छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2018 का बिगुल बज चुका है। पिछले 15 साल से यहां भाजपा के रमनसिंह को हरा पाना कांग्रेस या किसी अन्य दल के लिए संभव नहीं हुआ है। लेकिन विकास की दौड़ में तेजी से उभरते हुए राज्य में इस बार भाजपा के लिए चुनौती कठिन होती जा रही है।
अभी तक राज्य में भाजपा की सरकार जरूर बन रही है लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि कांग्रेस और भाजपा को मिले वोटों का अंतर बहुत ज्यादा नहीं है। राज्य में चल रही क्षेत्रीय गुटबाजी, गठबंधन के कयास और लगभग सभी राजनैतिक दलों में बागियों की बढ़ती संख्या से इस बार चुनाव परिणाम पलट भी सकते हैं।
जोगी फैक्टर : छ्त्तीसगढ़ की राजनीति के सबसे बड़े क्षत्रपों में से एक अजीत जोगी आदिवासी और दलित मतदाताओं को लुभाने में लगे हैं। पिछले 5 वर्षों से अजीत जोगी राज्य में लगातार दौरे करते रहे हैं और आम लोगों के बीच उनकी समस्याएं सुलझाते हुए उन्होंने कई क्षेत्रों में अच्छी पकड़ बना ली है।
छत्तीसगढ़ की 90 विधानसभा सीटों में से 39 आरक्षित सीटें हैं। इनमें 29 अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित हैं। चूंकि जोगी आदिवासी वर्ग से आते हैं, ऐसे में इन सीटों पर उनका अच्छा प्रभाव है। साथ ही वे यहां मेहनत भी अच्छी कर रहे हैं। ऐसे में कोई आश्चर्य नहीं कि आगामी चुनाव में 'जोगी इफेक्ट' जरूर देखने को मिलेगा।
कांग्रेस की रणनीति को भली-भांति जानने-समझने वाले जोगी की कोशिश कांग्रेस के वोटबैंक में सेंध लगाने की होगी। यदि जोगी कांग्रेसी वर्चस्व की सीटों पर कांग्रेस के खिलाफ लड़ते हैं तो फायदा सीधा भाजपा को हो सकता है। इसलिए अब यहां कांग्रेस की कोशिश 'डैमेज कंट्रोल' की होगी।
हालांकि अजित जोगी के पत्नी रेणु जोगी अब भी कांग्रेस के ही झंडे तले चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी कर रही हैं। ऐसे में जोगी और कांग्रेस के बीच गठबंधन के दरवाजे भी खुले हुए हैं और यदि दोनों के बीच यह गठजोड़ हो जाता है तो निश्चित ही भाजपा की मुश्किलें बढ़ जाएंगी।
बागी फैक्टर : कांग्रेस की सबसे बड़ी परेशानी है चेहरों का चुनाव। इस समय छत्तीसगढ़ में बड़े फैसले भी दिल्ली के निर्देश पर ही हो रहे हैं। छत्तीसगढ़ में इस समय प्रदेश कमेटी और क्षत्रपों की बीच भारी गुटबाजी मची है। कहीं-कहीं तो एक ही सीट (खासतौर से शहरी क्षेत्रों) से कई उम्मीदवार दावा कर रहे हैं। इस बंटी हुई कांग्रेस व टिकट न मिल पाने पर भीतरघात या बगावत से चुनावी संभावनाएं प्रभावित होने की पूरी संभावना है।
कांग्रेस के बड़े नेता भूपेश बघेल, टीएस सिंहदेव और चरणदास महंत, तीनों ही अपने-अपने क्षेत्र में दिग्गज नेता हैं। तीनों ही अपने समर्थकों के लिए ज्यादा से ज्यादा टिकट लेने की कोशिश कर रहे हैं। तीनों की ही नजर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर भी है। अपने पक्ष को मजबूत करने के लिए तीनों ही अपने समर्थकों को लामबंद कर रहे हैं।
जहां भाजपा के लिए एंटी इनकंबेंसी सबसे बड़ा मुद्दा है वहीं इससे निपटने के लिए अपनाए जाने वाले तरीके भी छत्तीसगढ़ भाजपा के लिए मुसीबत खड़ी करेंगे। अमित शाह द्वारा करवाए गए सर्वे में मौजूदा विधायकों का रिपोर्ट कार्ड खराब है, उनके ही क्षेत्र में उनका विरोध सबसे ज्यादा है। यदि शाह के 'चेहरा बदलो, चुनाव जीतो' फार्मूले पर प्रदेश भाजपा चलती है तो कई मौजूदा विधायकों के टिकट कट सकते हैं और यह 'नेता' बागी बन पार्टी के लिए परेशानियां खड़ी कर सकते हैं।
इसी तरह जोगी कांग्रेस में भी बगावत का बिगुल बज चुका है। पार्टी की युवा इकाई के प्रदेश अध्य़क्ष विनोद तिवारी ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल को समर्थन देते हुए अब कांग्रेस का हाथ थाम लिया है। जोगी कांग्रेस के इस पूर्व नेता के बड़ी संख्या में युवा समर्थक हैं जो तिवारी के पक्ष में पार्टी स्विच कर सकते हैं।
विनोद तिवारी टिकट के दावेदार थे। उनकी दावेदारी पर अजित जोगी खामोश रहे। इस स्थिति को भांपते हुए भूपेश बघेल ने जोगी कांग्रेस में सेंध लगाने में देर नहीं की। तिवारी की तर्ज पर भाजपा और कांग्रेस में भी कई लोग चुनाव से पहले पाला बदल सकते हैं।
गठबंधन फैक्टर : बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस के बीच में भी गठबंधन की खबरें आ रही हैं। बसपा छ्त्तीसगढ़ में आदिवासी वोटरों और दलितों में पैठ बनाने की जुगत में है। छत्तीसगढ़ में फिलहाल 1 सीट पर ही बसपा काबिज है। लेकिन कांग्रेस से गठजोड़ की स्थिति में दोनों ही दलों को फायदा मिल सकता है।
ऐसा माना जा रहा है कि कांग्रेस जोगी के तोड़ के तौर पर बसपा के साथ गठबंधन कर सकती है जो 2019 के लोकसभा चुनाव में भी महागठबंधन बनाने में फायदेमंद साबित हो सकता है। वहीं भाजपा ऐसा नहीं होने देने के लिए पूरी कोशिश करेगी क्योंकि विभाजित विपक्ष रमनसिंह के लिए एकदम मुफीद है।