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विज्ञान के क्षेत्र से किशोरियों का कम लगाव : कारण एवं निराकरण

विज्ञान के क्षेत्र से किशोरियों का कम लगाव : कारण एवं निराकरण - career in science
- सुशील शर्मा 


 

किशोरियां भावनात्मक रूप से लड़कों की अपेक्षा ज्यादा मजबूत होती हैं किंतु फिर भी वे आधुनिक तकनीकी एवं विज्ञान के विषयों की अपेक्षा परंपरागत विषयों जैसे कला समूह, संगीत व साहित्य की ओर ज्यादा आकर्षित होती हैं। लड़के मानसिक रूप से एकांगी होते हैं जबकि किशोरियां बहुआयामी होती हैं। इसके बाद भी वे विज्ञान के क्षेत्र में अल्पसंख्यक हैं।
 
समस्या प्रारंभिक शिक्षा से शुरू होती है। समाज में ये रूढ़िवादी धारणा व्याप्त है कि कुछ विषय सिर्फ पुरुष ही पढ़ सकते हैं। भारतीय समाज विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में ये धारणा अभी भी बहुत प्रबल रूप से व्याप्त है कि लड़कियां विज्ञान एवं गणित पढ़ने के लिए उपयुक्त विद्यार्थी नहीं हैं। बचपन से उनके अवचेतन मन में ये बात बिठा दी जाती है कि गणित व विज्ञान उनके लिए कठिन व अनुपयुक्त विषय हैं व उनके अध्ययन के लिए कला समूह ही उचित विषय है। इस कारण से उनका झुकाव गणित व विज्ञान विषयों से हट जाता है।
 
हम इस बात पर तो खूब बात करते हैं कि किशोरियां विज्ञान पढ़ने के लिया क्यों उत्सुक नहीं हैं लेकिन हमें इस बात पर भी बात करना चाहिए कि हमारे पास ज्ञान व तकनीकी के कौन से साधन मौजूद हैं? क्या वे साधन किशोरियों को दृष्टि में रखते हुए क्रियान्वित किए जा रहे हैं?

विज्ञान के क्षेत्रों (STEM) में किशोरियों की कम रुचि के कारण...
 
* समाज, माता-पिता व शिक्षकों की ओर से किशोरियों को विज्ञान पढ़ने के लिए उपयुक्त व पर्याप्त प्रोत्साहन नहीं दिया जाता है, परिणामस्वरूप किशोरियों के मन में ये हीनभावना घर कर जाती है कि भौतिकी और गणित जैसे विषय में वे लड़कों से अच्छा नहीं कर सकती हैं।
 
* भारतीय परिवारों में विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में किशोरियों की शिक्षा पर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता है एवं उन्हें विज्ञान की जगह घर-वातावरण से संबंधित विषयों की ओर धकेला जाता है।
 
* किशोरियां सांस्कृतिक एवं सामाजिक रूढ़िवादिता से प्रभावित होकर परंपरागत विषयों की ओर उन्मुख होती हैं।
 
* विद्यालय स्तर पर विषयों की चयन की स्वतंत्रता के कारण किशोरियां अपने आसपास के वातावरण एवं संस्कृति से प्रभावित होकर विज्ञान विषयों से इतर अन्य विषयों में अपनी अभिरुचि बना लेती हैं।
 
* किशोर हमेशा किशोरियों की विशिष्टता को चुनौती देते हैं, विशेषकर विज्ञान के क्षेत्र में किशोरियों की योग्यता को हमेशा संदेह की दृष्टि से देखा जाता है।
 
* किशोरियों को कक्षा में शिक्षकों से सही उत्तर नहीं मिलते हैं। उनके प्रश्नों के प्रतिउत्तर में कहा जाता है कि 'किताब में देख लो', 'बुद्धू हो' या 'विज्ञान गंभीर विषय है', 'तुम्हारे बस का नहीं है' आदि।
 
* विज्ञान व रिसर्च के क्षेत्र में किशोरियों के लिए काम के क्षेत्र व रहवासी क्षेत्र ज्यादा सुरक्षित नहीं हैं।
 
* विज्ञान के क्षेत्र में करियर एवं व्यवसाय में भी किशोरियों अथवा महिलाओं को लिंगभेद का सामना करना पड़ता है। उन्हें पुरुष साथी की अपेक्षा कम वेतन, भत्ता, रहवासी सुविधाएं, ऑफिस में जगह एवं अवॉर्ड इत्यादि में कमतर स्थितियां प्राप्त होती हैं।
 
* विज्ञान पढ़ने वाली किशोरियों को किताबी कीड़ा माना जाता है एवं उनका यह गुण स्वाभाविक महिला चरित्र के विरुद्ध माना जाता है।
 
* किशोरियों के अवचेतन मन में ये बात बिठा दी जाती है कि शादी के बाद परिवार संभालना प्रमुख कार्य है अतः विज्ञान की अपेक्षा समाजशास्त्र से जुड़े विषयों का अध्ययन उनके लिए श्रेयस्कर है।
 
* किशोरियों में आत्मविश्वास की कमी होती है कि वे विज्ञान के क्षेत्र में अपना करियर नहीं बना पाएंगीं।
 
* भारत में किशोरियों के लिए रोल मॉडल की कमी है। जब किशोरियां अपने परिवार में मां, चाची, बुआ, दीदी किसी को भी विज्ञान पढ़ते नहीं देखती तो स्वाभाविक तौर पर उनकी रुचि विज्ञान में नहीं होती है।

 

भारत में विज्ञान के क्षेत्र में किशोरियों की वास्तविक स्थिति
 
* मिडिल स्कूलों में 74% किशोरियों का झुकाव विज्ञान की तरफ रहता है, जो हायर सेकंडरी स्तर पर 45% एवं उच्च शिक्षा में 23% रह जाता है।
 
* 60% किशोरियां विज्ञान के क्षेत्र में अपना करियर नहीं बनाना चाहती हैं।
 
* 10% किशोरियों के माता-पिता उनको विज्ञान पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।
 
* पूरे भारत में 35% महिलाएं स्नातक हैं जिसमें से 8.5% ही विज्ञान में स्नातक हैं।
 
निराशाजनक आंकड़े
 
आंकड़े दर्शाते हैं कि भारत में किशोरियों का झुकाव विज्ञान की ओर बहुत कम है, इस कारण से कार्यक्षेत्रों में लिंगानुपात प्रभावित हुआ है।
 
1. विश्वविद्यालयों में विभिन्न विषयों में बालक व बालिकाओं का अनुपात

विषय      बालक बालिका
कला समूह  9.4 10.5
जीव विज्ञान 6.5 7.4
इंजीनियरिंग 15.2 2.6
सामा. विज्ञान 6.1 11.7
टेक्नोलॉजी 3.7 1.4
कम्प्यूटर विज्ञान 4.3 1.2
 
 
2. इंडियन नेशनल साइंस अकादमी के सर्वे के अनुसार महिलाओं की संख्या नेशनल लैबोरेटरीज एवं महत्वपूर्ण विश्वविद्यालयों में पुरुषों की तुलना में 15% कम है। 
 
R & D एजेंसियों में महिला वैज्ञानिकों की स्थिति

एजेंसी    पुरुष वैज्ञानिक महिला वैज्ञानिक प्रतिशत
DBT  456 121 26.5
CSIR  5526 595 10.76
ICMR  615 168 11.8
ICAR  11057 1056 9.5
DST 147 18 12.24
 
 
3. भारत के वैज्ञानिक संस्थानों एवं विश्वविद्यालयों में पुरुष आधिपत्य है। महिलाएं कनिष्ठ पदों पर हैं तथा वरिष्ठ पदों पर पुरुष संख्या ज्यादा है।
पद पुरुष महिला
असिस्टेंट प्रोफेसर  45% 57%
एसोसिएट प्रोफेसर 40% 38%
प्रोफेसर  15% 05%
 
 
उपर्युक्त आंकड़े दर्शाते हैं कि किशोरियों का भविष्य विज्ञान के क्षेत्र में बहुत ज्यादा उज्ज्वल नहीं है। ये स्थितियां प्रतिक्रियात्मक हैं। यह किशोरियों के विज्ञान न पढ़ने का नतीजा है या किशोरियों के विज्ञान में रुचि न होने से ये स्थितियां निर्मित हो रही हैं। आकड़ों में समय के साथ सुधार जरूर हुआ होगा लेकिन स्थिति उतनी संतोषजनक अभी भी नहीं है।
 
 

किशोरियों को विज्ञान क्यों पढ़ना चाहिए? कुछ तथ्य
 
* जो किशोरियां विज्ञान पढ़ती हैं, वे अपनी सहेलियों से जो दूसरा विषय लेकर पढ़ती हैं, से 26% ज्यादा कमाई करती हैं।
 
* विज्ञान पढ़ने वाली किशोरियां अन्य विषय पढ़ने वाली किशोरियों की अपेक्षा ज्यादा प्रतिस्पर्धी एवं हार न मानने वाली होती हैं।
 
* जो किशोरियां विज्ञान विषय लेती हैं उनकी तार्किक क्षमता एवं कठिन परिस्थितियों से निपटने की क्षमता अन्य किशोरियों की अपेक्षा ज्यादा अच्छी होती है।
 
* वैज्ञानिक ढंग से सोचने के कारण अपने व्यक्तित्व एवं वातावरण को अधिक प्रभावशाली बनाती हैं।
 
* अपने परिवार, समाज एवं देश के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान देने की क्षमता विज्ञान पढ़ने वाली किशोरियों में होती है।
 
किशोरियों को कैसे विज्ञान के प्रति प्रोत्साहित करें? निराकरण
 
* माता-पिता एवं समाज को परंपरागत व रूढ़िवादी सोच को बदलना होगा। किशोरियों में बचपन से ही विज्ञान व गणित के प्रति उत्साहपूर्ण वातावरण तैयार कर उनके अवचेतन मन में यह बात डालनी होगी कि विज्ञान जीवन के लिए बहुत महत्वपूर्ण विषय है।
 
* विद्यालय एवं सामाजिक परिवेश में विज्ञान से संबंधित कार्यक्रमों का आयोजन कर विज्ञान, इंजीनियरिंग, तकनीकी, कम्प्यूटर, फॉर्मेसी या अन्य विज्ञान के विषयों में अग्रणी स्थानीय महिलाओं को आमंत्रित कर संबोधन करवाना चाहिए। इससे किशोरियों के सामने उनके रोल मॉडल्स होंगे एवं उनसे प्रभावित होकर विज्ञान के विषयों में उनकी रुचि बढ़ेगी।
 
*विद्यालयीन पाठ्यक्रमों को इस प्रकार से प्रारूपित करना चाहिए जिससे किशोरियों को विज्ञान विषय में सहभागिता के अवसर अधिक मिलें।
 
* शिक्षक छात्र एवं शिक्षा के बीच की बहुत महत्वपूर्ण कड़ी हैं, विज्ञान के क्षेत्र में नवाचार से परिचित कराने के लिए शिक्षक प्रशिक्षण अत्यंत महत्वपूर्ण है। प्रशिक्षण के दौरान शिक्षकों को किशोरियों की विज्ञान के प्रति अभिरुचि बढ़ाने की तकनीकों से परिचित करवाया जाना चाहिए।
 
* प्राथमिक स्तर पर साइंस कॉम्पिटिशन, साइंस फेयर, विज्ञान प्रश्नोत्तरी पाठ्यक्रम में अनिवार्य घोषित की जानी चाहिए ताकि बच्चियों की अभिरुचि विज्ञान के प्रति बढ़ सके एवं प्रोत्साहन के लिए उनको ट्रॉफियां, प्रमाण पत्र एवं अवॉर्ड देने चाहिए।
 
* वर्कशॉप का आयोजन कर किशोरियों को विज्ञान के अनेक रहस्यों को सरल ढंग से समझाना चाहिए। सरल मशीनों की क्रियाविधि एवं संचालन की जानकारी से उनके मन में विज्ञान के प्रति उत्सुकता जाग्रत होगी।
 
* रसायन के अनेक चमत्कारों का विश्लेषण उनके सामने करना चाहिए। रासायनिक अभिक्रियाओं के जादू देखकर उनके मन में विज्ञान के प्रति अभी रुचि जाग्रत होगी।
 
* सरल प्रोजेक्ट जैसे *मिश्रण को अलग करना *बिजली के मेंढक का फुदकना *रोबोट का संचालन *कैंडी वॉटर फॉल *दूध का प्लास्टिक बनना

* LED नृत्य ग्लोब आदि का प्रदर्शन निश्चित ही उनके मन में विज्ञान के प्रति अभिरुचि पैदा करेगा।
 
* विज्ञान से संबंधित आसपास के कल-कारखाने, बांध, बिजली बनाने वाली इकाइयां, पवन चक्कियां एवं फैक्टरियों का भ्रमण करना चाहिए ताकि वे विज्ञान के रहस्य एवं उसकी उपयोगिता को समझ सकें। इन जगहों पर काम करने वाली महिलाओं से भी उनकी मुलाकात करवाना चाहिए जिससे उनके मन में विश्वास बन सके कि वे भी इन क्षेत्रों में अपनी सहभागिता देकर करियर बना सकती हैं।
 
वैश्वीकरण के इस दौर में समाज, परिवार और तंत्र की मानसिकता में बदलाव आए हैं। पहले की अपेक्षा अधिक संख्या में किशोरियां STEM के क्षेत्र में भागीदार बनी हैं, लेकिन ग्रामीण क्षेत्र में अभी भी बहुत असंतुलन है। शिक्षा तक पहुंच ही इसका हल नहीं है। इसके लिए बहुआयामी योजनाओं के बनाने एवं धरातल पर उनके क्रियान्वयन की आवश्यकता है।

माता-पिता को अपनी मानसिकता में परिवर्तन लाना होगा। उन्हें परिवार में किशोरियों के प्रति पक्षपातपूर्ण व्यवहार बंद करने के लिए शिक्षकों, समाज व तंत्र को सहयोग करना होगा ताकि अधिक से अधिक किशोरियों को इस क्षेत्र में आने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके।