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Written By राजश्री कासलीवाल

कार्तिक अमावस्या : महावीर निर्वाणोत्सव

महावीर स्वामी के संदेश

महावीर स्वामी
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भगवान महावीर का जीवन एक खुली किताब की तरह है। उनका जीवन ही सत्य, अहिंसा और मानवता का संदेश है। उनके घर-परिवार में ऐश्वर्य, संपदा की कोई कमी नहीं थी। एक राजा के परिवार में पैदा होते हुए भी उन्होंने ऐश्वर्य और धन संपदा का उपभोग नहीं किया। युवावस्था में कदम रखते ही उन्होंने संसार की माया-मोह और राज्य को छोड़कर अनंत यातनाओं को सहन किया और सारी सुख-सुविधाओं का मोह छोड़कर वे नंगे पैर पदयात्रा करते रहे।

महावीर ने अपने जीवन काल में अहिंसा के उपदेश प्रसा‍रित किए। उनके उपदेश इतने आसान है कि उनको जानने-समझने के लिए किसी विशेष प्रयास की आवश्‍यकता नहीं। एक बार जब महावीर पावा नगरी के मनोहर उद्यान में गए हुए थे, जब चतुर्थकाल पूरा होने में तीन वर्ष और आठ माह बाकी थे। तब कार्तिक अमावस्या के दिन सुबह स्वाति नक्षत्र के दौरान महावीर स्वामी अपने सांसारिक जीवन से मुक्त होकर मोक्षधाम को प्राप्त हो गए।

उस समय इंद्रादि देवों ने आकर भगवान महावीर के शरीर की पूजा की और पूरी पावा नगरी को दीपकों से सजाकर प्रकाशयुक्त कर दिया। उस समय से आज तक यही परंपरा जैन धर्म में चली आ रही है। जैन धर्म में प्रतिवर्ष दीपमालिका सजाकर भगवान महावीर का निर्वाणोत्सव मनाया जाता है। उसी दिन शाम को श्री गौतम स्वामी को कैवलज्ञान की प्राप्ति हुई थी। तब देवताओं ने प्रकट होकर गंधकुटी की रचना की और गौतम स्वामी एवं कैवलज्ञान की पूजा करके दीपोत्सव का महत्व बढ़ाया।

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इसी उपलक्ष्य में सभी जैन बंधु सायंकाल को दीपक जलाकर पुन: नई बही खातों का मुहूर्त करते हुए भगवान गणेश और माता लक्ष्मीजी का पूजन करने लगे। ऐसा माना जाता है कि बारह गणों के अधिपति गौतम गणधर ही भगवान श्रीगणेश हैं, जो सभी विघ्नों के नाशक हैं। उनके द्वारा कैवलज्ञान की विभूति की पूजा ही महालक्ष्मी की पूजा है।

भगवान महावीर के दिव्य-संदेश 'जिओ और जीने दो' को जन-जन तक पहुँचाने के लिए वर्ष-प्रति-वर्ष कार्तिक अमावस्या को दीपक जलाए जाते हैं। मंदिरों, भवनों, कार्यालयों व बाग-बगीचों को दीपकों से सजाया जाता है और भगवान महावीर से कृपा-प्रसाद प्राप्ति हेतु लड्डुओं का नैवेद्य अर्पित कर प्रसाद रूप में वितरित किया जाता है। इसे निर्वाण लाडू कहा जाता है।