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Written By मनीष शर्मा

यदि पहचाना है मोहरा तो देखो चेहरा-मोहरा

वीर सावरकर आजादी
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लंदन के इंडिया हाउस में रहने आया एक 30 वर्षीय छात्र तरुण कीर्तिकर अपने व्यवहार से जल्द ही वहाँ के सभी लोगों का चहेता बन गया, विशेषकर वीर सावरकर का। भारत की आजादी से संबंधित गोपनीय बातों का भी वह हिस्सेदार हो गया। लेकिन सावरकर के साथी डॉ. राजन और अय्यर को उसकी हरकतें संदेहास्पद लगती थीं।

वह इंडिया हाउस में रहने वाला एकमात्र प्रवासी था, जो कहीं भी आ-जा सकता था और पुलिस भी उस पर नजर नहीं रखती थी। सावरकर को यह बात बताने पर उन्होंने एक दिन उसके कमरे की तलाशी ली। उनके हाथ पुलिस को भेजने के लिए तैयार एक रिपोर्ट लगी जिसमें इंडिया हाउस की पिछले सप्ताह की गतिविधियों का पूरा ब्योरा था। इस पर सावरकर ने गुस्से से काम न लेकर युक्ति से काम लेने की सोची। उस रात कीर्तिकर के लौटने पर वे उसके साथ कमरे में घुस गए।

अय्यर ने जब उसके सामने वह रिपोर्ट रखकर उसके बारे में पूछा तो सकपकाया हुआ कीर्तिकर उससे अनजान बना रहा। तब अय्यर ने उसकी कनपटी पर पिस्तौल रखकर कहा कि यदि तुम सच-सच बता दोगे तो बच जाओगे वर्ना..।
  लंदन के इंडिया हाउस में रहने आया एक 30 वर्षीय छात्र तरुण कीर्तिकर अपने व्यवहार से जल्द ही वहाँ के सभी लोगों का चहेता बन गया, विशेषकर वीर सावरकर का। भारत की आजादी से संबंधित गोपनीय बातों का भी वह हिस्सेदार हो गया।      


मरता क्या न करता। उसने बताया कि उसे स्कॉटलैंड यार्ड पुलिस ने वहाँ प्लांट किया है। इस पर सावरकर बोले- यदि तुम्हें अपनी जान प्यारी है तो तुम पहले की तरह रिपोर्ट भेजते रहो, लेकिन उसकी सामग्री हम तय करेंगे। क्या तुम्हें यह मंजूर है?

कीर्तिकर के पास इस प्रस्ताव को मंजूर करने के सिवाय कोई चारा भी नहीं था। इसके बाद स्कॉटलैंड यार्ड कई महीनों इस भ्रम में रही कि इंडिया हाउस में ब्रिटेन विरोधी कोई गतिविधि नहीं चल रही है।

दोस्तो, इसे कहते हैं दुश्मन को उसी के मोहरे से पीटना। लेकिन कीर्तिकर पहला और अकेला व्यक्ति नहीं था जो किसी का मोहरा बना हो। यह खेल सदियों से बदस्तूर जारी है, जिसमें प्रतिद्वंद्वी को परास्त करने के लिए उसके किसी भरोसेमंद व्यक्ति को लालच देकर अपना मोहरा बना लिया जाता है या फिर किसी बाहरी व्यक्ति को मोहरा बनाकर सामने वाले के खेमे में शामिल करा दिया जाता है। इसे आजकल की भाषा में प्लांट करना कहते हैं।

वह व्यक्ति अपनी योग्यता से सबसे पहले सामने वाले खेमे के महत्वपूर्ण लोगों का विश्वास हासिल करता है। इसके लिए वह जान-बूझकर ऐसी चालें चलता है कि उसे शक के दायरे में लिया जाए और वह विश्वास की कसौटी पर खरा उतरे। इसके बाद वह निश्चिंत होकर सामने वाले की गोपनीय बातें उन तक पहुँचाने लगता है जिनका कि वह मोहरा है। इससे दुश्मन खेमा सामने वाले की चालों, कदमों के बारे में पहले से जानकर उनकी काट ढूँढ लेता है या फिर पहले वही खुद उस चाल को चल देता है।

वर्तमान में बाजी मारने के लिए कॉर्पोरेट क्षेत्र में इस तरीके का चलन कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है। संचार क्रांति के चलते मोबाइल, कम्प्यूटर, इंटरनेट और ई-मेल जैसी सुविधाओं के कारण अब तो गोपनीय जानकारियों का आदान-प्रदान और भी आसान हो गया है। ऐसे में यह सतर्कता बरतना जरूरी है कि कहीं आपके यहाँ कोई प्लांटेड मोहरा तो नहीं है।

यदि कोई असामान्य हरकतें कर रहा है तो उसका चेहरा-मोहरा देखकर यानी नजर रखकर आप यह पता लगा सकते हैं कि कहीं वह किसी का मोहरा तो नहीं। यदि है तो आप उसकी जानकारी में लाए बिना उसे ही अपना मोहरा बनाकर सामने वाले को उसी के मोहरे से पीट सकते हैं या उसे बाहर कर सकते हैं। इस तरह उसके द्वारा बैठाई गई गोटी से ही आप अपनी गोटी लाल कर सकते हैं।

दूसरी ओर, आगे बढ़ने के लिए कभी किसी का मोहरा नहीं बनना चाहिए, क्योंकि मोहरा बनाने वाला अपने फायदे के लिए आपको इस्तेमाल करता है कि चाल कामयाब हो गई तो ठीक वर्ना अपना क्या जाएगा। ऐसे में यदि आप सामने वाले की नजर में आ गए तो फिर आप दोनों तरफ से जाते हैं। क्योंकि मोहरा बनाने वाला भी आपको पहचानने से मना कर देता है इसलिए मोहरा बना ही क्यों जाए।

और अंत में, आज वीर सावरकर दिवस पर यह प्रण करें कि कभी किसी का मोहरा नहीं बनेंगे बल्कि उनकी तरह अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाकर सब पर अपनी मुहर लगाएँगे। अरे, यह गुडलक प्लांट किसने बाहर रख दिया!