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हर गांव में पहुंची बिजली, अब हर घर को रोशन करने का लक्ष्य

हर गांव में पहुंची बिजली, अब हर घर को रोशन करने का लक्ष्य - Electrification for all vilage a major achievment
देश के सभी गांवों तक बिजली पहुंचाए जाने की सूचना से हर भारतवासी प्रसन्न होगा। हालांकि इस पर राजनीतिक बयानबाजी चलती रहेगी और इसका श्रेय लेने की होड़ भी पार्टियों के बीच जारी रहने वाली है। सरकार के दावों पर प्रश्न भी उठेंगे। यह हमारी राजनीति का स्थायी चरित्र है। लेकिन प्रधानमंत्री के ट्वीट एवं ऊर्जा मंत्रालय के दावों को स्वीकार करें तो मणिपुर के लेइसांग गांव के साथ देश के सभी 5,97,464 गांवों में अब बिजली पहुंच गई है।
 
लेइसांग गांव में कुल 19 परिवारों में 31 पुरुष और 34 महिलाएं यानी 65 लोग रहते हैं। अगर इतने दूरस्थ और छोटे गांव तक बिजली पहुंच गई तो फिर इस खबर पर अविश्वास करने का कोई कारण नहीं है कि भारत में बिना बिजली का एक भी गांव नहीं बचा। यह तो संभव है और जैसा कुछ मीडिया रिपोर्टों से पता चलता है कि कई जगह बिजली के खंभे, तार और ट्रांसफॉर्मर तक लगे हैं लेकिन बिजली नहीं आ रही, तो इसे ठीक करने की आवश्यकता है। यह चलता रहेगा। केवल एक बार खंभे और तार लगाकर बिजली पहुंचा देना ही पर्याप्त नहीं होता। कई कारणों से बिजली आपूर्ति बाधित होती है। कई बार तार टूट जाते हैं, खंभे गिर जाते हैं, मशीनी गड़बड़ी होती है। इन सबको स्वयमेव ठीक करने की दुरुस्त प्रणाली खड़ी किए बगैर स्थायी बिजली आपूर्ति सुनिश्चित नहीं हो सकती। किंतु इसमें राज्यों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।
 
यह कहना तो गलत होगा कि पूर्व की केंद्र सरकारों के कार्यकाल में बिजली पर काम नहीं हुआ या राज्य सरकारों ने इस दिशा में काम नहीं किया। लेकिन शेष बचे दूरस्थ गांवों को बिजली से जोड़ना भी एक बड़ी उपलब्धि है जिसे स्वीकार करना पड़ेगा। सरकार ने बिजलीरहित गांवों की सूची बनाकर संकल्प के साथ समयसीमा में काम करना आरंभ किया और परिणाम सामने है।
 
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 15 अगस्त 2015 को लाल किले की प्राचीर से 1,000 दिनों के अंदर देश के अंधेरे में डूबे 18,452 गांवों में बिजली पहुंचाने का ऐलान किया था। इसके लिए 'दीनदयाल ग्राम ज्योति योजना' शुरू की गई। 28 अप्रैल 2018 को यह संकल्प पूरा हुआ यानी तय समय सीमा से 12 दिनों पहले। सरकार ने इस योजना के लिए 75,893 करोड़ रुपए का आवंटन किया। 
 
यह लक्ष्य यूं ही पूरा नहीं हुआ। इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए बिजली विभाग को काफी मेहनत करनी पड़ी। जैसा कि हम जानते हैं कई गांव बेहद दुर्गम इलाकों में स्थित हैं, जहां खंभों, तारों सहित अन्य उपकरणों को पहुंचाना ही मुश्किल था। कई जगह लोग अपने सिर और कंधों पर बिजली के उपकरण ढोकर ले गए। कई जगह दूसरे उपाय किए गए। इस लक्ष्य को हासिल करने में बिजली मंत्रालय की तरफ से 5 स्तरों पर निगरानी करने और स्थानीय दिक्कतों को दूर करने की कार्यनीति अपनाई गई। हर हफ्ते केंद्रीय बिजली सचिव अंतर-मंत्रालयी निगरानी समिति के तहत प्रगति की समीक्षा करते थे। बिजली सचिव हर महीने राज्यों के बिजली मंत्रियों व सचिवों के साथ अलग से एक बार फिर समीक्षा करते थे। उसके बाद राज्य स्तर पर प्रमुख सचिव की अगुवाई में एक समिति थी, जो राज्यों में आने वाली कठिनाइयों को दूर करने का काम करती थी। इस समिति के जिम्मे भूमि अधिग्रहण, वन विभाग, रेलवे व गृह मंत्रालय से संबंधित मंजूरी लेने का काम था।
 
इसके बाद जिला स्तरीय एक अलग समिति थी, जो जिला स्तर पर काम की निगरानी करती थी। जिला स्तरीय समिति का अध्यक्ष जिले के सबसे वरिष्ठ सांसद को बनाया गया था। इसके अलावा ग्रामीण विद्युतीकरण निगम लिमिटेड (आरईसी) के स्तर पर पूरी योजना की अलग से निगरानी हो रही थी। योजना को जमीन पर लागू करने की जिम्मेदारी तो आरईसी के पास ही होती है।
 
कहने का तात्पर्य यह कि इस काम को मिशन मोड में पूरा किया गया है। लेकिन जैसा कि हम जानते हैं कि केवल गांवों में बिजली पहुंचा देने भर से लक्ष्य पूरा नहीं हो जाता। यह लक्ष्य पूरा तब ही होगा, जब हर घर में बिजली का कनेक्शन पहुंच जाए और उनको रोशनी नसीब हो। सरकार की योजना पहले मार्च 2019 तक हर घर को बिजली देने की थी लेकिन अब इसे पीछे खींचकर 31 दिसंबर 2018 कर दिया गया है।
 
पिछले वर्ष सितंबर में पंडित दीनदलाय उपाध्याय के 101वें जन्मदिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 'सहज बिजली हर घर योजना' (सौभाग्य) आरंभ की थी। इस योजना का उद्देश्य देश के करीब 4 करोड़ घरों तक बिजली पहुंचाना है। उस समय के आंकड़ों के अनुसार देश के कुल 25 करोड़ परिवारों में 4 करोड़ परिवार बिना बिजली के रह रहे थे। अभी तक के नियम के अनुसार यदि किसी गांव में 10 प्रतिशत लोगों के पास बिजली के कनेक्शन हैं और उसी गांव के सामुदायिक स्थानों जैसे स्कूल, अस्पताल, पंचायत कार्यालय में बिजली है तो यह विद्युतीकृत गांव की श्रेणी में आ जाता है जबकि वहां की आबादी का बड़ा हिस्सा बिजली से वंचित होता है।
 
सौभाग्य योजना का लक्ष्य गांव को नहीं, बल्कि हर घर को बिजली उपलब्ध करवाना है। बिजली मंत्रालय के गर्व मोबाइल एप के मुताबिक देश में 17.92 करोड़ ग्रामीण आवास हैं जिनमें से 13.87 करोड़ घरों में बिजली कनेक्शन हैं। इस तरह से ग्रामीण इलाकों में ही 4.05 करोड़ ऐसे घर हैं जिन्हें बिजली से जोड़ना है।
 
जिस तरह से दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना सफल हुई है उसी तरह सौभाग्य योजना भी होगी, इसकी उम्मीद की जा सकती है। सौभाग्य योजना पर कुल 16,320 करोड़ खर्च आने की उम्मीद है। सरकार इसमें 12,320 करोड़ की सहायता देगी। ग्रामीण परिवारों के लिए 14,025 करोड़ के बजट का प्रावधान है जिसमें से 10,587 करोड़ सरकारी सहायता मिलेगी। शहरी क्षेत्र के परिवारों के लिए 2,296 करोड़ का लक्ष्य रखा गया है। इसमें से 1,732 करोड़ सरकार देगी।
 
2011 की जनगणना के आधार पर आर्थिक और सामाजिक तौर पर पिछड़े परिवारों को मुफ्त में बिजली का कनेक्शन दिया जाएगा। ऐसे परिवार जो आर्थिक और सामाजिक तौर पर पिछड़े नहीं हैं लेकिन उनके यहां बिजली कनेक्शन नहीं है, उन्हें 500 रुपए में बिजली का कनेक्शन दिया जाएगा, उन्हें 10 बिल किस्तों में अदा करना होगा। देश के जिन राज्यों में बिजली नहीं है, वहां 200 से 300 वॉट की सौर प्रणाली दी जाएगी। इसके साथ 1 एलईडी लाइट, 1 डीसी पंखा, 1 डीसी पॉवर प्लग दिया जाएगा। सरकार की ओर से 5 वर्षों तक सौर बिजली प्रणाली की मरम्मत की जाएगी।
 
जाहिर है, योजना में दोष तलाशना कठिन है। तो उम्मीद करनी चाहिए कि अपने घोषित लक्ष्य के अनुरूप 31 दिसंबर 2018 तक हमारे देश के ज्यादातर घर बिजली से रोशन हो जाएंगे। इसके बाद सरकार मार्च 2022 तक पूरे देश में सातों दिन चौबीसों घंटे बिजली के लक्ष्य हासिल करना चाहती है। जो सूचनाएं पहुंच रही हैं, उस हिसाब से इस दिशा में भी काफी काम हुआ है और वह संतोषजनक है।
 
विद्युतीकरण की पुरानी परिभाषा यानी 10 प्रतिशत कनेक्शन के आधार को बदले बगैर ही उसे अप्रासंगिक कर दिया गया है। राजनीतिक आलोचना के बाद सरकार ने जो आंकड़े दिए हैं उनके अनुसार देश में 82 प्रतिशत गांव ऐसे हैं, जहां विद्युतीकरण का स्तर 46 से 100 प्रतिशत के बीच है। कुछ मिलाकर सरकार का बयान यह है कि देश के 80 प्रतिशत से ज्यादा ग्रामीण घरों में बिजली पहुंच गई है। हो सकता है इसमें थोड़ा-बहुत कागजी हो, लेकिन देश का दौरा करते समय हम पाते हैं कि बिजली के मामले में धरातल पर काम हुआ है। इसलिए यदि मिशन मोड में काम हुआ तो इस वर्ष के अंत तक संपूर्ण विद्युतीकरण के लक्ष्य को हासिल करना कठिन नहीं होगा।
 
हालांकि देश में ऐसे परिवारों की संख्या कम नहीं है, जो शायद लगातार बिजली शुल्क का भुगतान नहीं कर सकें। हम उन्हें कनेक्शन तो दे देंगे लेकिन उनकी आर्थिक स्थिति जब तक शुल्क वहन करने की नहीं होगी, तो वे चाहकर भी विद्युत सेवा का उपयोग नहीं कर पाएंगे। इसलिए एक तो बिजली के शुल्क का निर्धारण व्यावहारिक करना होगा और गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों के लिए अलग शुल्क की व्यवस्था करनी होगी।
 
लेकिन सबसे बढ़कर लोगों की आर्थिक स्थिति को बेहतर करने के लिए सरकार को काम करना होगा ताकि वो बिजली का ही पूरा उपयोग न करे, बल्कि परिवार के साथ सम्मानजनक जीवन भी जी सकें।
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