• Webdunia Deals
  1. धर्म-संसार
  2. »
  3. व्रत-त्योहार
  4. »
  5. विजयादशमी
Written By WD

कुल्लू का दशहरा : महत्वपूर्ण बातें

कुल्लू का दशहरा
यज्ञ का न्योता : कुल्लू के दशहरे में अश्विन महीने के पहले पंद्रह दिनों में राजा सभी देवी-देवताओं को धालपुर घाटी में रघुनाथ जी के सम्मान में यज्ञ करने के लिए न्योता देते हैं। सौ से ज्यादा देवी-देवताओं को रंगबिरंगी सजी हुई पालकियों में बैठाया जाता है। इस उत्सव के पहले दिन दशहरे की देवी, मनाली की हिडिंबा कुल्लू आती है राजघराने के सब सदस्य देवी का आशीर्वाद लेने आते हैं।



रथयात्रा :- रथ यात्रा का आयोजन होता है। रथ में रघुनाथ जी की प्रतिमा तथा सीता व हिडिंबा जी की प्रतिमाओं को रखा जाता है, रथ को एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जाता है जहां यह रथ छह दिन तक ठहरता है। इस दौरान छोटे-छोटे जलूसों का सौंदर्य देखते ही बनता है।


मोहल्ला : - उत्सव के छठे दिन सभी देवी-देवता इकट्ठे आ कर मिलते हैं जिसे 'मोहल्ला' कहते हैं। रघुनाथ जी के इस पड़ाव सारी रात लोगों का नाच गाना चलता है। सातवें दिन रथ को बियास नदी के किनारे ले जाया जाता है जहां लंकादहन का आयोजन होता है।


उत्सव की निराली छटा :- इसके पश्चात रथ को पुनः उसके स्थान पर लाया जाता है और रघुनाथ जी को रघुनाथपुर के मंदिर में पुनःस्थापित किया जाता है। इस तरह विश्व विख्यात कुल्लू का दशहरा हर्षोल्लास के साथ संपूर्ण होता है। कुल्लू नगर में देवता रघुनाथजी की वंदना से दशहरे के उत्सव का आरंभ करते हैं, दशमी पर उत्सव की शोभा निराली होती है