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Merry Christmas 2023 : यीशु मसीह के जन्म के 5 रहस्य

Jesus Christ Christmas 2023
Merry Christmas 2023 : ईसा मसीह को इब्रानी में येशु, यीशु या येशुआ कहते थे परंतु अंग्रेजी उच्चारण में यह जेशुआ हो गया। यही जेशुआ बिगड़कर जीसस हो गया। प्रभु यीशु यानी ईसा मसीह के जन्मदिन को क्रिसमस के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व हर वर्ष 25 दिसंबर को मनाया जाता है। इस दिन ईसाई समाज के लोग चर्च में एकत्रित होकर यीशु के जन्म का उत्सव मनाते हैं और विशेष प्रार्थना सभा का आयोजन करते हैं। आओ जानते हैं ईसा मसीह के जन्म के संदर्भ में प्रचलित धारणाओं के बारे में।
 
1. ईसा मसीह का जन्म समय : परंपरा से ईसा मसीह का जन्म समय 25 दिसंबर सन् 6 ईसा पूर्व माना जाता है। इसीलिए हर वर्ष 25 दिसंबर को क्रिसमस मनाया जाता है। हालांकि बाइबल में ईसा के जन्म का कोई दिन नहीं बताया गया है। न्यू कैथोलिक इनसाइक्लोपीडिया और इनसाइक्लोपीडिया ऑफ अरली क्रिश्चियानिटी में भी इसका कोई जिक्र नहीं मिलता है। बाइबल में यीशु मसीह के जन्म की कोई निश्‍चित तारीख नहीं दी गयी है।
 
कुछ वर्ष पूर्व बीबीसी पर एक रिपोर्ट छपी थी उसके अनुसार यीशु का जन्म कब हुआ, इसे लेकर एकराय नहीं है। कुछ धर्मशास्त्री मानते हैं कि उनका जन्म वसंत में हुआ था, क्योंकि इस बात का जिक्र है कि जब ईसा का जन्म हुआ था, उस समय गड़रिये मैदानों में अपने झुंडों की देखरेख कर रहे थे। अगर उस समय दिसंबर की सर्दियां होतीं, तो वे कहीं शरण लेकर बैठे होते। और अगर गड़रिये मैथुन काल के दौरान भेड़ों की देखभाल कर रहे होते तो वे उन भेड़ों को झुंड से अलग करने में मशगूल होते, जो समागम कर चुकी होतीं। ऐसा होता तो ये पतझड़ का समय होता। मगर बाइबल में ईसा के जन्म का कोई दिन नहीं बताया गया है। इतिहासकारों के अनुसार रोमन काल से ही दिसंबर के आखिर में पैगन परंपरा के तौर पर जमकर पार्टी करने का चलन रहा है। यही चलन ईसाइयों ने भी अपनाया और इसे नाम दिया 'क्रिसमस'।
 
रशिया सहित 18 देशों में 7 जनवरी को क्रिसमस मनाया जाता है। एक अन्य शोध के अनुसार उनका जन्म बसंत ऋतु में हुआ था। रशिया में क्रिसमस का पर्व जनवरी में मनाया जाता है। संभवत: 7 जनवरी को मनाया जाता है। हालांकि बाइबल में ईसा के जन्म का कोई दिन नहीं बताया गया है। न्यू कैथोलिक इनसाइक्लोपीडिया और इनसाइक्लोपीडिया ऑफ अरली क्रिश्चियानिटी में भी इसका कोई जिक्र नहीं मिलता है। बाइबल में यीशु मसीह के जन्म की कोई निश्‍चित तारीख नहीं दी गयी है।
 
2. ईसा मसीह का जन्म स्थान : ईसा के जन्म के कुछ ही समय पहले सम्राट ऑगस्टस ने यह आदेश जारी किया कि उसके राज्य के सभी लोग अपना अपना नाम दर्ज कराएं। ईसा के माता पिता भी अपना नाम दर्ज कराने ही जा रहे थे कि रास्ते में ईसा का जन्म हुआ। (लूका 2:1-3)। मतलब यह कि ईसा के माता पिता नाजरथ से येरुशलम जा रहे थे तो रास्ते में बेथलेहम में एक जगह में उनका जन्म हुआ। बेथलेहम इसराइल के यरुशलम से 10 किलोमीटर दक्षिण में स्थित एक फिलिस्तीनी शहर है।
 
'ल्यूक एक्ट' के अनुसार उनका परिवार नाजरथ गांव में रहता था। उनके माता पिता नाजरथ से जब बेथलहेम पहुंचे तो वहां एक जगह पर उनका जन्म हुआ। एक दूसरे सिद्धांत के अनुसार अर्थात 'मैथ्यू एक्ट' के अनुसार ईसा का जन्म तो बेथलहम में हुआ था परंतु वहां के राजा हिरोड ने बेथलहेम में दो साल से कम उम्र के सभी बच्चों को मारने का आदेश दे दिया दिया था, यह जानकर ईसा मसीह का परिवार वहां से मिस्र चला गया था। फिर वहां से कुछ समय बाद वे नजारथ में बस गए थे। 'गॉस्पेल ऑफ मार्क' और 'गॉस्पेल ऑफ जॉन' ने इनके जन्म स्थान का जिक्र नहीं किया है, लेकिन उनका संबंध नाजरथ से बताया है।
 
3. माता पिता : कहते हैं जब यीशु का जन्म हुआ तब मरियम कुंआरी थीं। मरियम योसेफ नामक बढ़ई की धर्म पत्नी थीं। जिस वक्त ईसा मसीह का जन्म हुआ उस वक्त परियों ने वहां आकर उन्हें मसीहा कहा और ग्वालों का एक दल उनकी प्रार्थना करने पहुंचा। यह भी कहा जाता है कि मरियम को यीशु के जन्म के पहले एक दिन स्वर्गदूत गाब्रिएल ने दर्शन देकर कहा था कि धन्य हैं आप स्त्रियों में, क्योंकि आप ईश्‍वर पुत्र की माता बनने के लिए चुनी गई हैं। यह सुनकर मदर मरियम चकित रह गई थीं। कहते हैं कि इसके बाद सम्राट ऑगस्टस के आदेश से राज्य में जनगणना प्रारंभ हुई जो सभी लोग येरुशलम में अपना नाम दर्ज कराने जा रहे थे। यीशु के माता पिता भी नाजरथ से वहां जा रहे थे परंतु बीच बेथलेहम में ही माता मरियम ने एक बालक को जन्म दिया।
 
ईसाई धर्मपुस्तक के अनुसार माता मरियम गलीलिया प्रांत के नाजरथ गांव की रहने वाली थी और उनकी सगाई दाऊद के राजवंशी युसुफ नामक बढ़ई से हुई थी। कहते हैं कि विवाह के पूर्व ही वह परमेश्वर के प्रभाव से गर्भवती हो गई थीं। परमेश्वर के संकेत के चलते युसुफ या योसेफ ने उन्हें अपनी पत्नी स्वीकार कर लिया। विवाह के बाद युसुफ गलीलिया प्रांत छोड़कर यहूदी प्रांत के बेथलेहम नामक गांव में आकर रहने लगे और वहीं पर ईसा मसीह का जन्म हुआ। परंतु वहां के राजा हेरोद के अत्याचार से बचने के लिए वे मिस्र जाकर रहने लगे थे और बाद में जब ई.पूर्व. हेरोद का निधन हो गया तो वे पुन: बेथलेहम आए और वहां पर 6 ईसापूर्व ईसा मसीह का जन्म हुआ और फिर वे वहां से पुन: नाजरेथ में बस गए थे। जो भी हो यह तो सिद्ध होता ही है कि ईसा मसीह के माता पिता नाजरथ के रहने वाले थे और बेथलेहेम में ईसा का जन्म हुआ था। अब वे बेथलेहम क्यों गए थे यह रहस्य बना रहेगा।
 
4. अस्तबल में हुआ जन्म :  मदर मैरी का विवाह नाजरथ के जोसेफ नाम के एक युवक से हुआ। मैरी किसी चमत्कार से गर्भवती हो गई और फिर एक दिन जब मैरी और जोसफ दोनों किसी कारण से नाजरथ से बेथलहम गए थे तो वहां पर उन दिनों बहुत से लोग आए हुए थे जिस कारण सभी धर्मशालाएं और शरणालय भरे हुए थे जिससे जोसेफ और मैरी को अपने लिए शरण नहीं मिल पाई। तब बड़ी मुश्‍किल से उन्हें एक अस्तबल में जगह मिली और उसी स्थान पर आधी रात के बाद प्रभु यीशु का जन्म हुआ। अस्तबल के निकट कुछ गडरिए अपनी भेड़ें चरा रहे थे, वहां ईश्वर के दूत प्रकट हुए और उन गडरियों को प्रभु यीशु के जन्म लेने की जानकारी दी। गडरिए उस नवजात शिशु के पास गए और उसे नमन किया।
5. कब से शुरु हुई क्रिसमस पर्व मनाने की परंपरा :-
 
- इतिहासकार कहते हैं कि ईसा का जन्मदिवस कब से मनाया जाने लगा यह अज्ञात है परंतु जन्म स्थान पर 333 ईस्वी में एक बेसिलिका बनाई गई थी। उसके बाद वहां क्रिसमय मानाने के लिए आने लगे। फिर यहां पर सबसे पहले 339 ईस्वी में एक चर्च पूरा किया गया। जिसे द चर्च ऑफ द नैटिविटी कहा जाने लगा। 
 
- 25 दिसंबर को उस दौर में रोमन लोग सूर्य उपासना का त्योहार मनाते थे। कहते हैं कि बाद में जब ईसाई धर्म का प्रचार हुआ तो कुछ लोग ईसा को सूर्य का अवतार मानकर इसी दिन उनका पूजन करने लगे मगर इसे उन दिनों मान्यता नहीं मिल पाई। फिर बाद में इसी दिन को कब उनका जन्म दिवस घोषित कर दिया गया, इस पर मतभेद है।
 
- चौथी शताब्दी में उपासना पद्धति पर चर्चा शुरू हुई और पुरानी लिखित सामग्री के आधार पर उसे तैयार किया गया। 360 ईस्वी के आसपास रोम के एक चर्च में ईसा मसीह के जन्मदिवस पर प्रथम समारोह आयोजित किया गया, जिसमें स्वयं पोप ने भी भाग लिया मगर इसके बाद भी समारोह की तारीख के बारे में मतभेद बने रहे।
 
- इतिहासकारों के अनुसार रोमन काल से ही दिसंबर के आखिर में पैगन परंपरा के तौर पर जमकर पार्टी करने का चलन रहा है। यही चलन ईसाइयों ने भी अपनाया और इसे नाम दिया 'क्रिसमस'। इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका के हवाले से कुछ लोग यह भी कहते हैं कि चर्च के नेतृत्व कर्ता लोगों ने यह तारीख शायद इसलिए चुनी ताकि यह उस तारीख से मेल खा सके, जब गैर-ईसाई रोमन लोग सर्दियों के अंत में 'अजेय सूर्य का जन्मदिन मनाते' थे।'
 
- यह भी कहा जाता है कि यहूदी धर्मावलंबी गडरिए प्राचीनकाल से ही 8 दिवसीय बसंतकालीन उत्सव मनाते थे। ईसाई धर्म के प्रचार के बाद इस उत्सव में गड़रिए अपने जानवरों के पहले बच्चे की ईसा के नाम पर बलि देने लगे और उन्हीं के नाम पर भोज का आयोजन करने लगे। हालांकि यह समारोहर पहले गड़रियों तक ही सीमित था। उन दिनों पैंगन, रोमन और गडरियों के पर्व के अलावा कुछ अन्य समारोह भी आयोजित किए जाते थे, जिनकी अवधि 30 नवंबर से 2 फरवरी के बीच में होती थी। जैसे नोर्समेन जाति का यूल पर्व और रोमन लोगों का सेटरनोलिया पर्व।
 
- कहते हैं कि तीसरी शताब्दी में ईसा मसीह के जन्मदिन पर भव्य समारोह करने पर ईसाई धर्माधिकारियों ने गंभीरता से विचार-विमर्श किया और यह तय किया गया कि बसंत ऋतु का ही कोई दिन इस समारोह के लिए तय किया जाए। इसके बाद 28 मार्च और फिर 19 अप्रैल के दिन निर्धारित किए गए। बाद में इसे भी बदलकर 20 मई कर दिया गया। इस संदर्भ में बाद में 8 और 18 नवंबर की तारीखों के भी प्रस्ताव रखे गए।
 
- फिर चौथी शताब्दी में रोमन चर्च तथा सरकार ने संयुक्त रूप से 25 दिसंबर को ईसा मसीह का जन्मदिवस घोषित कर दिया और तभी से क्रिसमय मनाया जाने लगा। हालांकि इसके बावजूद इसे प्रचलन में आने में लंबा समय लगा।
 
- पहले इस समारोह में पूर्व में मनाए जाने वाले अन्य जातियों के उत्सव इनके साथ घुले-मिले रहे और बाद में भी उनके कुछ अंश क्रिसमस के पर्व में स्थायी रूप से जुड़ गए। हालांकि इस तारीख को ईसा की जन्मभूमि में पांचवीं शताब्दी के मध्य में स्वीकार किया गया।
 
- 13वीं शताब्दी में जब प्रोटस्टेंट आंदोलन शुरू हुआ तो इस पर्व पर पुनः आलोचनात्मक दृष्टि डाली गई और यह महसूस किया गया कि उस पर पुराने पैगन धर्म का काफी प्रभाव शेष है। इसलिए क्रिसमस केरोल जैसे भक्ति गीतों के गाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया और 25 दिसंबर 1644 को इंग्लैंड में एक नया कानून बना, जिसके अंतर्गत 25 दिसंबर को उपवास दिवस घोषित कर दिया गया।
 
- बोस्टन में 1690 में क्रिसमस के त्योहार को प्रतिबंधित ही कर दिया गया। 1836 में अमेरिका में क्रिसमस को कानूनी मान्यता मिली और 25 दिसंबर को सार्वजनिक अवकाश घोषित किया गया। इससे विश्व के अन्य देशों में भी इस पर्व को बल मिला।
 
- बाद में इस पर्व में योरप, रशिया और अन्य देशों की परंपरा का प्रभाव पड़ा और इस पर्व के साथ वृक्ष सजाने, सांता क्लॉज और जिंगल बेल के साथ ही गिफ्ट एवं कार्ड देने का प्रचलन भी प्रारंभ हुआ। 
 
- बाद में इस पर्व के साथ कई दंतकथाएं भी जुड़ गईं। 1821 में इंग्लैंड की महारानी ने एक 'क्रिसमस वृक्ष' बनवाकर बच्चों के साथ समारोह का आनंद उठाया था। उन्होंने ही इस वृक्ष में एक देव प्रतिमा रखने की परंपरा को जन्म दिया। बधाई के लिए पहला क्रिसमस कार्ड लंदन में 1844 में तैयार हुआ और उसके बाद क्रिसमस कार्ड देने की प्रथा 1870 तक संपूर्ण विश्व में फैल गई।
 
डिस्क्लेमर : लेख में दी गई जानकारी विभिन्न स्रोत से प्राप्त, शोध, मान्यता और परंपरा पर आधारित जानकारी है इसकी पुष्‍टि वेबदुनिया नहीं करता है। इसके लिए किसी विशेषज्ञ से जरूर सलाह लें।
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