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Last Updated : गुरुवार, 29 सितम्बर 2022 (15:44 IST)

दशहरा पर्व का शमी पत्ते से क्या है पौराणिक कनेक्शन?

दशहरा पर्व का शमी पत्ते से क्या है पौराणिक कनेक्शन? - What is the mythological connection of Shami Puja
दशहरे के दिन शमी वृक्ष की पूजा का प्रचलन है। इसके साथ ही जब लोग रावण दहन करके आते हैं तो रास्ते से शमी के पत्ते भी लेकर आते हैं। उन पत्तों को स्वर्ण मुद्राओं के प्रतीक के रूप में एक दूसरे को देते हैं। आखिर क्या है शमी पत्ते का पौराणिक कनेक्शन? क्या है इसकी पूजा करने का रहस्य? जानिए 6 खास बातें।
 
1. मान्यता है कि भगवान श्रीराम ने लंका पर आक्रमण करने के पूर्व शमी वृक्ष के सामने शीश नवाकर अपनी विजय हेतु प्रार्थना की थी। बाद में लंका पर विजय पाने के बाद उन्होंने शमी पूजन किया था। 
 
2. कहते हैं कि लंका से विजयी होकर जब राम अयोध्या लौटे थे तो उन्होंने लोगों को स्वर्ण दिया था। इसीके प्रतीक रूप में दशहरे पर खास तौर से सोना-चांदी के रूप में शमी की पत्त‍ियां बांटी जाती है। कुछ लोग खेजड़ी के वृक्ष के पत्ते भी बांटते हैं जिन्हें सोना पत्ति कहते हैं।
 
3. महाभारत अनुसार पांडवों ने देश निकाले के अंतिम वर्ष में अपने हथियार शमी के वृक्ष में ही छिपाए थे। बाद में उन्होंने वहीं से हथियार प्राप्त किए थे तब उन्होंने शमी की पूजा की थी।
 
4. महर्षि वर्तन्तु ने अपने शिष्य कौत्स से दक्षिणा में 14 करोड़ स्वर्ण मुद्राएं मांग ली। तब कौत्स ने राजा रघु से इस संबंध में मदद मांगी क्योंकि उसके पास तो इती स्वर्ण मुद्राएं नहीं थी। राजा रघु को कुबेर के खजाने को प्राप्त करने के लिए स्वर्ग पर आक्रमण करने की योजना बनाए यह जानकर इंद्र ने शमी वृक्ष के माध्यम से राजा रघु के राज्य में स्वर्ण मुद्राओं की वर्षा करदी दी थी।
 
5. दशहरे पर इस वृक्ष के पूजन से शनि प्रकोप शांत हो जाता है क्योंकि यह वृक्ष शनिदेव का साक्षात्त रूप माना जाता है।
 
6. विजयादशमी के दिन शमी वृक्ष पूजा करने से घर में तंत्र-मंत्र का असर खत्म हो जाता है।