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Written By मनीष शर्मा

यदि विनय है पास तो पूरी होगी हर आस

विनय आस
राजा ज्ञानसेन द्वारा आयोजित एक शास्त्रार्थ में दूर-दूर से विद्वान आए। दस दिनों तक विद्वानों में विभिन्न विषयों पर खूब तर्क-वितर्क हुए। अंत में प्रसिद्ध विद्वान भारवि ने विजय हासिल की। उनके प्रति सम्मान प्रदर्शित करने के लिए राजा ज्ञानसेन ने उन्हें हाथी पर बिठाया और स्वयं चँवर डुलाते हुए उनके घर तक पहुँच गए।

अपने पुत्र को इस तरह सम्मानित होते देख भारवि के माता-पिता की खुशी का ठिकाना न रहा। सम्मान के मद में भारवि ने पिता का सिर्फ अभिवादन किया, उनके चरण स्पर्श नहीं किए। आहत पिता बिना कोई प्रतिक्रिया व्यक्त किए भावहीन खड़े रहे।

भारवि ने अपनी माता से इसका कारण पूछा तो माता ने कहा- पुत्र, आज जिस सफलता पर तुम्हें इतना सम्मान मिल रहा है, उसके पीछे तुम्हारे पिता की लंबी साधना रही है। शास्त्रार्थ के दस दिनों के दौरान वे तुम्हारी जीत के लिए वे निराहार रहे।
  राजा ज्ञानसेन द्वारा आयोजित एक शास्त्रार्थ में दूर-दूर से विद्वान आए। दस दिनों तक विद्वानों में विभिन्न विषयों पर तर्क-वितर्क हुए। अंत में प्रसिद्ध विद्वान भारवि ने विजय हासिल की। उनके प्रति सम्मान प्रदर्शित करने के लिए राजा ने उन्हें हाथी पर बिठाया।      


तुम्हारे अध्ययन के लिए उन्होंने कितना श्रम किया, यह भी तुम भूल गए। और जीत के बाद अपने पिता का सम्मान कैसे करना चाहिए, यह भी तुम्हें ध्यान नहीं रहा। तुम्हारी सारी विद्वत्ता व्यर्थ हो गई, क्योंकि विद्वत्ता से तो विनय आता है, तुमने तो उसे ही त्याग दिया। यहाँ तक कि तुमने अपने राजा तक से विनय का पाठ नहीं सीखा, जो खुद चँवर डुलाते हुए तुम्हें घर छोड़ने आए हैं। भारवि को अपनी गलती समझ में आ गई और वे पिता के चरणों में गिर पड़े।

दोस्तों, भारवि ने तो अपनी गलती को तुरंत सुधार लिया, लेकिन बहुत से लोग गलती करने के बाद उसे सुधारते नहीं हैं, क्योंकि उन्हें अपनी विद्वत्ता का, ज्ञान का, योग्यता का इतना दंभ हो जाता है कि फिर उन्हें बाकी सब अपने से कमतर नजर आने लगते हैं।

यहाँ तक कि इनकी सफलता में जिन लोगों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है, वे भी इनके लिए महत्वहीन हो जाते हैं। ये सोचते हैं कि वे यदि दूसरों से प्यार से, विनम्रता से, सभ्यता से, शालीनता से बात करेंगे तो इनका कद छोटा हो जाएगा, सामने वाला इन्हें कम करके आँकने लगेगा।

यदि आपकी भी ऐसी ही सोच है तो आप भी यह भूल रहे हैं कि विनम्रता तो बड़प्पन की निशानी होती है। झुकता वही है जिसके पास बहुत कुछ होता है। वो कहते हैं न कि फलों से लदी डालियाँ ही झुकती हैं। यदि आप वाकई विद्वान हैं तो फिर अकड़ किस बात की।

यदि अकड़ है तो फिर विद्वत्ता में, ज्ञान में, सद्गुणों में कहीं न कहीं कोई कमी है। वो कहते हैं न कि 'विद्या ददाति विनयं...' यानी विद्या आपको विनय देती है, विनय से आपको पात्रता मिलती है, योग्यता मिलती है।

योग्यता से आप धन प्राप्त करते हैं। धन आपको धर्म देता है और धर्म से सुख प्राप्त होता है। अब आप ही बताएँ कि यदि विद्या से विनय न मिले तो विद्या बेकार ही हो गई ना। क्योंकि आपने विद्या ऊपरी तौर पर ही पाई, अंदर से आप गँवार ही रहे, अज्ञानी ही रहे। तभी तो घमंडी बन गए। और घमंडी की किसी भी मंडी में कोई पूछ नहीं होती। वह बस अपनी दुनिया में जीता है। खुद ही खुश होता रहता है। इसलिए वाकई विद्वान बनना, कहलवाना चाहते हो तो विनम्र बनो।

व्यवहार में नम्रता लाओ, शालीनता लाओ। तब बाकी सद्गुण भी आपकी ओर खिंचे चले आएँगे, क्योंकि विनय समस्त गुणों की आधारशिला है। विनम्रता और सद्गुणों में चोली-दामन का साथ कहा गया है। तभी तो जो व्यक्ति विनम्र होता है, वह संस्कारी भी होता है और मूल्य आधारित जीवन जीता है। इसलिए कह सकते हैं कि यदि आपके पास विनय है तो फिर तो आपकी हर आस पूरी होगी।

क्योंकि उस आस या सपने को पूरा करने के लिए सफलता हासिल करने के लिए जरूरी बातें, गुण, संस्कार आपके अंदर जो होंगे। इसके सहारे तो आप एक के बाद एक नई कामयाबी पा सकते हैं, ऊँचे से ऊँचे शिखर पर पहुँच सकते हैं, नए-नए कीर्तिमान रच सकते हैं।

विनम्रता का गुण जीवन में हर क्षेत्र में काम आता है। इसके सहारे आप लोगों के दिल पर राज कर सकते हैं, उन्हें अपना बना सकते हैं। इसलिए आप कितने ही बड़े बन जाएँ, ऊँचे उठ जाएँ, यदि आप विनय का साथ नहीं छोड़ेंगे तो फिर आपको कभी पीछे मुड़कर नहीं देखना पड़ेगा। अच्छा, अब समझ में आया कि ये कमर क्यों झुकने लगी है।