चुनाव आयोग ने तीन राज्यों त्रिपुरा, मेघालय और नगालैंडके लिए विधानसभा चुनावों की तारीख की घोषणा कर दी है। माना जा सकता है कि इसके साथ ही केन्द्रीय सत्ता के लिए उलटी गिनती शुरू हो गई है। ये घोषणाएं काफी समय से की जा रही हैं कि वर्ष 2018 में आठ राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव अगले वर्ष के आम चुनाव का दिशा निर्धारण करने वाले साबित होंगे। फरवरी-मार्च में होने वाले तीन पूर्वोत्तर राज्यों के चुनाव अवाम के रुझान की दिशा बताएंगे, लेकिन लेकिन दिसंबर में चार बड़े राज्यों के चुनाव परिणाम सभी दलों में खलबली पैदा करेंगे।
इस वर्ष के चुनाव कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए भी अति महत्वपूर्ण हैं। कांग्रेस के अस्तित्व के लिए यह अंतिम मोर्चा होगा, क्योंकि देश के जिन चार राज्यों में उसकी सरकार बची है, उनमें से तीन में इस वर्ष चुनाव हैं और भाजपा यहां सत्ता छीनने के लिए जी जान लगा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात चुनाव के तुरंत बाद इन पूर्वी राज्यों का दौरा प्रारंभ कर दिया था।
उन्होंने उत्तर पूर्व में चार हजार किमी राजमार्ग बनाने के लिए 32 सौ करोड़ रुपए और 15 नई रेल लाइनों के लिए 47 हजार करोड़ रुपए देने की घोषणाएं भी कर दी थीं। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह अपनी गोटियां बैठाने के लिए यहां प्रायः पड़ाव डालने लगे हैं।
इस समय कांग्रेस का सर्वाधिक ध्यान मेघालय पर है, जहां भले ही वर्तमान में उसकी सरकार है, लेकिन भाजपा उसमें सेंध लगा चुकी है। पिछले दिसंबर में जो चार विधायक भाजपा में शामिल हुए उनमें कांग्रेस का एक विधायक भी शामिल है। 2018 के प्रारंभ में भी आठ विधायक भाजपा की सहयोगी पार्टी एनपीपी में शामिल हुए, जिनमें पांच कांग्रेसी हैं।
उल्लेखनीय तथ्य यह है कि एनपीपी का नेतृत्व पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पीए संगमा के पुत्र कौनराड के. संगमा कर रहे हैं और दूसरा कार्यकाल पूरा कर रहे मुख्यमंत्री मुकुल संगमा के लिए कड़ी चुनौती पेश कर रहे हैं। क्षेत्र के दूसरे राज्य नगालैंड में तो भाजपा पहले ही नगा पीपुल्स फ्रंट के साथ सत्ता में शामिल हो चुकी है।
नगालैंड में 2013 के चुनाव में भाजपा को केवल एक सीट मिली थी और आज उसके चार विधायक हैं। 2015 में कांग्रेस के सभी आठ विधायक भी सत्तारूढ़ फ्रंट में शामिल हो गए थे और कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व दूर बैठा हाथ मलता रह गया था। अब देखना यह है कि उत्तर पूर्व में प्रवेश कर चुकी भाजपा अपनी संख्या बढ़ाने में कहां तक सफल होती है और आजादी के बाद से लगातार सत्ता सुख पाने वाली कांग्रेस अपना अस्तित्व बचा पाती है या नहीं।
तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण राज्य है त्रिपुरा, जहां पिछले 25 वर्षों से वाम सरकार सत्ता में है और मुख्यमंत्री माणिक सरकार की छवि इतनी साफ है कि भाजपा व कांग्रेस दोनों के लिए उन्हें हरा पाना आज भी टेढ़ी खीर नजर आती है। भाजपा इस बात से संतोष कर सकती है की इस बार उसे मुख्य प्रतिद्वंद्वी माना जा रहा है। कभी सत्ता में रहने वाली कांग्रेस इस बार मुख्य प्रतिद्वंद्वी की दौड़ से भी बहार नजर आ रही है। पिछले साल अगस्त में उसके छह विधायक पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए थे। वैसे त्रिपुरा एक घातक ममता बनर्जी कि पार्टी तृणमूल कांग्रेस भी है, जो परिणामों को प्रभावित कर सकती है।
त्रिपुरा की 60 विधानसभा सीटों पर 18 फरवरी को वोट डाले जाएंगे। वहीं, नतीजे तीन मार्च को घोषित किए जाएंगे। इन चुनावों में पूरी तरह से ईवीएम के साथ वीवीपैट का इस्तेमाल किया जाएगा। त्रिपुरा के बाद मेघालय और नगालैंड में 27 फरवरी को वोट डाले जाएंगे। सभी तीनों राज्यों के नतीजे एक साथ तीन मार्च को ही घोषित किए जाएंगे। चुनाव के दौरान सभी राजनीतिक कार्यक्रमों की वीडियोग्राफी कराई जाएगी। बड़ी बात यह है कि चुनाव में एक उम्मीदवार 20 लाख रुपए ही खर्च कर सकता है।
कुल मिलाकर परिस्थितियां अभी भी कांग्रेस के विरुद्ध हैं, ऐसे में अगर राहुल गांधी अपनी नई बनती छवि से संप्रग में जान फूंक सके और पूर्वोत्तर में कांग्रेस का खोया गौरव लौटने में सफल हुए तो विपक्ष को मजबूती मिल सकती है और साल के अंत में भाजपा शासित राज्यों मप्र, छग व राजस्थान में चुनौती पेश कर सकेगा। तब कांग्रेस के समक्ष अपने राज्य कर्नाटक की सरकार बचाने की चुनौती भी होगी। सारी चुनौतियों से पार पाने के बाद ही विपक्ष 2019 के आम चुनावों में भाजपा को चुनौती दे सकेगा।