के बाद अल्लाह से दुआ करते हैं। इसके बाद शव्वाल माह आता है
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ईद-उल-अजहा के इस्लामी माह को कुर्बानी का महीना भी कहते हैं। यह उस माह की 10 तारीख को मनाया जाता है, जो 3 दिनों तक जारी रहता है। इसमें इस्लाम धर्म के अनुयायी जानवरों की कुर्बानी देते हैं।
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इब्राहीम अलैय सलाम एक पैगंबर गुजरे हैं, जिन्हें ख्वाब में अल्लाह का हुक्म हुआ कि वे अपने प्यारे बेटे इस्माईल (जो बाद में पैगंबर हुए) को अल्लाह की राह में कुर्बान कर दें।
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ईद की नमाज सुबह दस बजे तक अदा कर ली जाती है। नमाज के बाद क़ुर्बानी का दौर शुरू होता है। इसके बाद साफ-सफाई और फिर गोश्त के हिस्से कर, पकाने का काम शुरू होता है।
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दुनिया भर में 31 जुलाई या फिर 1 अगस्त को बकरीद ईद मनाई जाएगी। हालांकि भारत में ईद पर चांद के दीदार होने के बाद 1 अगस्त को मनाए जाने की उम्मीद है।
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ईद-उल फितर का त्योहार खुदा का इनाम है, मुसर्रतों का आगाज है, खुशखबरी की महक है, खुशियों का गुलदस्ता है, मुस्कुराहटों का मौसम है, रौनक का जश्न है। इसलिए ईद का चांद नजर आते ही माहौल में एक गजब का उल्लास छा जाता है।
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मुसलमानों का सबसे बड़ा त्योहार कहा जाने वाला ईद-उल-फितर पर्व न सिर्फ हमारे समाज को जोड़ने का मजबूत सूत्र है, बल्कि यह इस्लाम के प्रेम और सौहार्दभरे संदेश को भी पुरअसर ढंग से फैलाता है।
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अल्लाह की नेमतों और बरकतों से भरपूर इस्लाम के पवित्र महीने रमजान के बाद ईद उल फितर का त्योहार मनाया जाएगा। ईद की नमाज के बाद इमाम खुत्बा देते हैं और दुआ फरमाते हैं।
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पवित्र महीने रमजान के बाद अल्लाह की नेमतों को पाने के लिए देशभर में ईद उल फितर का त्योहार मनाया जाएगा। ईद का यह त्योहार रमजान के पूरे होने की खुशी में मनाया जाता है।
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उन्तीसवां रोज़ा आ रहा है। इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार, रमजान माह के बाद आनेवाले 10वें महीने शव्वाल की पहली तारीख को ईद-उल-फितर का त्योहार मनाया जाता है। ईद कब मनाई जाएगी यह चांद के दीदार होने पर तय किया जाता है।
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यूं तो मीठी ईद और सिवइयां एक-दूसरे के पर्याय हैं, लेकिन इसके अलावा और भी कई व्यंजन इस त्योहार पर बनते हैं। ईद के बाजारों में सिवइयों के दिल लुभाते ढेरों के अलावा
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इस आयत की रोशनी में अट्ठाईसवां रोजा बेहतर तौर पर समझा जा सकता है। गौरतलब बात है कि रमजान का यह आखिरी अशरा दोजख से निजात (नर्क से मुक्ति) का अशरा (कालखंड) है।
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सत्ताईसवां रोजा तो वैसे भी दोजख से निजात के अशरे (नर्क से मुक्ति के कालखंड) में अपनी अहमियत रखता ही है।
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रमजान मुबारक का तीसरा अशरा ढलान पर है। तीसरे अशरे की 27वीं शब को शब-ए-कद्र के रूप में मनाया जाता है। इसी मुकद्दस रात में कुरआन भी मुकम्मल हुआ।
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रमजान के माह में शबे-कद्र ऐसी ही खास और मुकद्दस (पवित्र) रात है जिसमें अल्लाह ने हजरत मोहम्मद (सल्ल.) के जरिए से कुरआने-पाक की सौग़ात दी
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माहे-रमजान का कारवां पच्चीसवें रोजे तक पहुंच गया है। नर्क से मुक्त का कालखंड चल रहा है।
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