मुंबई के पनवेल स्थित सूर्या फार्म हाउस में इन दिनों "झाँसी की रानी" की शूटिंग चल रही है। मगर यह फिल्म वह नहीं जिसमें सुष्मिता हैं, इसकी नायिका तो पाकिस्तानी हीरोइन मीरा हैं। यह दुनिया ऐसी ही है। ख्वाब कोई और देखता है और इस ख्वाब की ताबीर किसी दूसरे पर पूरी होती है।
सुष्मिता सेन बरसों से मेहनत कर रही हैं कि "झाँसी की रानी" का किरदार निभाएँ। उन्होंने इसके लिए खूब खोजबीन की, फाइलें बनाईं। शायद कुछ उपन्यास भी पढ़े। अगर हिन्दी पढ़ना उनके लिए सहज हो तो उन्हें वृंदावनलाल वर्मा का उपन्यास भी जरूर पढ़ना चाहिए, जो झाँसी की रानी पर ही है। बहरहाल सुष्मिता सेन को कोई ऐसा प्रोड्यूसर नहीं मिला जो उनका ख्वाब पूरा करे। फिल्म की चर्चा अलबत्ता खूब हुई और इसी का फायदा उठाकर डायरेक्टर-प्रोड्यूसर राजेश मित्तल ने "झाँसी की रानी" शुरू कर दी और झाँसी की रानी का रोल दिया पाकिस्तानी हीरोइन मीरा को।
जैसा कि आप जानते ही हैं, मीरा की इमेज बहुत अच्छी नहीं है। महेश भट्ट की फिल्म "नजर" से वे पहली बार नजर आना शुरू हुईं। पाकिस्तानी फिल्म "खुदा के लिए" और "सलाखें" उन्होंने की, पर बात नहीं बनी। अच्छा बताइए राजेश मित्तल ने मीरा को ही झाँसी की रानी क्यों बनाया? अंदर की खबर यह है कि फिल्म बनाने वाले जानबूझकर विवाद खड़ा करना चाहते हैं, ताकि फिल्म और साथ ही साथ डायरेक्टर-प्रोड्यूसर भी चर्चित हों।
फिल्म के धंधे में चर्चित आदमी की फिल्म जल्दी बिक जाती है, अच्छी कीमत में बिक जाती है। विवादास्पद फिल्म और उसके बनाने वाले को कैसा फायदा मिलता है, यह हम "देशद्रोही" फिल्म के रूप में देख ही चुके हैं। सो मित्तल "झाँसी की रानी" के जरिये विवाद चाहते हैं।
इस बीच एक छोटी-सी गड़बड़ यह हुई कि मुंबई में पाकिस्तानी आतंकवादियों ने हमला कर दिया और जब शिवसेना, मनसे ने पाकिस्तानी कलाकारों के खिलाफ अपनी नफरतभरी मुहिम शुरू की तो मीरा को पाकिस्तान लौटना पड़ा। फिलहाल वे शॉट ओके किए जा रहे हैं, जिनमें मीरा नहीं हैं। इस फिल्म में कादर खान हैं, कबीर बेदी हैं, मिलिंद गुणाजी हैं। इस कास्ट से ही आप अंदाजा लगा सकते हैं कि फिल्म कैसी होगी। लाख रुपए का सवाल यह है कि यदि यह फिल्म बनकर तैयार हो जाएगी, तो क्या सुष्मिता सेन उसे देखेंगी? इस फिल्म के कारण सुष्मिता का सपना और दरकने वाला है।