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Last Modified: रविवार, 27 सितम्बर 2020 (15:20 IST)

29 साल में 23 बार बदले गए बिहार के मुख्यमंत्री, नीतीश कुमार ने दी स्थिरता

29 साल में 23 बार बदले गए बिहार के मुख्यमंत्री, नीतीश कुमार ने दी स्थिरता - Nitish Kumar chief minister and Bihar Poliitcs
पटना। राजनीतिक रूप से सजग माने जाने वाले बिहार में 60 से 90 के दशक के दौरान लोकनायक जयप्रकाश नारायण की संपूर्ण क्रांति, क्षेत्रीय दलों का उभार और वामपंथी प्रभाव बढ़ने से राजनीतिक उथल-पुथल इतनी तेज रही कि महज 29 साल में 23 बार मुख्यमंत्री बदले गए।
 
वहीं, नब्बे के दशक की शुरुआत में लालू प्रसाद यादव के मुख्यमंत्री बनने के बाद बिहार में जनता दल की सरकार बनी लेकिन इस दौरान चारा घोटाला और नरसंहार की घटनाओं के कारण राजनीतिक उथल-पुथल भी देखने को मिला।

वर्ष 2005 में नीतीश कुमार के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) की सरकार के बनने तक 15 साल में छह बार मुख्यमंत्री बदले गए। हालांकि वर्ष 2005 में नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री बनने के बाद से इस पद को स्थिरता मिली और आजादी के बाद बिहार में लंबे समय के कार्यकाल वाले वह पहले मुख्यमंत्री हो गए हैं।

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह 31 जनवरी 1961 तक अपने पद पर रहे। वर्ष 1961 से 1990 तक के 29 वर्ष में बिहार में 23 बार मुख्यमंत्री बदले गए। बिहार केसरी श्रीकृष्ण सिंह के निधन के बाद कांग्रेस के ही दीपनारायण सिंह को राज्य का दूसरा मुख्यमंत्री बनने का गौरव प्राप्त हुआ। उन्होंने 01 फरवरी 1961 को पदभार ग्रहण किया लेकिन 17 दिन के बाद ही उन्हें यह पद छोड़ना पड़ा और उनका स्थान बिनोदानंद झा ने लिया।
 
‘कामराज योजना’ आने के बाद झा अलग-अलग राज्य के उन आठ मुख्यमंत्रियों में से एक थे, जिन्हें कांग्रेस संगठन को मजबूत करने की जिम्मेवारी सौंपी गई। इस कारण से वह 02 अक्टूबर 1963 तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे।
 
इसके बाद मुख्यमंत्री पद की दौड़ में कांग्रेस नेता वीरचंद पटेल और झा के मंत्रिमंडल में उप मुख्यमंत्री रहे कृष्ण बल्लभ सहाय (के. बी. सहाय) शामिल हो गए। झा की सरकार में सेकेंड इन कमांड माने जाने वाले तत्कालीन शिक्षा मंत्री सत्येंद्र नारायण सिन्हा ने सहाय को समर्थन दिया। इससे 02 अक्टूबर 1963 को सहाय बिहार के चौथे मुख्यमंत्री बने और वह 05 मार्च 1967 तक इस पद पर रहे।
 
बिहार में वर्ष 1967 में हुए चौथे विधानसभा चुनाव में कांग्रेस बहुमत नहीं पा सकी। इससे पहली बार 05 मार्च 1967 को जनक्रांति दल के महामाया प्रसाद सिन्हा के नेतृत्व में बिहार में गैर कांग्रेसी सरकार बनी। लेकिन सिन्हा का मुख्यमंत्री का कार्यकाल लगभग एक साल ही रहा।

इसके बाद कांग्रेस के समर्थन से शोषित समाज दल के नेता सतीश प्रसाद सिंह 28 जनवरी 1968 को मुख्यमंत्री बनाए गए लेकिन महज पांच दिन में ही उन्हें पद छोड़ना पड़ा। इसके बाद बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल (बीपी मंडल) को 01 फरवरी 1968 को मुख्यमंत्री की शपथ दिलाई गई लेकिन उन्होंने महज 31 दिन के बाद ही त्यागपत्र दे दिया।
 
कांग्रेस के भोला पासवान शास्त्री ने 22 मार्च 1968 को बिहार के आठवें मुख्यमत्री पद की शपथ ली और लगभग 100 दिन बाद ही उन्हें पद त्यागना पड़ा। रजानीति अस्थिरता के बीच 29 जून 1968 को बिहार में पहली बार राष्ट्रपति शासन लगाया गया, जो 26 फरवरी 1969 तक चला।
 
इस दौरान हुए विधानसभा चुनाव के बाद राज्य में हरिहर सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी लेकिन इंदिरा गांधी की कार्यशैली से नाराज लोगों की बगावत से कांग्रेस का दो भाग में कांग्रेस (ओ) और कांग्रेस (आर) में विभाजन हो गया, जिसका प्रभाव बिहार में भी पड़ा। मुख्यमंत्री हरिहर सिंह को 22 जून 1969 को त्यागपत्र देना पड़ा और कांग्रेस (ओ) में शामिल हुए भोला पासवान शास्त्री दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली।
 
इसके बाद राजनीतिक अस्थिरता इस कदर बढ़ी की 06 जुलाई 1969 को दूसरी बार राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। इसके बाद 16 फरवरी 1970 से 09 जनवरी 1972 के बीच कांग्रेस के दारोगा प्रसाद राय, सोशलिस्ट पार्टी के कर्पूरी ठाकुर और कांग्रेस के भोला पासवान शास्त्री के रूप में तीन बार मुख्यमंत्री बदले गए।
 
9 जनवरी 1972 को तीसरी बार राष्ट्रपति शासन लगा और छठी विधानसभा का चुनाव कराया गया। इसके बाद 19 मार्च 1972 से 30 अप्रैल 1977 के दौरान कांग्रेस के ही केदार पांडेय, अब्दुल गफूर और जगन्नाथ मिश्रा के रूप में मुख्यमंत्री बदले गए। (वार्ता)
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