पहियों पर सवार गीत
एक कार के विज्ञापन में रणबीर कपूर को 'चला जाता हूँ किसी की धुन में...' गाते हुए देखना उस दौर की याद दिला देता है जब अनेक फिल्मों में हीरो या हीरोइन कार में गीत गाते चलते थे। कार नहीं तो मोटरसाइकल या फिर साइकल ही सही...। हिन्दी फिल्मों के स्वर्णिम दौर के अनेक यादगार गाने वाहन पर सवार हीरो/हीरोइन पर फिल्माए गए हैं। आज के दौर में इस तरह के गीतों का अभाव महसूस होता है।
नब्बे के दशक के बाद से बॉलीवुड में गीतों के फिल्मांकन के तौर-तरीके में जो बदलाव आया, उसके बाद से ऐसे गीतों की गुंजाइश कम हो गई। या फिर शायद इसका एक कारण यह भी है कि उस जमाने में कार तो कार, बाइक भी चुनिंदा घरों में ही पाई जाती थी। ऐसे में पर्दे पर किसी को कार या बाइक चलाते हुए गाना गाते दिखाना सिनेमाई फंतासी जगत को गढ़ने में योगदान करता था। आज जब छोटे शहरों और कस्बों में मध्यमवर्गीय घरों के बाहर भी दोपहिया और चारपहिया वाहन खड़े होना आम बात हो गई है, तब रुपहले पर्दे पर ऐसे 'वाहन गीत' उस तरह आकर्षण का केंद्र नहीं बन सकते जैसे पहले हुआ करते थे।सड़कों पर सरपट भागते वाहन पर फिल्माए गए गीत अक्सर जिंदगी को लेकर फलसफे सुनाया करते थे। याद कीजिए नलिनी जयवंत के साथ कार में सवार देव आनंद को 'जीवन के सफर में राही...' (मुनीमजी) गाते हुए। वही देव आनंद बरसों बाद कार दौड़ाते हुए ही जाहीदा को चूड़ियों का सेट भेंट करते हुए फरमाते हैं: 'चूड़ी नहीं ये मेरा दिल है...' (गैम्बलर)। 'मेरे जीवन साथी' में राजेश खन्ना अपनी भावी जीवन संगिनी के ख्यालों में डूबे 'चला जाता हूँ...' गाते चलते हैं, तो 'कश्मीर की कली' में शम्मी कपूर 'किसी न किसी से कभी न कभी...' गाते हुए अपनी नियति को स्वीकार करते हैं कि दिल तो उन्होंने लगाना ही पड़ेगा। मुंबई की बारिश में भीगी सड़कों पर दौड़ती गाड़ी में गाया गया 'तुम जो मिल गए हो...' (हँसते जख्म) जबरदस्त रोमांटिक माहौल रचता है। वहीं 'बाबू समझो इशारे...' (चलती का नाम गाड़ी) गाते हुए अपनी विंटेज कार में शान की सवारी करते गांगुली बंधु कॉमेडी की रचना करते हैं। '
ब्रह्मचारी' में शम्मी कपूर बच्चों की टोली को 'चक्के में चक्का चक्के में गाड़ी..' की सवारी कराते हैं, तो 'फूल खिले हैं गुलशन गुलशन' में ऋषि कपूर अपनी मित्र मंडली के साथ 'मन्नूभाई मोटर चली...' गाते हुए चौपाटी पर भेलपूरी खाने निकलते हैं।जीप में भले ही कार जैसा ग्लैमर नहीं लेकिन फिल्मी गानों में उसने भी स्थान पाया है। कश्मीर की मनोरम सड़क पर खुली जीप में सवार बिस्वजीत ही तो 'पुकारता चला हूँ मैं...' (मेरे सनम) गाकर रोमांटिक माहौल रचते हैं। जीप की ही सवारी करते शशि कपूर नीतू सिंह से पूछते हैं, 'कह दूँ तुम्हें या चुप रहूँ...' (दीवार)। फिर हम कैसे भुला दें कि खुली जीप पर सवार होकर दार्जीलिंग जाते राजेश खन्ना ने ही 'मेरे सपनों की रानी...' (आराधना) गाकर शर्मिला टैगोर सहित पूरे देश का दिल जीता था!हीरो की मर्दानगी और जाँबाजी दिखाने के लिए उसे मोटरसाइकल चलाते और साथ ही गाना गाते हुए दिखाने की भी लंबी परंपरा रही है। 'अंदाज' में राजेश खन्ना का संक्षिप्त किरदार स्थापित करने में बाइक की सवारी और 'जिंदगी इक सफर है सुहाना...' ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।