- भरत शर्मा
कर्नाटक के चुनाव ने कितना कंफ़्यूज़न पैदा कर दिया है, इस बात का अंदाज़ा एग्ज़िट पोल ने दिया। कुछ भाजपा को जिता रहे थे, कुछ कांग्रेस को। शनिवार को मतदान निपटने के बाद जब एग्ज़िट पोल आए तो दोनों ही दलों को टीवी पर अपनी जीत का दावा करने का सामान मिल गया।
चुनावी अभियान में ख़ुद को मौजूदा और भावी मुख्यमंत्री बताने वाले कांग्रेसी नेता सिद्धारमैया ने रविवार को कहा कि ज़रूरत पड़ने पर वो दलित मुख्यमंत्री के लिए कुर्सी खाली कर सकते हैं, हालांकि उन्हें कांग्रेस के जीतने पर यक़ीन है। दूसरी तरफ़ भाजपा नेता बी एस येदियुरप्पा का कहना है कि वो लिखकर देने को तैयार हैं कि बहुमत भाजपा के हिस्से में ही आएगा।
दोनों बाहर से भले दावा कुछ भी करें, लेकिन ये समझना आसान है कि मंगलवार सवेरे जब तक नतीजे नहीं आते, भीतर ही भीतर भाजपा और कांग्रेस के दिलों की धड़कन बढ़ी रहेगी।
किंगमेकर बने तो किंग कौन होगा?
देश के दो सबसे बड़े राजनीतिक दलों के हालात जो भी हैं, लेकिन दोनों के बीच एक राजनीतिक दल ऐसा है जिसकी सबसे ज़्यादा चर्चा हो रही है। जिस पार्टी का नाम कल तक जनता दल सेक्युलर था, उसे कर्नाटक के नतीजे क़रीब आते-आते नया नाम मिल गया है - 'किंगमेकर'!
अगर एग्ज़िट पोल पर यक़ीन कर आगे बढ़ा जाए तो पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवेगौड़ा और उनके बेटे एच डी कुमारस्वामी की ये पार्टी अचानक ही अहम हो गई है।
और सवाल उठने लगे कि ये किंगमेकर किसे किंग बनाएंगे?
भाजपा के चुनाव प्रचार का ज़िम्मा संभालने वाले नरेंद्र मोदी ने बीच में ऐसे बयान दिए थे जो उन्हें देवेगौड़ा के क़रीब ले जाएं। कयास लगे कि शायद जनता दल सेक्युलर ज़रूरत पड़ने पर भाजपा के साथ जा सकती है।
देवगौड़ा कहां जाएंगे?
लेकिन अब कांग्रेस ने भी ऐसे संकेत दिए कि बहुमत न आने की सूरत में वो मिलकर चलने को भी तैयार हो सकती है। हालांकि, लेकिन जनता दल सेक्युलर का ऊंट किस करवट बैठेगा ये इस बात पर निर्भर करेगा कि पार्टी में देवेगौड़ा या कुमारस्वामी में किसकी ज़्यादा चलती है।
एक इंटरव्यू में देवेगौड़ा कह चुके हैं कि तमाम मुश्किलों के बावजूद वो कर्नाटक में अच्छा प्रदर्शन करने जा रहे हैं। उन्होंने कहा, ''जो लोग ये अंदाज़ा लगा रहे हैं कि हमारे हिस्से में 30-40 सीटें आएंगी, उन्हें ज़मीनी सच्चाई का अंदाज़ा नहीं है। मोदी साहब ने पहले मेरे लिए मीठे शब्द कहे, फिर बुराई करने लगे।''
''इससे क्या साबित होता है? शुरुआत में उन्हें सही प्रतिक्रिया नहीं मिली थी। उन्हें यू-टर्न इसलिए लेना पड़ा क्योंकि उन्हें पता चल गया कि हम तेज़ी से आगे बढ़ रहे हैं। कांग्रेस भी हमसे डरी हुई है। यही वजह है कि वो हमें भाजपा की बी-टीम बता रही है।'' इन बयानों को अगर फ़ेस वैल्यू पर लिया जाए तो मानना आसान है कि जनता दल सेक्युलर किसी से हाथ नहीं मिलाएगी। लेकिन राजनीति ऐसे नहीं चलती।
सौदेबाज़ी में कौन आगे, कौन पीछे?
यही वजह है कि एग्ज़िट पोल में त्रिशंकु विधानसभा की संभावनाओं ने इन सवालों को जन्म दिया कि देवेगौड़ा-कुमारस्वामी ज़रूरत और हालात पड़ने पर किस तरफ़ जाएंगे। सवाल अहम है और जवाब कई हैं। वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश ने बीबीसी से कहा, ''ये इस बात पर निर्भर करेगा कि कांग्रेस या भाजपा- दोनों में से कौन सी पार्टी बढ़िया डील ऑफ़र करेगी।''
उन्होंने कहा, ''क्षेत्रीय दलों की सोच इसी तरह चलती है। कुमारस्वामी काफ़ी महत्वाकांक्षी हैं और दोनों दलों की पेशकश पर नज़र रखेंगे। मौक़ा बनने पर वो ख़ुद को मुख्यमंत्री बनाने की बात भी कह सकते हैं। वो कह सकते हैं कि राजीव गांधी ने चंद्रशेखर को बना दिया था, आप भी बना दीजिए।''
लेकिन अगर कुमारस्वामी सीएम पद की मांग करते हैं तो क्या भाजपा और कांग्रेस ऐसा करेंगी, उन्होंने कहा, ''इस बारे में अभी कुछ भी कहना जल्दबाज़ी होगी, लेकिन राजनीति में कुछ भी हो सकता है।...और नरेंद्र मोदी-देवेगौड़ा के बीच रिश्ते कैसे हैं, ''पहले काफ़ी तल्ख़ माने जाते थे, लेकिन अब बेहतर बताए जाते हैं। मोदी ने हाल में उनकी काफ़ी तारीफ़ भी की थी।''
पिता-पुत्र में किसकी चलेगी?
लेकिन भाजपा के बजाय क्या जनता दल सेक्युलर, कांग्रेस की तरफ़ नहीं जा सकती? राजनीति में किसी भी सवाल का निश्चित रूप से देना बड़ा मुश्किल है। कर्नाटक की राजनीति पर क़रीबी निगाह रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक भास्कर हेगड़े ने कहा, ''अगर नतीजे निर्णायक नहीं आते तो दो-तीन संभावनाएं बन सकती हैं।''
उन्होंने कहा, ''अगर कांग्रेस अच्छी सीटें लेने में कामयाब रहती है तो जेडी-एस उसे बाहर से समर्थन देने पर भी विचार कर सकती है। ऐसी सूरत में वो मुख्यमंत्री बनाए जाने पर कोई ख़ास मांग नहीं करेंगे।''
हेगड़े ने कहा, ''लेकिन अगर वो सरकार में शामिल होते हैं, तो फिर सीएम पद किसे दिया जाए, इस पर भी बात कर सकते हैं। डिमांड भी कर सकते हैं।'' जानकारों का मानना है कि कुमारास्वामी भाजपा की तरफ़ जा सकते हैं, लेकिन देवेगौड़ा क्योंकि राष्ट्रीय स्तर पर तीसरे मोर्चे में अहम स्थान देख रहे हैं, ऐसे में कांग्रेस का साथ उन्हें ज़्यादा पसंद आएगा।
अतीत में क्या रहा है?
लेकिन जनता दल सेक्युलर में इन दोनों में से किसकी ज़्यादा चल रही है, हेगड़े ने कहा, ''फिलहाल कुमारस्वामी।'' देवगौड़ा साल 2008 से 2013 के बीच अस्थिर सरकार चलाने के लिए भाजपा को कोसते रहे हैं, जिसमें तीन बार मुख्यमंत्री बदले गए थे। और साथ ही ये भी कहते रहे हैं कि कांग्रेस भ्रष्टाचार पर लगाम कसने में नाकाम रही है।
जिस तरह भाजपा-जेडी (एस) के बीच बातचीत और समझौते को लेकर कई जटिलताएं हैं, उसी तरह कांग्रेस-जेडी (एस) की दोस्ती की राह में भी कई कांटे हैं। साल 2005 में सिद्धारमैया ने जनता दल सेक्युलर का साथ छोड़कर ही कांग्रेस का दामन थामा था।
उस वक़्त कुमारस्वामी भाजपा के साथ जारी गठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री थे। सिद्धारमैया के इस कदम से वो काफ़ी निराश हुए थे। अतीत में कई घटनाएं हैं जो दोस्ती का रास्ता रोक सकती हैं लेकिन राजनीति में बीते हुए कल से ज़्यादा आने वाले कल को तरजीह देने की रवायत भी रही है।