दृष्टिहीनता का कारण भी दृष्टिदोष
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डॉ. एमसी नाहटा
विश्व में दृष्टिदोष के कारण दृष्टिहीन व्यक्तियों की संख्या कम नहीं है। बड़े नंबर के चश्मे की आवश्यकता होकर भी चश्मा न पहनने वालों की संख्या भी अधिक है, परिणामस्वरूप वे दृष्टिहीनों की श्रेणी में आ जाते हैं। इस श्रेणी के लोगों की संख्या मोतियाबिंद के बाद दूर की जा सकने वाली दृष्टिहीनता के कारणों में दूसरे क्रम पर है। भारत में ही 40 वर्ष से अधिक आयु की जनसंख्या में 1.06 प्रतिशत दृष्टिदोष है, वहीं चीन में दृष्टिदोष का प्रतिशत 0.59 है। यह जानना सामयिक होगा कि नेत्र की लंबाई 24 मिमी होती है। लंबाई के कम या अधिक होने पर या आँख के अगले काले चमकदार भाग 'कॉर्निया' के असामान्य घुमाव-कर्वेचर से दृष्टिदोष होते हैं। इस प्रकार के दृष्टिदोष निम्नांकित होते हैं-* मायोपिया : निकट दृष्टिता, * हायपरमेट्रोपिया : दूरदृष्टिता, * एस्टीगमेटीज्म : दृष्टिवैषम्यमायोपिया : एक ऐसी स्थिति है जिसमें किसी भी वस्तु का प्रतिबिंब दृष्टिपटल (रेटिना) पर नहीं बनता है। इस दृष्टिदोष के कारणों में आज भी अनिश्चय का वातावरण है। वंशानुगत, अंतःश्रावी या अंदर की ग्रंथियों के रस के उत्पादन में गड़बड़ी, कुपोषण तथा कमजोरी इसके लिएदोषी माने गए हैं। इस प्रकार के दृष्टिदोष के लक्षण हैं :* दूर की वस्तु साफ नहीं दिखना * पास का काम करने में असुविधा * आँख के सामने काले धब्बे आना * आँख में चमक महसूस करना * आँख में लाली तथा पानी आना * पुतली तथा आँख असाधारण रूप से बड़ी होना * आँख में तिरछापन भी संभव हैउपचार* उपयुक्त चश्मा या कॉन्टेक्ट लैंस का उपयोग * काम के समय उचित प्रकाश व्यवस्था * भोजन में पर्याप्त मात्रा में पौष्टिक तत्वों का समावेश वर्तमान में मायोपिया में चश्मे से निजात पाने हेतु रिफ्रेक्टिव सर्जरी अत्यधिक लोकप्रिय है। यहाँ तक कि इसका दुरुपयोग भी हो रहा है
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विशेषकर प्रोटीन पर्याप्त मात्रा में होना आवश्यक है।वर्तमान में मायोपिया में चश्मे से निजात पाने हेतु रिफ्रेक्टिव सर्जरी अत्यधिक लोकप्रिय है। यहाँ तक कि इसका दुरुपयोग भी हो रहा है। सामान्य जनमानस को इससे बचाव हेतु भारत सरकार ने 11 पेजी दस्तावेज जनहित में प्रकाशित किए हैं जिसके मुख्य बिंदु चिकित्सकों से संबंधित हैं-
* शल्य चिकित्सा से मायोपिया के शत-प्रतिशत ठीक होने का आश्वासन न देने की सलाह। * आवश्यक रूप से बताया जाए कि शल्य चिकित्सा के पश्चात भी चश्मा लगाना पड़ सकता है। हायपरमेट्रोपिया : इस दोष में आँख की लंबाई सामान्य से कम होती है। फलस्वरूप प्रतिबिंब दृष्टिपटल के पीछे बनता है
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* संदर्भित शल्य चिकित्सा केवल कांतिवर्धक (कॉस्मेटिक) है। * चश्मे का नंबर स्थिर न हो जाए, शल्य चिकित्सा करना अनुचित है। * शल्य चिकित्सा के बाद आँख का पर्दा अपने स्थान से खिसक सकता है (डिटेचमेंट ऑफ रेटिना)। हायपरमेट्रोपिया : इस दोष में आँख की लंबाई सामान्य से कम होती है। फलस्वरूप प्रतिबिंब दृष्टिपटल के पीछे बनता है। जन्म के समय प्रत्येक शिशु की आँख हायपरमेट्रोपिक होती है। आयु के साथ आँख की लंबाई बढ़ती है और यह दोष समाप्त हो जाता है। इस दोष में पासका काम विशेषकर कृत्रिम प्रकाश में काम करने में कठिनाई अधिक होती है।इसके लक्षण हैं-* आँख में सूखापन * जलन, दर्द, भारीपन तथा सिरदर्द * पलकों का अधिक झपकना, तिरछापन भी हो सकता है।उपचार : उपयुक्त चश्मे का उपयोग ही इसका उपचार है। एस्टीगमेटीज्म (दृष्टिवैषम्य)- इस दोष में प्रकाश बिंदु दृष्टिपटल पर प्रतिबिंब को समोचित नहीं कर पाता है। कॉर्निया की गोलाई में त्रुटि या पारदर्शिता प्रभावित होने से यह दोष संभव है। इसके लक्षण हैं-* दृष्टिदोष, अक्षरों का मिला-जुला दिखना * भारीपन, नेत्र गोलक (आई बॉल) में दर्द उपचार : इस हेतु चश्मे का उपयोग आवश्यक है। इसमें विशेष प्रकार के लैंस (सिलेंड्रिकल) दिए जाते हैं। कुछ विशेष परिस्थितियों में कॉन्टेक्ट लैंस भी दिए जाते हैं। प्रेसबायोपिया : यह दोष आयु आधारित है और सामान्य स्थिति में 40 वर्ष की आयु के पश्चात ही होता है। इसका एकमात्र कारण है- बढ़ती उम्र के कारण आँख के अंदर के लैंस का लोच कम होना। इस प्रकार के दोष में आरंभ में शाम के समय कम प्रकाश में पास की वस्तु या पढ़ने-लिखने में कठिनाई होती है। उपचार : चश्मे द्वारा ही होता है जिसे प्रति दो वर्ष में बदलना पड़ता है। क्रम 60 वर्ष की आयु तक चलता है। चश्मे में उत्तक-कॉन्वेक्स लैंस दिए जाते हैं।