दिल्ली चुनाव : मुसलमानों के वोट होंगे निर्णायक
वेबदुनिया डेस्क
दिल्ली विधानसभा चुनाव में अगली सरकार कौन से राजनीतिक दल की बनेगी, इसमें राज्य के मुस्लिम वोट अहम भूमिका निभाएंगे। यही वजह है कि कांग्रेस, भाजपा, आम आदमी पार्टी के साथ अन्य राजनीतिक दल मुसलमानों को अपनी तरफ खींचने का प्रयास कर रहे हैं। दिल्ली में फिलहाल पांच मुस्लिम विधायक हैं और 22 सीटों पर मुसलमान इतनी तादाद में हैं कि वे वहां बहुत महत्व रखते हैं। लेकिन इस बार मुसलमान मतदाता का क्या रुख है, यह कहना मुश्किल है। दिल्ली में कांग्रेस अगर लगातार तीन बार से सत्ता में आ रही है तो उसमें मुस्लिम वोटरों का बड़ा योगदान है और इसीलिए कांग्रेस शासनकाल में मुसलमानों के लिए सच्चर कमेटी और मिश्रा आयोग का गठन के साथ साथ अल्पसंख्यकों के लिए अलग से मंत्रालय और अल्पसंख्यक छात्रों के लिए वजीफे की घोषणा जैसी योजनाएं मुसलमानों का विश्वास जीतने के लिए की गईं। लेकिन ये सभी पुरानी बातें है जिसका फायदा कांग्रेस पिछले चुनावों में ले चुकी है। इस चुनाव में हालात बदले हुए हैं और कांग्रेस अकेली ऐसी पार्टी नहीं रह गई है, जिसने मुसलमानों को राजनीति में हिस्सेदार बनाने के लिए कदम उठाए हैं। इस बार चुनाव में जहां कांग्रेस ने 15 मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं, वहीं समाजवादी पार्टी ने 12, बहुजन समाजपार्टी ने 11 और जनता दल यूनाइटेड ने 9 मुसलमानों को टिकट दिया है।भाजपा ने भी एक मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट दिया है, जबकि आम आदमी पार्टी ने खुद को अलग दिखाने की कोशिश में भाजपा के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार डॉ. हषर्वर्धन के खिलाफ मुस्लिम प्रत्याशी उतारा है। दिल्ली में इस बार सत्ता की लड़ाई इसलिए भी रोचक है, क्योंकि सिख, पूर्वाचली, उत्तराखंडी, जाट और गुर्जरों के साथ साथ दिल्ली में मुसलमान भी इस चुनाव में किसी भी पार्टी को अपना वोट दे सकते हैं। यह कहा जा सकता है कि मुस्लिम मतदाता ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं, जिससे सबसे ज्यादा चिंतित कांग्रेस को होना चाहिए।