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Written By Author श्रवण गर्ग
Last Updated : मंगलवार, 7 अप्रैल 2020 (11:48 IST)

आरोपित ‘लॉकडाउन’ से स्वैच्छिक ‘लॉक अप' की ओर?

आरोपित ‘लॉकडाउन’ से स्वैच्छिक ‘लॉक अप' की ओर? - Lockdown in India
Indore
नौ मिनट के सफलतापूर्वक किए गए देशव्यापी अंधेरे ने आगे आने वाले दिनों की सूरत पर अब काफ़ी रोशनी डाल दी है। जिस बात की इतने दिनों से हमें आशंका थी वह भी अब सच होती दिख रही है। इसमें ग़लत भी कुछ नहीं है। हम इस बात को ऐसे भी समझ सकते हैं: उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त मुख्य सचिव को यह कहते हुए बताया गया है कि लॉकडाउन को पूरी तरह से समाप्त करने से पहले यह सुनिश्चित करना ज़रूरी है कि अब एक भी कोरोना पॉज़िटिव व्यक्ति राज्य में नहीं बचा है, और इसमें वक्त लग सकता है। उत्तर प्रदेश की जनसंख्या बीस करोड़ से ऊपर है। हम खुद अब अपना हिसाब लगा सकते हैं।

ऐसे ही अब ज़रा लगभग आठ करोड़ की आबादी के मध्य प्रदेश की बात लें। कोरोना काल का कोई एक महीना सरकार गिराने-बचाने में बीत गया। अब केवल शिवराज ही सबकुछ हैं। दूसरा कोई मंत्री इतने बड़े प्रदेश में नहीं। स्वास्थ्य सेवा के ज़िम्मेदार लगभग सभी बड़े अफ़सर क्वारंटाइन में क़ैद हैं। प्रदेश कैसे चल रहा है इसकी जानकारी केवल दिल्ली को ही हो सकती है। स्वास्थ्य सेवा में खप रहे कर्मी बिना किसी लीडर के जानें बचाने के काम में जुटे हैं। क्या ऐसी हालत में लॉकडाउन खोलने की कोई हिम्मत की जाएगी?

मोदी के नौ मिनट के आह्वान को वास्तव में उनकी भावना के प्रथम चरण का प्रकटीकरण ही माना जाना था। दूसरे चरण की भावना सोमवार को पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ भाजपा के 40वें स्थापना दिवस पर वीडियो बातचीत में प्रकट हुई जिसके ज़रिए उन्होंने देश भर को संदेश दे दिया कि लड़ाई लम्बी चलने वाली है।

रविवार के देशव्यापी जन-समर्थन से उत्साहित मोदी ने कहा कि इसने भारत को इस लम्बी लड़ाई के लिए तैयार कर दिया है। देश शायद प्रधानमंत्री के इस तरह के उद्बोधन की प्रतीक्षा नहीं कर रहा था। रविवार की रात जिन भी लोगों ने सड़कों पर पटाखे फोड़े होंगे और ऊधम मचाया होगा उनकी कल्पना से परे हो कि आरोपित ‘लॉकडाउन’, आगे किसी स्वैच्छिक ‘लॉक अप’ में भी बदल सकता है।

लॉकडाउन के खुलने की प्रतीक्षा समय बीतने के साथ-साथ हो सकता है इसलिए महत्वहीन होती जाए कि लोग भी अब धीरे-धीरे ‘स्थित प्रज्ञ’ होने की मुद्रा में पहुँचते जा रहे हैं। कोरोना का डर ऐसा बैठ गया है कि वे अब उस तरह शिकायतें नहीं कर रहे हैं जैसी कि शुरू के दिनों में करते थे।
 
महामारी से निपटने के मामले में दुनिया भी शायद हमारी इसी खूबी की तारीफ़ कर रही है। प्रधानमंत्री ने भी घरों में बैठे-बैठे चिंतन करने के लिए हमें बहुत कुछ दे दिया है। क्या पता घरों के भीतर ही बंद-बंद रहना इतना अच्छा लगने लगे कि बाहर निकलने से ही इनकार करने लगें। इस और भी बड़ी समस्या का तब क्या इलाज होगा?

देश के कोई दो सौ उद्योग-प्रमुखों के साथ सीआईआई (कन्फ़ेडरेशन आफ़ इंडियन इंडस्ट्री) द्वारा किए गए ऑनलाइन सर्वे में जो नतीजे आए हैं वे काफ़ी चौंकाने वाले हैं। सर्वे के अनुसार, कोरोना वायरस और उसके बाद लॉकडाउन के कारण बनी स्थितियों से देशभर में पंद्रह से तीस प्रतिशत लोगों का रोज़गार छिन सकता है।

कम्पनियों के राजस्व और उनकी आय में होने वाली कमी के आँकड़े अलग हैं। इन लोगों में असंगठित क्षेत्र के वे लाखों लोग शामिल नहीं है जो इस समय सड़कों पर डेरा डाले हुए हैं। इस बीच तेलंगाना के मुख्यमंत्री को यह कहते हुए भी बताया गया है कि लॉकडाउन लोगों की ज़िंदगी बचाए जाने तक जारी रखा जा सकता है, अर्थव्यवस्था तो हम बाद में भी बचा लेंगे। पर आगे चलकर क्या होने वाला है उसका पता अभी तो सिर्फ़ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ही है। (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और विभिन्न समाचार पत्रों में संपादक और समूह संपादक रह चुके हैं।)
 
 
 
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