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Written By ND

सौरव की कामयाबी का गुरुमंत्र

खुद पर यकीन करें

सौरव गांगुली
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नागपुर टेस्ट में मिली जीत के साथ ही भारत के सबसे सफल कप्तान रहे सौरव गांगुली की अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से विदाई हो गई। उन्हें क्रिकेट की दुनिया में दादा के नाम से जाना जाता है। गांगुली ने अपने टेस्ट करियर की पहली पारी में शतक जमाया था और लेकिन अपने करियर की अंतिम पारी में वो खाता नहीं खोल पाए।

बावजूद इसके गांगुली ने अपनी आखिरी पारी में एक रिकार्ड बना दिया। सौरव गांगुली टेस्ट क्रिकेट में पहली पारी में शतक और अपनी आखिरी पारी में शून्य बनाने वाले इंग्लैंड के बिली ग्रिफिथ के बाद दूसरे क्रिकेटर बन गए हैं। गांगुली के क्रिकेट जीवन में बहुत उतार-चढ़ाव आए लेकिन अपनी जीवटता और जुझारुपन से उन्होंने हर मुश्किल घड़ी पर विजय पाई। आइये जानते हैं कैसे?

सौरव गांगुली का करियर
गांगुली ने अपने करियर की समाप्ति 113 टेस्ट मैचों में 7212 रन के साथ की जिनमें 16 शतक शामिल हैं। भारत के सबसे सफल कप्तान गांगुली ने 49 टेस्टों में भारत का नेतृत्व किया और 21 मैच जीते। गांगुली का कहना है 'भारतीय टीम का नेतृत्व करना आसान नहीं है, खासकर जब आपको सलाह देने के लिए सौ करोड़ लोग मौजूद हों।' उनका कहना है, 'जब तक आप जीत रहे हों तब तक तो ठीक है लेकिन अगर आप हार गए तो प्रतिक्रिया थोड़ी तेज हो सकती है।'

दादा का जलवा
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भारतीय टीम को 2003 के क्रिकेट के विश्व कप फाइनल तक पहुँचाने का श्रेय भी सौरव गांगुली को ही जाता है। और वह सौरव गांगुली की कप्तानी के ही दिन थे जब भारतीय क्रिकेट में पैसे की बरसात होनी शुरू हुई। भारतीय टीम के ऑस्ट्रेलियाई कोच ग्रेग चैपल के साथ अनबन होने से पहले सौरव ने पाँच साल तक भारतीय टीम की कप्तानी संभाली। फिर वो टीम से बाहर हो गए।

तब एक ऐसा समय था जब लोग मानने लगे थे कि सौरव का क्रिकेट जीवन खत्म हो गया लेकिन उन्होंने समीक्षकों को गलत साबित किया और एक बार फिर से भारतीय टीम में जगह बनाई। सौरव कहते हैं कि वे अब आराम की नींद सोना चाहते हैं। लेकिन दादा जो रिकॉर्ड छोड़कर जा रहे हैं, वो उनकी सफलता की कहानी खुद बयान करते हैं।

यादगार क्षण
वर्ष 2004 में पाकिस्तान में 50 साल बाद टेस्ट और वनडे दोनों जीतना बहुत खास था। वर्ष 2003 में ऑस्ट्रेलिया में जीत और तब ही विश्वकप का सफर... बहुत यादगार था। लगातार 15 मैच जीतने वाली ऑस्ट्रेलियाई टीम की जीत का सिलसिला तोड़ना और इंग्लैंड में नेटवेस्ट सिरीज जीतना मुझे जीवन भर याद रहेगा।

टीम में वापसी
मैं खराब क्रिकेट खेलने के कारण बाहर नहीं हुआ था इसलिए मन में कोई डर नहीं था, लेकिन दिल में ये तो आता ही था कि इस तरीके से मुझे टीम से बाहर नहीं होना चाहिए। मैं कभी हताश नहीं हुआ क्योकि घरवालों से लेकर प्रशंसकों और मीडिया ने बहुत समर्थन दिया। एक और चीज जो महत्वपूर्ण है वो ये कि क्रिकेट खेलने से पहले, खेलने के दौरान और उससे बाहर होने के बाद मेरे जीवन में कोई बदलाव नहीं हुआ।
शायद इसका कारण मेरा परिवार और पृष्ठभूमि रही। उन खिलाड़ियों के बारे में सोचता था जिनके पास नौकरी नहीं है, पैसा नहीं है या समर्थन नहीं है। इसलिए मुझे तो बस यही सोचना था कि क्रिकेट में कैसे वापसी करूँ।

प्रिंस और महाराजा
बचपन में या अभी भी मेरा कोई ऐसा महाराजाओं वाला स्टाइल नहीं रहा। दरअसल, मुझे ये सभी संबोधन सर जेफ्री बॉयकॉट की देन हैं।

सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज
मेरे ख्याल से दुनिया के सर्वश्रेष्ठ बाएँ हाथ के बल्लेबाजों में सर गैरी सोबर्स एक रहे, हालाँकि उन्हें मैने बल्लेबाजी करते नहीं देखा। लेकिन वेस्टइंडीज के ब्रायन लारा बेमिसाल हैं। वो जादूगर हैं और क्रिकेट इतिहास में उनका एक नाम है। आप जब उनकी बल्लेबाजी देख रहे होते हैं तो लगता है कि काश मैं भी ऐसा खेल सकता। वेस्टइंडियन जीवन ही एकदम बेफिक्री वाला होता है। खिलाड़ियों में भी यही है जीतो या हारो, पर मस्त क्रिकेट खेलो।

आईपीएल
ये तो सच है कि आईपीएल ने क्रिकेट में बड़ा बदलाव कर दिया है। सभी स्टेडियम बिलकुल ठसाठस भरे रहते हैं। आशा करते हैं कि क्रिकेट का ये नया रूप सफल होगा।

बहुत बड़ा स्टार
मैं वास्तव में स्टार जैसी चीज के बारे में नहीं सोचता हूँ। 1996 में मुझे लग गया था कि मुझमें अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेलने की क्षमता है। अब 12-13 साल बाद 100 टेस्ट और 300 वनडे मैच खेलने के बाद भी रन बनाने के बारे में सोचता हूँ। मेरे साथ क्रिकेट कभी रोजगार या पैसे के लिए नहीं रहा। मन में सिर्फ यही था कि देश के लिए खेलना है।

विज्ञापन की दुनिया
हाँ। लगभग 30-40 विज्ञापन किए हैं। लेकिन इन्हें भी लुत्फ उठाने के रूप में लेता हूँ। सच्चाई तो ये है कि पहले इन्हें देखकर मेरी बीवी ही हँसती थी लेकिन अब तो बेटी भी हँसती है। कहती हैं कि कहाँ शाहरुख खान की एक्टिंग देखते हैं और कहाँ आपकी ेक्टिंग है।

डोना कैसे मिली
दरअसल डोना बचपन से ही मेरे पड़ोस में रहती थी। हम साथ-साथ बड़े हुए। फिर 19-20 साल की उम्र में आकर कब प्यार हो गया पता ही नहीं चला। ये भी याद नहीं कि किसने पहले प्रपोज किया।

कितना लंबा सफर
सच बताऊँ मैं आगे देखने वाला व्यक्ति हूँ। लेकिन ये संतोष जरूर है कि मैंने भी देश के लिए कुछ किया है। मैं मैदान के बाहर बहुत ही शांत किस्म का व्यक्ति हूँ। लेकिन मैदान में मेरा व्यवहार बिलकुल बदल जाता है। मैं यही कोशिश करता हूँ कि कड़ी चुनौती पेश करें और जीतें। पहले अन्य टीमों में धारणा थी कि विदेशी दौरों पर हमारी टीम घूमने-फिरने आती है, लेकिन मैं इस धारणा को बदलना चाहता था। और बदल भी दी।

युवाओं के लिए कोई संदेश और कामयाबी का गुरुमंत्र -
मैं इतना कहना चाहूँगा कि खुद पर यकीन करें। और लोग आपके बारे में क्या सोचते हैं इस पर ध्यान नहीं देना चाहिए बल्कि आप अपने बारे में क्या सोचते हैं, वो ज्यादा अहम है।