Bharat Bhushan Birth Anniversary: मेरठ के विख्यात वकील मोतीलाल अग्रवाल के घर 14 जून 1920 को जन्मे भारत भूषण का स्वभाव बचपन से ही विद्रोही था। इसी विद्रोही स्वभाव के कारण उनकी पटरी अपने आर्यसमाजी पिता के साथ नहीं बैठी। वे घर छोड़कर नानी के पास अलीगढ़ आ गए।
किताबी पढ़ाई के साथ वे संगीत की शिक्षा भी लेते रहे। ग्रेजुएट होकर आकाशवाणी के लखनऊ केन्द्र से जुड़ गए। आकाशवाणी उन्हें बांध नहीं सकी। फिल्मों में काम करने लालसा उन्हें बंबई ले आई। यहां वे मेहबूब तथा अन्य फिल्मी हस्तियों से मिले। काम नहीं मिला।
इसी बीच उनकी मुलाकात कलकत्ता से आए रामेश्वर शर्मा नामक व्यक्ति से हुई जिसने उन्हें कलकत्ता आकर 'भक्त कबीर' नामक फिल्म में काशी के राजकुमार की भूमिका हेतु प्रस्ताव दिया।
साठ रुपये माहवार पर मामला तय हुआ। भारत भूषण कलकत्ता आ गए। फिल्म में कबीर की भूमिका पण्डित ओंकारनाथ ठाकुर को दी गई। इस महान संगीतकार का कुछ मुद्दों पर निर्माता से विवाद हो गया। उन्होंने फिल्म छोड़ दी। भारत भूषण भी निराशा तथा बेकारी से तंग आकर घर लौट आए।
अचानक एक दिन उन्हें तार से कलकत्ता आने का बुलावा मिला तथा पता चला कि वे इस फिल्म में मुख्य भूमिका के लिए चुन लिए गए हैं। इस प्रकार शुरू हुई उनकी फिल्म यात्रा।
यह फिल्म सफल रही। भारत भूषण को उत्तम अभिनय के लिए सराहा गया। इसके बाद वे फिल्म 'भाईचारा' के नायक बने। यह फिल्म आर्थिक कठिनाइयों के कारण पूरी न हो सकी। विभाजन तथा साम्प्रदायिक दंगों के कारण वे बंबई आकर अपना भविष्य तलाशने लगे। यहां काफी संघर्ष के बाद उन्हें केदार शर्मा की फिल्म 'सुहागरात' (1948) में नायक की भूमिका मिली। नायिका थीं गीताबाली।
इसके बाद वे 'चकोरी' (1949) में नलिनी जयवंत के नायक बने। इस बीच उनके भाई आर. चन्द्रा ने फिल्म निर्माता के रूप में 'बेबस' (1950) का निर्माण किया। भारत भूषण के साथ पूर्णिमा को नायिका के रूप में लिया। यह फिल्म फ्लॉप हो गई। भारत भूषण ने बाद में 'ठेस', 'जन्माष्टमी', 'आंखें' आदि फिल्मों में काम किया।
निर्माता-निर्देशक विजय भट्ट ने विख्यात गायक 'बैजू बावरा' पर फिल्म निर्माण का फैसला किया। नायिका के रूप में नरगिस को प्रस्ताव दिया, मगर अन्यत्र व्यस्त रहने के कारण मीना कुमारी को नायिका बनाया गया। सन 1952 में प्रदर्शित यह फिल्म सुपरहिट रही। संगीतकार नौशाद की रचनाओं ने उसे अमर बना दिया।
बाद में 'चैतन्य महाप्रभु' तथा विमल राय की 'मां' ने भारत भूषण को टॉप स्टार के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया। 'चैतन्य महाप्रभु' में उत्कृष्ट अभिनय के लिए उन्हें फिल्म फेयर अवॉर्ड से सम्मानित किया गया।
उसके बाद भारत भूषण ने श्री विश्व भारती फिल्म्स की स्थापना की तथा 'मीनार' (1954) का निर्माण किया। यह फिल्म फ्लॉप हो गई। इसी दौरान 'मिर्जा गालिब' (1954) प्रदर्शित हुई। इसमें नायिका के रूप में सुरैया थीं। इस फिल्म को राष्ट्रपति का अवॉर्ड मिला।
निर्माता के रूप में भारत भूषण की बाद की फिल्में 'बसंत बहार' (1956) तथा 'बरसात की रात' (1960) हिट रहीं। इसक बाद उनका करियर ढलान पर आ गया। नायक के रूप में 'जहांआरा' (1964) उनकी आखिरी फिल्म रहीं।
उसके बाद भारत भूषण चरित्र अभिनेता के रूप में परदे पर आते रहे। दूरदर्शन पर प्रसारित कई धारावाहिकों में भी उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिकाएं कीं। हिंदी फिल्मों के अतिरिक्त उन्होंने गुजराती, भोजपुरी तथा पंजाबी फिल्मों में भी अभिनय किया। 27 जनवरी 1992 को इस 'कवि-शायर' अभिनेता का निधन हुआ।
प्रमुख फिल्मे:
* भक्त कबीर, भाईचारा * सुहागरात (1948) * चकोरी (1949) * बेबस (1950) * ठेस, जन्माष्टमी, आंखें, सगाई (1951) * दानापानी, फरमाइश, लड़की, पहली शादी, चैतन्य महाप्रभु (1953) * औरत तेरी यही कहानी, कवि, मिर्जा गालिब (1954) * बसंत बहार (1956) * चम्पाकली, गेट वे ऑफ इण्डिया (1957) * फागुन, सम्राट चन्द्रगुप्त, सोहनी महिवाल (1958) * कवि कालिदास, रानी रूपमती, सावन (1959) * अंगुलीमाल, बरसात की रात, घूंघट (1960) * ग्यारह हजार लड़कियां, संगीत सम्राट तानसेन (1962) * जहांआरा, चांदी की दीवार (1964) * नूरजहां (1967) * घर संसार, सिंहासन (1986)
- विट्ठल त्रिवेदी
(पुस्तक 'नायक महानायक' से साभार)