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Written By ND

पढ़ाई के दौरान ब्रेक लेना जरूरी

पढ़ाई
- हेमंत गोस्वामी

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थोड़ी पढ़ाई, थोड़ा आराम अगर आप यह समझते हैं कि आपके बच्चे पूरा दिन लगातार पढ़ते रहें, बिना रुके और उनके बड़े अच्छे नंबर आएँगे तो आप गलती कर रहे हैं। विशेषज्ञ बताते हैं कि पढ़ने के लंबे घंटों के दौरान बीच-बीच में ब्रेक लेते रहने से अच्छी सफलता मिलती है।

आपको यह बात विरोधाभासी लग सकती है, किंतु यह सच है। विशेषज्ञों के अनुसार लंबे समय तक बिना रुके पढ़ते रहने से फायदा नहीं होता। ऐसा इसलिए होता है कि कुछ समय के बाद तनाव का स्तर बढ़ जाता है और एकाग्रता घटने लगती है। ध्यान भंग होने की वजह से ऐसे वक्त में पढ़ी गई सामग्री हमारे दिमाग में रह नहीं पाती। इसलिए कुछ समय के अंतराल पर ब्रेक लेने से दोबारा ध्यान केंद्रित करने में मदद मिलती है। ब्रेक का समय हमें आराम करके दिमाग को तरोताजा कर दोबारा काम करने के लिए तैयार कर देता है।

अब अमित की ही बात लीजिए, जो हमेशा 80 प्रतिशत से अधिक अंक हासिल करता है। अमित बताता है कि मैं अक्सर एक घंटे की पढ़ाई के बाद एक ब्रेक लेता हूँ। हालाँकि मेरी मम्मी को यह पसंद नहीं है पर फिर भी मैं ऐसा करता हूँ। वे कहती हैं कि मुझे बार-बार ब्रेक लेकर अपना समय बर्बाद नहीं करना चाहिए। उनकी मानें तो इसमें खर्च होने वाला समय बचाकर मैं 80 से बढ़कर 90 प्रतिशत अंक हासिल कर सकता हूँ। लेकिन ऐसा संभव नहीं है, क्योंकि एक घंटे तक पढ़ने के बाद मेरी एकाग्रता कम होने लगती है।

चिकित्सकों व मनोविदों का भी मानना है कि 50 मिनट तक पढ़ने के बाद एकाग्रता का स्तर घटने लगता है। कई घंटों तक पढ़ने की मेज पर बैठे रहने का मतलब है कि ऊर्जा और समय दोनों ही बर्बादी।

क्या करें इस दौरान?
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ब्रेक के समय बच्चे को ऐसी गतिविधियाँ करनी चाहिए, जिनमें उसे आनंद मिलता हो। पार्क में टहल सकते हैं। ध्यान लगा सकते हैं कोई खेल, खेल सकते हैं। जैसे बास्केटबॉल, फुटबॉल, टेनिस, बैडमिंटन। ये काफी अच्छे विकल्प हैं जो अकादमिक प्रदर्शन को सुधारने में मददगार सिद्ध होते हैं।

खेलने से सुधरता है अकादमिक प्रदर्शन
खेल शारीरिक व्यायाम का ही एक प्रकार है, जिससे शरीर में ऑक्सीटोसिन्स जैसे हारमोन उत्पन्न होते हैं। ये हारमोंस शरीर को आराम देते हैं तथा पढ़ाई के दौरान दिमाग को जो तनाव हुआ है, उससे राहत दिलाते हैं। खेलने-कूदने से हमारे शरीर में रक्त का संचार बेहतर होता है। दिमाग तक रक्त का प्रवाह बढ़ता है। खेलने से नोरेपाइनफ्राइन और एंडोरफिंस का स्तर बढ़ता है, जिससे तनाव घटता है, मूड ठीक होता है, दिमाग शांत होता है। इतना सब होने से जाहिर है कि परीक्षा में प्रदर्शन सुधरेगा।

जो बच्चे मिल-जुलकर रहते हैं, खेलते-कूदते हैं और टीम के नियमों का पालन करते हैं वे नई चीजें सीखते हैं और चुनौतियों का सामना करते हैं। खेलकूद से आत्मविश्वास बढ़ता है। बच्चे चौकन्ने रहते हैं, उनकी एकाग्रता बेहतर होती है और संप्रेषण का उनका कौशल सुधरता है। शरीर लचीला तो बनता ही है, साथ ही उनकी बॉडी इमेज भी अच्छी होती है। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि खेल हमें नाकामियों का सामना करने का जज्बा देते हैं।

इसलिए परीक्षाओं की तैयारी के समय याद रखें कि लंबे घंटों तक पढ़ने से ध्यान भंग होने लगता है और ब्रेक लेकर खेलने से दोबारा फोकस करने में मदद मिलती है। इसलिए खेलते भी रहिए और पढ़ते भी रहिए।