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दोहे धर्म के
विपश्यना
धन्य धरम ऐसा मिला, मिली रतन की खान।दुख दारिद सब मिट गए, तन मन पुलकित प्राण॥आदि मांहि कल्याण है, मध्य मांहि कल्याण। अंत मांहि कल्याण है, कदम कदम कल्याण॥शील मांहि कल्याण है, है समाधि कल्याण। प्रज्ञा तो कल्याण ही, प्रकटे पद निर्वाण॥आओ मानव मानवी, चलें धरम की राह। कितने दिन भटकत फिरे, कितने गुमराह॥ कुशल कर्म संचित करें, हो न पाप लवलेश।मन निर्मल करते रहें, यही धरम उपदेश॥आओ मानव मानवी, सुनो धरम का ज्ञान।बोधि ज्ञान जिसका जगा, उसका ही कल्याण॥धर्म सरित निर्मल रहे, मैल न मिश्रित होय।जन जन का होवे भला, जन जन मंगल होय॥निर्मल निर्मल मन का, निर्मल ही फल होय। बंधन टूटे पाप के, मुक्ति दुखों से होय॥चित्त हमारा शुद्ध हो, सद्गुण से भर जाय।करुणा मैत्री सत्य से, मन मानस लहराय॥सेवा करुणा प्यार की, मंगल वर्षा होय।इस दुखियारे जगत के, प्राणी सुखिया होय॥