खुद की नज़रों से बच नहीं सकते
एक गुरु ने अपने तीन शिष्यों की परीक्षा लेने के उद्देश्य से बुलाया। उन्होंने शिष्यों को मिट्टी के तोते सौंपते हुए कहा कि तुम्हें इन तोतों की गर्दन ऐसी जगह मरोड़ना है, जहां तुम्हें कोई देख न सके। तीनों शिष्य एकांत स्थल की खोज में निकल गए। पहला शिष्य सुनसान जंगल में पहुंचा। वहाँ उसने तोते की गर्दन मरोड़ी और आश्रम की ओर चल दिया। दूसरा शिष्य एक अंधेरी गुफा में पहुंच गया। उसे अपना काम करने के लिए वह जगह उपयुक्त लगी। उसने भी तोते की गर्दन मरोड़ी और वापस चल दिया। तीसरा शिष्य निर्जन स्थान पर गया, घने जंगल में गया, अंधेरी गुफा में घुसा, लेकिन उसे कोई ऐसा स्थान नहीं मिला, जहाँ उसे कोई देख नहीं रहा हो। अंततः निराश होकर वह आश्रम लौट आया।गुरु ने तीनों से बारी-बारी से उस स्थान के बारे में पूछा, जहाँ पर उन्होंने अपने काम को अंजाम दिया। पहले दोनों शिष्यों ने उन्हें जगह के बारे में बताकर टूटी गर्दन वाले तोते गुरुजी को लौटा दिए। जब तीसरे की बारी आई तो वह सही-सलामत तोता गुरु के आगे कर हताशा से बोला- गुरुजी, मैं असफल होकर लौटा हूं। क्योंकि मैं ऐसा स्थान खोजने में असमर्थ रहा, जहाँ कि कोई मुझे देख न रहा हो। क्योंकि जहां कोई और मुझे नहीं देख रहा होता था वहां मैं स्वयं और मेरा ईश्वर तो उस तोते को देख रहा होता था। इस तरह लाख कोशिशों के बाद मैं हताश होकर लौट आया। उस शिष्य की बात सुनकर गुरु प्रसन्न हो गए। वे यही तो जानना चाहते थे कि कौन-सा शिष्य उनकी शिक्षाओं को आत्मसात कर रहा है। दोस्तो, सही तो है। आप किसी बात को या काम को दुनिया से तो छिपा लोगे, लेकिन खुद से कैसे छिपाओगे? आप जो भी करते हैं उसे कोई और देखे न देखे, आप स्वयं तो देखते ही हैं। यहीं आकर तो गाड़ी अटकती है। आज तक दुनिया में कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं हुआ है और न ही होगा, जो अपने किसी भी उचित या अनुचित काम को खुद से छिपा ले। बहुतों ने छिपाने की कोशिश की, इसके लिए वे बहुत भागे भी लेकिन अपने आप से कोई भाग पाया है भला। नहीं न। तो यदि आप ऐसा सोचते हैं कि आप भी सबकी नजरें बचाकर कुछ भी कर गुजरेंगे तो आप गलत सोचते हैं। क्योंकि आपने अब तक जो किया है, आप जो कर रहे हैं या आप जो आगे करेंगे, वह कोई और जाने न जाने आप खुद तो जानते ही हैं।