हम लॉकडाउन का अपने घरों में एसी और कूलर की ठंडी बयार में लुत्फ उठा रहे हैं। लेकिन देश का एक तबका ऐसा भी है जो अपनी भूख और प्यास को अपने पैरों में बांधकर एक अंतहीन सफर पर निकल पडा है।
ये सफर हजारों किलोमीटर का है। ये सफर हमारी किसी सुखद और सूरम्य यात्रा की तरह नहीं, बल्कि इसलिए कि वे अपने घर पहुंच सके और अपनों से मिल सके। ये दुखद सफर इसलिए कि किसी पराए शहर में वे भूख से मर न जाए।
चिलचिलाती धूप। 45 के ऊपर गर्मी का पारा। हजारों किलोमीटर का सफर। नंगे पैर। नंगे बदन। यह सारा संघर्ष अपने पेट की आग के लिए और अपने घर जाने के लिए है। इस संघर्ष के दृश्य देखकर दिल दहल जाएगा।
कोरोना काल में लॉकडाउन की दुखद त्रासदी के दृश्यों के साथ पढिए वेबदुनिया की खास रिपोर्ट।
सीमेंट मिक्सर में सफर
शनिवार को 18 लोगों को पुलिस ने महाराष्ट्र से उत्तर प्रदेश के लिए जाते देखा। बहुत हैरान और दुखद बात यह थी कि ये सभी मजदूर सीमेंट के मिक्सर में बैठकर अपने घर का सफर तय कर रहे थे। इतनी गर्मी में अंदाजा लगाया जा सकता है इस सफर का क्या आलम रहा होगा। डीएसपी ट्रैफिक उमाकांत चौधरी ने बताया-
'हमारी टीम के सुबेदार अमित यादव चैकिंग के दौरान पंथपिपलई क्षेत्र से सीमेंट मिक्सर वाहन से उतारा। वे मिक्सर में बैठकर महाराष्ट्र से लखनऊ जा रहे थे। सभी 18 लोगों को पंथपिपलई के एक रिसोर्ट में भेजा गया है। जबकि वाहन चालक के खिलाफ सांवेर थाना में धारा 188 के तहत मामला दर्ज किया गया है'
ठेकेदार ने आटा तक न दिया
मजदूरों का एक जत्था काम की तलाश में मार्च में छत्तीसगढ़ के महासमंद से चलकर चंडीगढ़ गया था। वे सब मजदूर थे। जो मिलता था उसमें गुजारा करते थे। लेकिन लॉकडाउन के कारण काम बंद हो गया। ठेकेदार ने पैसे तो दूर आटा तक देने से इनकार कर दिया। मकान का किराया देने के लिए भी कुछ नहीं बचा।
घर के लिए निकले तो ना बस मिली ना ट्रेन। एक ट्रक में कुछ सफर तय किया। चार दिन हो चुके हैं। घर कब पहुंचेगे कुछ पता नहीं है। सबका एक ही विचार है, भूखमरी से मरने से तो ये सफर ही अच्छा है।
ऐसे ही सफर पर चंडीगढ़ से निकले कैलाश मुंडा जब राऊ के करीब से गुजर रहे थे तो थककर साथियों के साथ एक पेड़ की छाह में बैठ गए। पानी पीया। थोड़ा सुस्ताए और फिर चल पड़े। उन्होंने बताया कि वो अपने दो अन्य साथियों के साथ 27 अप्रैल को चंडीगढ़ से निकले थे। कहीं कोई सफर का साधन नहीं मिला। कोरोना के डर से लोग लिफ्ट तक नहीं दे रहे। रास्ता पता नहीं होने की वजह से जो सफर 1550 किलोमीटर का था वो अब 1850 किलोमीटर हो गया।
इसी तरह नाशिक से जबलपुर के लिए निकले हैं अजीत मारावी। अजीत नाशिक में लाइट फिटिंग का काम करते थे अब पैसे ना होने से पैदल ही घर के लिए निकल पड़े हैं।
साइकिल से 1200 किमी का सफर
इसी तरह मूलत: उत्तरप्रदेश के लखनऊ के पास एक गांव के रहने वाले गंगाराम करीब छह माह से महाराष्ट्र के नाशिक में रहकर पुताई और मजदूरी जैसे काम कर रहे थे। लॉकडाउन के बाद जब काम, पैसे और राशन मिलना बंद हुआ तो साइकिल पर ही अपने गांव के लिए निकल पड़े हैं। सफर 1200 किलोमीटर से भी ज्यादा का है। तीन दिन हो गए हैं साइकिल चलाते हुए पैसों के अभाव में जहां जो मिल गया वो खा-पीकर दो पहियों पर घर की दूरी पूरी करने निकल पड़े हैं।
मोटरसाइकिल से शुरू हुआ सफर
राऊ से ही गुजरते हुए चार दोस्तों ने मीडिया ने बताया कि वे मोटरसाइकिल और एक्टिवा से घर के लिए निलके हैं। उन्होंने बताया कि महाराष्ट्र के पालघर में जहां साधुओं की हत्या हुई थी वहीं एक टेलीकॉम कंपनी में काम करते थे। काम बंद हो गया और सैलरी मिलना भी। अब उत्तरप्रदेश के जौनपुर में स्थित घर के लिए निकले हैं।
दरअसल, इंदौर से गुजरने वाले ज्यादातर मुसाफिर महाराष्ट्र से यूपी बिहार की ओर जाने वाले हैं। ये रोजाना सैकड़ों की संख्या में पैदल, साइकिल और दो पहिया पर राऊ बायपास से गुजरते हैं। यहीं पिगडंबर में स्थित दवा कंपनी सिप्को फार्मास्युटिकल्स के मालिक गौरव झंवर ने जब ऐसे लोगों को गुजरते हुए गर्मी से परेशान देखा तो पिछले एक सप्ताह से वे ऐसे मुसाफिरों को ओआरएस के पाउच और पानी मुहैया करा रहे हैं। गौरव झंवर ने बताया कि अब तक वे पांच हजार से ज्यादा ओआरएस पाउच वितरित कर चुके हैं।