जन्नत : प्यार और पैसे के चक्रव्यूह में फँसा अर्जुन
निर्माता : मुकेश भट्ट निर्देशक : कुणाल देशमुख संगीत : प्रीतम, कामरान अहमद कलाकार : इमरान हाशमी, सोनल चौहान, जावेद शेख, समीर कोचर, विशाल मल्होत्रा ए-सर्टिफिकेट * 15 रील रेटिंग : 2/5 ‘जन्नत’ प्रेम कथा पर आधारित फिल्म है और इसका क्रिकेट से कोई खास लेना-देना नहीं है। प्रेमियों को एक-दूसरे का होने में कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है। कभी माँ-बाप खिलाफ रहते हैं, कभी धर्म और जाति आड़े आ जाते हैं, कभी अमीरी-गरीबी की वजह से उनकी राह मुश्किल हो जाती है। ‘जन्नत’ में उनकी राह में क्रिकेट है, क्योंकि नायक एक बुकी होने के साथ-साथ मैच फिक्सिंग भी करता है। नायिका को यह पसंद नहीं है। वह चाहती है कि फिल्म का नायक अर्जुन (इमरान हाशमी) इस गैरकानूनी काम को छोड़कर ईमानदारी से पैसा कमाए। बचपन में अर्जुन के पिता उसे उस रास्ते से नहीं ले जाते थे, जिसमें खिलौनों की दुकान थी। खिलौनों को देखकर अर्जुन मचल उठता था और उसके पिता की जेब उन्हें इस बात की इजाजत नहीं देती थी कि वे खिलौना खरीदकर उसे दे सकें। उसके पिता एक ईमानदार व्यक्ति हैं और ईमानदारी में लाभ का प्रतिशत बेहद कम होता है। अर्जुन की सोच अपने पिता के विपरीत है। वह खूब पैसा कमाना चाहता है। उसके लिए कोई रास्ता गलत नहीं है। तीन पत्ती खेलकर पैसा कमाने वाला अर्जुन का दिल ज़ोया (सोनल चौहान) पर आ जाता है। ज़ोया को एक महँगी अँगूठी पसंद आ जाती है तो वह उसके लिए दुकान का काँच फोड़कर अँगूठी हासिल करने की कोशिश करता है। ज़ोया को कार में जाना पसंद है। अर्जुन उसके लिए क्रिकेट मैचों पर दाँव लगाकर पैसा कमाता है और कार खरीद लेता है।
शायद ज़ोया को पैसों से प्यार था, क्योंकि कार आते ही वह अर्जुन की बगल की सीट में बैठ जाती है। बिना यह जाने की वह पैसा कहाँ से ला रहा है? वह क्या करता है? इसी ज़ोया के सामने जब अर्जुन का भेद खुलता है कि वह मैच फिक्सिंग करता है तो वह ईमानदारी की बात करने लगती है। उसे बेईमानी से कमाए गए धन का ऐशो आराम नहीं बल्कि ईमानदारी से कमाई गई दो रोटी चाहिए। वह मैच फिक्सिंग से कमाए गए धन को गलत मानती है, लेकिन खुद क्लब में डांस कर जिस्म की नुमाइश करती है। क्या उसका रास्ता सही है? क्या वह कोई प्रतिष्ठित काम नहीं कर सकती थी? लेखक विशेष भट्ट ज़ोया के चरित्र को ठीक तरह से नहीं लिख पाए। जो लड़की अर्जुन को सुधारना चाहती है क्या वह सही राह पर है। अर्जुन के चरित्र को हम दीवार के अमिताभ बच्चन का विस्तार मान सकते हैं। जो 'मेरे पास बंगला है, गाड़ी है' वाली थ्योरी पर चलता है। पैसा ही उसके लिए सब कुछ है। वह चादर के मुताबिक पैर नहीं फैलाना चाहता, बल्कि चादर को पैर के मुताबिक बनाना चाहता है। मैच फिक्सिंग से फिल्म का कोई लेना-देना नहीं है, क्योंकि मामले की तह में जाने का प्रयास ही नहीं किया गया। क्रिकेट को इस फिल्म से हटा दिया जाए तो यह एक आम कहानी नजर आती है। अर्जुन इतनी आसानी से मैच फिक्स करता है कि हैरत होती है। फिल्म में एक पुलिस ऑफिसर भी है जो बीच-बीच में आकर अर्जुन को लेक्चर देता रहता है। कुणाल देशमुख का निर्देशन अच्छा है। उन्होंने पटकथा से ऊपर उठकर काम किया है और कहानी को परदे पर अच्छी तरह प्रस्तुत किया है। फिल्म का क्लायमैक्स उम्दा है और अर्जुन दर्शकों की हमदर्दी बटोर लेता है।
इमरान हाशमी बेहद सीमित प्रतिभा के अभिनेता हैं। हर दृश्य में उनके चेहरे पर एक जैसे भाव रहते हैं। नई नायिका सोनल चौहान का लुक और अभिनय औसत है। समीर कोचर, अभिमन्यु सिंह, जावेद शेख, विशाल मल्होत्रा और विपिन शर्मा अपनी उपस्थिति दर्ज करवाते हैं। फिल्म का संगीत धीरे-धीरे लोकप्रिय हो रहा है। ‘जन्नत जहाँ’ और ‘जरा-सा’ पहली बार सुनकर ही अच्छे लगते हैं। कुल मिलाकर ‘जन्नत’ एक औसत फिल्म है।