दिल्ली में त्रिशंकु विधानसभा ने खड़े किए सवाल...
नई दिल्ली। दिल्ली विधानसभा के लिए त्रिशंकु फैसले ने राष्ट्रीय राजधानी में सरकार के गठन को लेकर कई पेंचीदा सवाल पैदा कर दिए हैं। भाजपा 31 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी लेकिन 70 सदस्यीय विधानसभा में बहुमत के आंकड़े 36 को नहीं छू पाई। दूसरी सबसे बड़ी पार्टी आम आदमी पार्टी को 28 सीट जबकि कांग्रेस को सिर्फ आठ सीट मिली। निर्दलीय, जद (यू) और अकाली दल को एक-एक सीट मिली है। अकाली दल भाजपा की सहयोगी है।भाजपा के समक्ष विकल्प है कि या तो वह सरकार बनाने का दावा करे या फिर इंतजार करे कि लेफ्टिनेंट गवर्नर नजीब जंग इसके नेता हर्षवर्धन को निमंत्रण दें कि एकमात्र सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते वे सरकार बनाएं।बहरहाल संभावना है कि लेफ्टिनेंट गवर्नर भाजपा की सरकार बनाने के लिए निमंत्रण दें कि वे एक निश्चित समय के अंदर सदन में अपना बहुमत साबित करे। सदन की संरचना को देखते हुए भाजपा बहुमत साबित करने में सक्षम नहीं है जब तक कि कांग्रेस या आप की तरफ से विधायक टूटकर उसे समर्थन नहीं देते।भाजपा के पूर्व अध्यक्ष और दिल्ली के प्रभारी नितिन गडकरी ने कहा कि अगर नैसर्गिक प्रक्रिया के तहत हमें समर्थन मिलता है तो हम सरकार बनाएंगे अन्यथा हम विपक्ष में बैठना चाहेंगे। इस गतिरोध का अगर कोई समाधान नहीं निकलता तो लेफ्टिनेंट गवर्नर का शासन छ: महीने तक चल सकता है और फिर इसे बढ़ाकर एक वर्ष तक किया जा सकता है।विभिन्न विकल्पों के बारे में एक संविधान विशेषज्ञ ने कहा कि लेफ्टिनेंट गवर्नर की शक्तियों और किसे वह सरकार बनाने के लिए निमंत्रण देते हैं, इस पर काफी कुछ निर्भर करता है। लोकसभा सचिवालय के पूर्व निदेशक एसके शर्मा ने कहा कि ज्यादा संभावना है कि लेफ्टिनेंट गवर्नर सबसे बड़ी पार्टी को आमंत्रित करेंगे और सदन में उसे बहुमत साबित करने का अवसर देंगे।शर्मा ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने एसआर बोम्मई मामले में फैसला दिया था कि किसी भी सत्तारूढ़ दल को बहुमत साबित करने का उपयुक्त प्लेटफॉर्म सदन है। आप ने स्पष्ट कर दिया है कि वह सकारात्मक विपक्ष की भूमिका निभाएगा, इसलिए भाजपा के लिए उनसे समर्थन मांगना कठिन है। भाजपा के सूत्रों ने कहा कि मुंडका से निर्दलीय विधायक रामबीर शौकीन ने संकेत दिया है कि वे भाजपा को समर्थन देंगे जिससे पार्टी 33 के आंकड़े तक पहुंच जाएगी। एक विशेषज्ञ ने कहा कि अल्पमत में भी सरकार चल सकती है बशर्ते आप और कांग्रेस इसे नहीं गिराना चाहें । भाजपा, कांग्रेस के कुछ विधायकों का भी समर्थन लेने का प्रयास करेगी क्योंकि कांग्रेस के नौ में से तीन विधायकों को तोड़ लेने से दल-बदल विरोधी कानून के प्रावधान लागू नहीं होते।
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