फ्लैट, रो-हाउसेस को करें सर्विस टैक्स से मुक्त
मनीष उपाध्याय
सर्विस टैक्स की विसंगतियां सभी को आवास पहुंचाने के सरकार के लक्ष्य में बाधक बन रही हैं। एक प्रावधान के अनुसार किसी आवासीय कॉम्प्लेक्स जिसमें 12 से अधिक फ्लैट हों या 12 से अधिक रो-हाउसेस हों उसे भी सर्विस टैक्स के दायरे में रखकर घर के सपने को महंगा बना दिया गया है। पूरे देश के कुल टैक्स कलेक्शन में अतिमहत्वपूर्ण स्थान बना चुके इस टैक्स ने 1994 से ही करदाता और जनता के लिए प्रतिवर्ष कुछ नई दिक्कतें, मुश्किलें, पेचीदगियां, नई-नई सेवाएं कर के दायरे में लाकर परेशानियां पैदा की हैं। सरकार भी नोटिफिकेशंस, सर्क्युलर आदि के माध्यम से इन्हें कभी सरलीकृत तो कभी स्पष्ट करने की अधूरी कोशिशें करती रही है। * सर्वप्रथम 'सर्विस' शब्द को परिभाषित किया जाए। इसमें से मैन्युफेक्चरिंग एवं ट्रेडिंग को बिलकुल ही अलग रखा जाए।* किसी आवासीय कॉम्प्लेक्स में बने 12 से ज्यादा फ्लैट या रो-हाउसेस-बंगलो के निर्माण पर सर्विस टैक्स लगाना ही है तो एक करोड़ रुपए के ऊपर मूल्य वाले फ्लैट/ रो-हाउसेस या बंगलो पर ही लगाएं। रेट चाहें तो 3% कर दें। कलेक्शन उतना ही आएगा। अभी 12 फ्लैट वाले कॉम्प्लेक्स में घर खरीदने पर सर्विस टैक्स लगता है। * फ्लैट एवं मकान के कंस्ट्रक्शन के केस में यदि किसी एप्रूव्ड टाउनशिप/ कॉलोनी में कोई व्यक्ति सिर्फ एक ही आवासीय यूनिट अपने व्यक्तिगत उपयोग के लिए बिल्डर्स से सीधे अनुबंध करके बनवाता है तो उसे भी "व्यक्तिगत उपयोग की श्रेणी" वाली करमुक्तता मिलनी चाहिए। * छोटे करदाताओं एवं शून्य रिटर्न फाइल करने वालों को ऑनलाइन ही फाइल करने की बाध्यता से मुक्त किया जाए। * छोटों अर्थात स्माल सर्विस प्रोवाइडर की कर मुक्ति की मूल्य सीमा को 10 लाख से बढ़ाकर 20 लाख करना चाहिए। (रुपए की वैल्यू, क्रयशक्ति कम हो गई है) (एजेंसी)