आमिर खान में नया कुछ करने की बेताबी है, जो उन्हें और अभिनेताओं से अलग करती है। अन्य अभिनेता अपनी इमेज के अलावा कुछ और काम करना पसंद नहीं करते। करते भी हैं, तो उन्हें सफलता नहीं मिलती। मिसाल के तौर पर शाहरुख खान ने जब-जब फिल्मी पर्दे पर लड़की से मोहब्बत करने के अलावा कुछ किया है, मुँह की खाई है। वो प्रेम की तीव्रता के अभिनेता हैं। उनकी फिल्म "स्वदेश" पिट गई, क्योंकि उसमें वे प्यार नहीं, समाज सुधार करते हैं। "फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी" पिट गई, क्योंकि उसमें वो मीडिया के जरिए सुधार की बातें करते नजर आए। "रामजाने" में वो एंग्री यंग बॉय थे। याद करेंगे तो और भी बहुत-सी फिल्में याद आएँगी। शाहरुख चालीस पार करने के बाद भी इश्क के सहारे जिंदा हैं।
आमिर के पास बहुत रेंज है। वे किसान बनकर क्रिकेट खेल सकते हैं और फिल्म सफल होती है। वे कॉमेडी कर सकते हैं। "सरफरोश" में वे केवल सादा-सा एक शर्ट पहनकर पुलिस अफसर के चरित्र में घुस गए हैं। "गजनी" में वो बदला लेने वाले मानसिक रोगी सरीखे हैं। आप इन सभी रोल्स में जरा शाहरुख को रखकर देखिए, आप खुद हँसने लगेंगे। शाहरुख खान सभी फिल्मों में एक जैसे प्रेमी हैं। मगर आमिर एक जैसे रोल भी विविधता के साथ करते हैं। "रंगीला" में भी वे मुंबइया टपोरी हैं और फिल्म "गुलाम" में भी। मगर शेड इतने अलग हैं कि दोनों अलग-अलग व्यक्ति लगते हैं। "तारे जमीं पर" में वो एक संवेदनशील आर्ट टीचर हैं और टीचर के शरीर में परकाया प्रवेश वो कर गए हैं।
अब आमिर खान कृष्ण बन सकते हैं। वे चाहते हैं कि महाभारत का वे खूब अध्ययन करें और फिर कृष्ण का पात्र निभाएँ। अगर आमिर का यह इरादा पूरा हो जाता है, तो निश्चित है कि नीतीश भारद्वाज से आगे का कृष्ण हमें मिले। नीतीश भारद्वाज ने टीवी सीरियल में कृष्ण को इतनी खूबसूरती से निभाया कि कृष्ण का नाम आते ही नीतीश भारद्वाज आँखों के सामने आ जाते हैं। अगर आमिर कृष्ण बने तो वे इस महान किरदार के कई और ऐसे मनोवैज्ञानिक पहलू खोल सकते हैं, जिन्हें अभी तक मुँह नीला करके कृष्ण बनने वालों ने नहीं छुआ है। आमिर के मन में राम-कृष्ण सरीखे हिन्दू देवताओं के प्रति बहुत सम्मान है। दुआ कीजिए कि जब आमिर कृष्ण बनें, तो विरोध का धंधा करने वाले उन्हें बख्श दें। मुख्यधारा सिनेमा में आमिर अनूठे अभिनेता हैं और विविधताएँ उन्हें पसंद हैं, फिर चाहे उसमें कितना ही जोखिम क्यों न हो।