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Written By भाषा
Last Modified: नई दिल्ली , शनिवार, 16 नवंबर 2013 (15:19 IST)

बिजली के मुद्दे पर कांग्रेस को घेर रहा है विपक्ष

बिजली के मुद्दे पर कांग्रेस को घेर रहा है विपक्ष -
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नई दिल्ली। पिछले 2 वर्षों में बिजली की दरों में 65 प्रतिशत की वृद्धि को भाजपा और 'आप' दोनों ही एक बड़ा मुद्दा बनाकर पेश कर रही हैं। आगामी 4 दिसंबर को होने वाली चुनावी लड़ाई में दिल्ली की सत्ताधारी कांग्रेस को इस मुद्दे पर लोगों के गुस्से का सामना करना पड़ सकता है।

भाजपा और अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (आप) इस मुद्दे को लेकर कांग्रेस सरकार पर हमले बोलती रही है। भाजपा और आप ने सत्ता में आने पर बिजली की दरों में क्रमश: 30 प्रतिशत और 50 प्रतिशत की कमी करने का वादा किया है।

गरीब हों या अमीर, सभी वर्गों के लोगों ने यह बात मानी है कि बिजली की ‘ऊंची’ दरें उनके मासिक बजट को प्रभावित करती रही हैं और मतदान करते समय अन्य मुद्दों के साथ-साथ यह मुद्दा भी उनके दिमाग में रहेगा।

अधिकतर उपभोक्ताओं का यह मानना था कि बिजली की आपूर्ति में सुधार हुआ है, लेकिन बिजली के बढ़े हुए बिल एक बड़ी चिंता बने हुए हैं।

शहर में बिजली की दरों में 22 प्रतिशत की वृद्धि वर्ष 2011 में की गई थी। इसके बाद पिछले साल 5 प्रतिशत की वृद्धि की गई। पिछले साल मई में इन दरों में 2 प्रतिशत वृद्धि की गई और फिर पिछले साल ही जुलाई में घरेलू उपभोक्ताओं के लिए बिजली की दरों में 26 प्रतिशत की और वृद्धि की गई।

फरवरी में बिजली की दरों में 3 प्रतिशत की वृद्धि की गई और फिर दोबारा जुलाई में 5 प्रतिशत की वृद्धि की गई। इसके बाद दिल्ली सरकार के दिल्ली विद्युत नियामक आयोग ने उन लोगों के लिए सब्सिडी की घोषणा की जिनका मासिक उपभोग 400 यूनिट तक सीमित है।

जनकपुरी के निवासी दिनेश कुमार ने कहा कि इस बात में कोई संदेह नहीं है कि बढ़े हुए बिजली बिल लंबे समय से हमारे मासिक बजट को प्रभावित कर रहे हैं। अब हमें अपने बच्चों की शिक्षा के लिए पैसा बचाने में मुश्किल हो रही है।

दिल्ली सरकार और बिजली वितरण की निजी कंपनियों के बीच साठगांठ का आरोप लगाते हुए भाजपा मुख्यमंत्री शीला दीक्षित से पूछती रही है कि उनकी सरकार ने दिल्ली विद्युत नियामक आयोग (डीईआरसी) को मई 2010 में बिजली दरों में लगभग 25 प्रतिशत की कमी की घोषणा करने क्यों नहीं दी थी?

एक अप्रत्याशित कदम के तहत दिल्ली सरकार ने 4 मई 2010 को डीईआरसी पर दबाव डाला था कि वह बिजली की नई दरों की घोषणा न करे। ऐसा माना जाता है कि यह कदम 3 वितरण कंपनियों के दबाव में उठाया गया था। इन कंपनियों की शिकायत थी कि नियामक ने नई दरें तय करते समय दरों में वृद्धि की उनकी मांग पर ध्यान नहीं दिया।

डीईआरसी ने सरकारी निर्देश मिलने के बाद ये संकेत दिए थे कि उसने दरों में 20 से 25 प्रतिशत की कमी करने की योजना बनाई थी। इन संकेतों में बताया गया था कि यदि वर्तमान दरों को बदला नहीं जाता है तो बिजली वितरण कंपनियों को लगभग 4 हजार करोड़ रुपए का मुनाफा होगा। (भाषा)