सोमवार, 23 दिसंबर 2024
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क्या कोरोना वायरस है चीन का घातक जैविक हथियार, 40 साल पहले छपी किताब में छुपा है राज...

क्या कोरोना वायरस है चीन का घातक जैविक हथियार, 40 साल पहले छपी किताब में छुपा है राज... - corona virus and the eyes of darkness
डीन आर कुंट्ज को पढ़ने वाले जानते हैं कि किस कदर थ्रिल और सस्पेंस का कमाल मिश्रण उनकी किताबों में है लेकिन इन दिनों किताब द आइज ऑफ डार्कनेस (the eyes of darkness) अचानक भारी मांग में आ गई है और इसकी एक वजह है, वह है कोरोना की संक्रामक बीमारी।

दरअसल 1981 के आसपास लिखी गई इस किताब में एक संक्रमण का जिक्र है और इसे वुहान 400 का ही नाम दिया गया है। यानी आज से करीब 40 साल पहले उस वायरस के बारे में किताब में जिक्र कर दिया गया था। एक अमेरिकी की यह कृति शुरु तो एक ऐसी मां से होती है जो अपने बच्चे को ट्रैकिंग दल के साथ भेजती है लेकिन पूरा दल मारा जाता है।

बाद में कई संकेत मिलने पर यह मां अपने बच्चे के जीवित होने या न होने की खोज में जुटती है और उसे अमेरिकी और चीनी देशों के उन जैविक हथियारों के बारे में काफी कुछ पता चलता है। इस पूरी किताब में लेखन से जुड़े जो कमाल हैं वे तो अपनी जगह हैं लेकिन सबसे ज्यादा अचरज इस बात पर है कि जिस कोरोना वायरस को लेकर अब दुनिया चिंतित है न सिर्फ किताब उसके बारे में जिक्र करती है बल्कि उसके उद्गम के तौर पर चीन के ठीक उसी वुहान प्रांत का जिक्र करती है जहां से वाकई वायरस फैला है।

किताब में ली चेन नाम के एक व्यक्ति के बारे में जिक्र है जो चीन के एक महत्वाकांक्षी जैविक हथियार प्रोजेक्ट की जानकारी चुराकर अमेरिका को देता है। चीन इसके जरिए दुनिया के किसी भी कोने में किसी भी देश का क्षेत्र इंसानों से खाली कर देने की ताकत हासिल करना चाहता है लेकिन अमेरिकी एजेंसियां बमुश्किल ही सही इस खतरनाक जैविक हथियार का तोड़ तलाश लेने में कारगर हो जाती हैं।

वुहान 400 कोड रखे जाने का तर्क किताब में यह दिया गया है कि इसे वुहान प्रांत के बाहरी क्षेत्र में बनाया गया और कोड में 400 इसलिए जोड़ा गया क्योंकि यह इस लैब में तैयार 400 वां ऐसा हथियार था। एक कमाल यह भी है कि किताब में दूसरे वायरस से इसकी तुलना भी की गई है और जिससे इसकी सबसे करीब तुलना हुई वह खतरनाक इबोला वायरस के सारे लक्षण वाला है यानी पिछले कुछ समय में दुनिया जिन दो बड़े खतरों से रुबरु हुई उन दोनों का ही जिक्र इसमें शामिल है।

यदि किताब के तर्क को मानें तो यह वायरस इंसानी शरीर से बाहर एक मिनट भी जीवित नहीं रह पाता है और इस तरह का संक्रामक वायरस तैयार करने से आक्रमण करने वाले देश के लिए कब्जा करना आसान हो जाता क्योंकि वायरस का संक्रमण इंसानों के साथ ही खत्म भी होते जाता है। इस थ्रिलर उपन्यास के कई तथ्य चौंकाने के लिहाज से बेहतर हैं लेकिन अब इस किताब में जिक्र की गई बातों से इस खतरनाक मुश्किल के हल भी तलाशने की कोशिशें जारी हैं।

जैसे वैज्ञानिक इस तथ्य पर भी बहुत ध्यान दे रहे हैं कि इस वायरस के जिस तरह के व्यवहार बताए गए हैं क्या उनमें से किसी को इस पर काबू में लाने का आधार बनाया जा सकता है। कुंट्ज की इस किताब में बताया गया है कि संक्रमित व्यक्ति की मौत के बाद जैसे ही लाश का तापमान 86 डिग्री फेरनहाइट या इससे कम पर पहुंचता है, सारे वायरस तुरंत मर जाते हैं।

इस किताब को पढ़ने वालों में अब शौकिया पुस्तकप्रेमी ही नहीं हैं बल्कि शोध, दवाई बनाने वाली कंपनियां और मेडिकल से जुड़ी हस्तियां भी शामिल हो गई हैं आखिर दुनिया को एक ऐसे 'नए' खतरे  को समझना जो है जो खतरनाक महामारी बनकर बिदा हो रहा है जिसका जिक्र कुंट्ज ने 1981 में ही कर दिया था।