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Written By रवींद्र व्यास

याद क्यों नहीं आते मनोज कुमार?

याद क्यों नहीं आते मनोज कुमार? -
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लोग उन्हें भूल चुके थे लेकिन शाहरुख खान की हिट फिल्म ओम शांति ओम की वजह से वे फिर से सुर्खियों में आ गए थे। कारण यह था कि इस फिल्म में उनका मजाक उड़ाया गया था। यह विवाद कुछ दिनों तक चला और शाहरुख खान तथा फराह खान ने इसके लिए स्पष्टीकरण दिया था कि उनकी यह मंशा कतई नहीं थी। फिर उस विवाद पर धूल चढ़ गई और लोग भूल गए।

फालके रत्न पुरस्कार के कारण मनोज कुमार एक बार फिर सुर्खियों में हैं। मनोज कुमार उर्फ भारत कुमार। अपनी फिल्मों में उन्होंने भारतीयता की खोज की। उन्होंने यह भी बताया कि देशप्रेम और देशभक्ति क्या होती है। उन्होंने आँसूतोड़ फिल्में बनाईं और मुनाफे से ज्यादा अपना नाम कमाया जिसके कारण वे भारत कुमार कहलाए।

यह किसी भी अभिनेता के लिए कितना दुर्भाग्यपूर्ण हो सकता है कि वह अपने अभिनय के कारण नहीं बल्कि अन्य कारणों से जाना जाए। मनोज कुमार ऐसे ही अभिनेता हैं जो अपनी देशभक्तिपूर्ण फिल्मों के कारण जाने जाते हैं, अपने अभिनय के कारण नहीं।

दिलीप कुमार ट्रेजिडी किंग इसलिए कहलाए कि उन्होंने अपनी फिल्मों में एक उदास, दुःखी और हमेशा असफल, अवसाद से भरे प्रेमी की भूमिकाएँ की। एक बार हिंदी के ख्यात कवि विष्णु खरे ने उन्हें सन्नाटा बुनने वाला अभिनेता कहा था। यानी वे अपनी देहभाषा से, उठने-बैठने और देखने के खामोश तरीके से, अपने फेशियल एक्सप्रेशन से किसी खास मनःस्थिति को इतने भावपूर्ण ढंग से अभिव्यक्त करते थे कि संवाद की जरूरत नहीं थी। वे परदे पर अपनी खामोशी से ऐसा अभिनय करते थे कि सन्नाटा पसर जाता था जिसमें दर्शक एक प्रेमी के दुःख की तमाम आवाजें सुन लिया करते थे। अपने अभिनय कौशल और कल्पनाशीलता से, अपनी खास संवाद अदायगी से, अपनी आवाज के बेहतर इस्तेमाल से दिलीप कुमार से यह संभव कर दिखाया था।

लेकिन मनोज कुमार जाने जाते हैं अपनी देशभक्तिपूर्ण फिल्मों की वजह से। आप दिलीप कुमार का नाम लेंगे तो इसके साथ ही आपके जेहन में उनकी अभिनीत फिल्में और भूमिकाएँ एकाएक याद आ जाएँगी। इसी तरह से राज कपूर को भी याद किया जा सकता है। राज कपूर अपनी फिल्मों की कथावस्तु के कारण ही नहीं, अपनी फिल्मों के गीत-संगीत के कारण ही नहीं, बल्कि अपने एक निर्दोष, भोले और दिल को छू जाने वाली सहज आत्मीयता और मानवीयता के कारण याद आ जाते हैं। इसका सबसे बड़ा कारण उनका अभिनय ही है। लेकिन यही बात मनोज कुमार के बारे में नहीं की जा सकती।

मनोज कुमार का नाम लेंगे तो उनकी फिल्में याद आएँगी लेकिन उनके अभिनय के कारण नहीं, इसके कारण दूसरे होंगे। यानी मनोज कुमार अपने अभिनय के कारण नहीं बल्कि अपनी फिल्मों की कथावस्तु के कारण याद आते हैं। शहीद से लेकर उपकार तक, पूरब-पश्चिम से लेकर क्रांति तक।

फिर जब मैं मनोज कुमार को याद करता हूँ तो मुझे उनसे ज्यादा उनकी फिल्मों के दूसरे चरित्र ज्यादा याद आते हैं जो उनसे ज्यादा सशक्त दिखाई देते हैं। उनकी सबसे ज्यादा लोकप्रिय फिल्म उपकार का उदाहरण लीजिए। मैं जब भी उपकार को याद करता हूँ मुझे मनोज कुमार नहीं प्राण ज्यादा याद आते हैं। आप भी तुरंत याद कर सकते हैं। वह ईमानदार, भावुक, साहसी और अपंग चरित्र। यही अपंग चरित्र पूरी फिल्म में जेहन से अपंग लोगों को बताता है कि मानवीयता क्या होती है, मूल्य क्या होते हैं और रिश्तों का अर्थ क्या होता है?

इसी तरह से शोर में आपको मनोज कुमार से ज्यादा जया भादुड़ी का चरित्र याद आएगा। संन्यासी को याद करेंगे तो हेमा मालिनी या प्रेमनाथ याद आएँगे। पूरब-पश्चिम को याद करेंगे तो सायरा बानो याद आएँगी। रोटी कपड़ा मकान को याद करेंगे तो जीनत अमान याद आएँगी और क्रांति को याद करेंगे तो दिलीप कुमार याद आएँगे। मनोज कुमार शायद याद न आएँ।

मनोज कुमार याद क्यों नहीं आते, इसके कुछ और भी कारण हैं। जैसे उनकी फिल्मों का गीत-संगीत। आप उपकार की याद करिये तो मुझे मन्ना डे का वह कालजयी गाना याद आता है- कसमें वादे प्यार वफा सब, बातें हैं बातों का क्या... कितना ताकतवर बोल हैं, और कैसी कशिशभरी आवाज और क्या विरल धुन। और इसी फिल्म का वह गीत जो आजादी की हर वर्षगाँठ पर बजता है-मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती, मेरे देश की धरती। आपको महेंद्र कपूर याद आएँगे जो यह गाना गाकर हमेशा के लिए अमर हो गए।

फिर पूरब-पश्चिम का वह प्रेम गीत- कोई जब तुम्हारा हृदय तोड़ दे, तड़पता हुआ जब कोई छोड़ दे, तब तुम मेरे पास आना प्रिये, मेरा दर खुला है खुला ही रहेगा तुम्हारे लिए। आवाज है मुकेश की। एक दर्दीला गीत। जेहन में हमेशा ठहरा हुआ। और रोटी कपड़ा और मकान के गीत भी याद किए जा सकते हैं। हाय-हाय ये मजबूरी, ये मौसम और ये दूरी..., तेरी दो टकियों की नौकरी में मेरा लाखों का सावन जाए। और वह युगल गीत भी जिसके बोल हैं-मैं ना भूलूँगा, मैं ना भूलूँगी। इसके बाद शोर फिल्म को याद करिये। आपको याद आएँगे उसके बेहतरीन गीत। संतोष आनंद के लिखे गीत-एक प्यार का नगमा है, मौजों की रवानी है, जिंदगी और कुछ भी नहीं, तेरी-मेरी कहानी है। मनोजकुमार की फिल्मों के हिट गीतों की लंबी फेहरिस्त बनाई जा सकती है लेकिन उनकी लाजवाब भूमिकाओं की नहीं।

शायद इसीलिए मुझे मनोज कुमार याद नहीं आते। याद आते हैं तो सिर्फ इसलिए कि अभिनय के नाम पर वे अपना चेहरा छिपाते हैं।