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Written By BBC Hindi
Last Updated : शुक्रवार, 4 सितम्बर 2020 (08:59 IST)

बिहार: वेतन बढ़ा, फिर भी सरकार के फ़ैसले से नाराज़ क्यों शिक्षक

Bihar teacher | बिहार: वेतन बढ़ा, फिर भी सरकार के फ़ैसले से नाराज़ क्यों शिक्षक
सीटू तिवारी (पटना से, बीबीसी हिन्दी के लिए)
 
बिहार के 4 लाख नियोजित (अब नियुक्त) शिक्षकों के बीच आज कल 'चाइनीज़ वेतनमान' शब्द बहुत मशहूर है। इसका क्या मतलब है, मेरे इस सवाल पर बेगूसराय में नगर शिक्षक अमृता कुमारी कहती हैं, 'यानी आधा-अधूरा। ऐसा वेतनमान, जो बाहर से लुभावना लगे लेकिन अंदर से खोखला हो। जिसके टिकाऊपन पर संदेह हो, ठीक चाइनीज़ सामान की तरह।'
 
दरअसल, बिहार सरकार ने हाल ही में शिक्षकों को लेकर 3 महत्वपूर्ण फ़ैसले लिए है। पहला, सरकार ने नई सेवा शर्त को लागू कर दिया जिसके अन्य प्रावधानों के साथ साथ शिक्षकों के वेतन में 1 अप्रैल 2021 को देय मूल वेतन में 15 फ़ीसदी की बढ़ोतरी की जाएगी।
 
दूसरा, सरकार ने शिक्षकों के लिए 'नियोजित' की जगह 'नियुक्त' शब्द इस्तेमाल करने का फ़ैसला लिया गया है। और तीसरा, प्राथमिक शिक्षक नियोजन में बिहार का मूल निवासी होना अनिवार्य कर दिया है। लेकिन चुनावी वर्ष में सरकार में इन फ़ैसलों के बावजूद बिहार के नियुक्त शिक्षक नाराज़ हैं।
 
क्यों नाराज़ हैं शिक्षक?
रमेश सिंह राजकीय बुनियादी विद्यालय, दुर्गावती (कैमूर) में विज्ञान और गणित पढ़ाते हैं। बीबीसी से फ़ोन पर बात करते हुए उन्होंने कहा, 'सरकार ने पुरूष शिक्षकों का ट्रांसफर म्युचुअल बेसिस पर कर दिया है लेकिन ईपीएफ के नार्म्स को पूरी तरह लागू नहीं किया गया।'
 
'हमारी मांग थी कि हमें राज्यकर्मी का दर्ज़ा मिले और समान काम के लिए समान वेतन मिलें, लेकिन कुछ नहीं हुआ। 2015 में वेतनमान दिया और 2020 में ईपीएफ- सेवाशर्त लागू की। बताइए ऐसा किस राज्य में शिक्षकों के साथ हुआ है?'
चाइनीज़ वेतनमान देकर टरका रही
 
रमेश सिंह की ये नाराज़गी, कैमूर से तकरीबन 350 किलोमीटर बेगूसराय में भी पसरी है। अमृता अप्रैल 2013 में बेगूसराय में नगर शिक्षक बनी है। उनकी साल 2015 में मुज़फ़्फ़रपुर के बिजनेसमैन राजीव कुमार ठाकुर से शादी हुई। उनकी 4 साल की बेटी है, लेकिन अमृता, उनके पति राजीव और बेटी शिक्षकों की ट्रांसफर पॉलिसी के चलते एकसाथ नहीं रह पाए। ग़ौरतलब है कि नई सेवाशर्त में महिलाओं और विकलांगों शिक्षकों/पुस्तकालयाध्यक्ष को सेवाकाल में एक बार इंटर डिस्ट्रिक्ट ट्रांसफ़र की सुविधा सरकार ने दी है।
 
अमृता कहती हैं, 'ट्रांसफ़र की सुविधा तो दी लेकिन उसमें भी बहुत सारी शंकाएं हैं। सरकार ने ग्रेच्युटी का फ़ायदा नहीं दिया, 2 साल का शिशु अवकाश नहीं दिया गया तो फिर दिया क्या? हम भी टीईटी का कंपीटिशन पास करके आए हैं और सरकार हमें चाइनीज़ वेतनमान देकर टरका रही है?'
 
सबको एक तराजू पर तौल रही सरकार
 
संजय कुमार और सीमा कुमारी, दोनों पति पत्नी है। ये दंपत्ति मुज़फ़्फ़रपुर के सरमस्तपुर में नियुक्त शिक्षक के तौर पर कार्यरत है। संजय कुमार कहते हैं, 'पूरे कोरोना काल के दौरान हमने चावल बांटे, प्रवासी मज़दूरों के बच्चों की कांउसलिंग करके नामांकन कराया लेकिन सरकार की नई सेवाशर्त में हमें कोई बड़ा आर्थिक फ़ायदा नहीं दिया। अब एक स्कूल, एक काम- लेकिन वेतन अलग-अलग।'
 
वहीं पूर्णिया के धमदाहा प्रखंड में मध्य विद्यालय के शिक्षक आलोक आनंद कहते हैं, 'सरकार सबको एक तराजू में तौल रही है। जो लालूजी के वक्त शिक्षा मित्र आए, जो टीईटी के जरिए आए, सबको सरकार नियुक्त शिक्षक ही मान रही है जबकि टीईटी जो बिहार में 2011 में हुआ था उसमें 25 लाख परीक्षार्थियों में से 1।5 लाख ही पास हुए थे। प्राथमिक स्तर पर 100 में 1।5 परीक्षार्थी पास हुए थे और मिडिल स्तर पर 100 में 3।5 परीक्षार्थी। ऐसे में योग्यता पर सवाल नहीं उठाया जा सकता, तो फिर ऐसी सेवा शर्त क्यों है?'
 
वहीं पटना के ग्रामीण इलाके में तैनात एक हाई स्कूल शिक्षक ने नाम न छापने की शर्त पर बीबीसी से कहा कि'शिक्षकों को तो पंचायती राज की और ज़्यादा निगरानी में सरकार ने डाल दिया है, सेवाकाल में मौत हो जाने पर आश्रितों को जो 4 लाख का मुआवजा मिलता था, उसको बंद कर दिया।'
 
चुनावी लॉलीपाप
 
बिहार में छोटे बड़े तक़रीबन 20 शिक्षक संगठन हैं। इन शिक्षक संगठनों की मांग है कि शिक्षकों को राज्यकर्मी का दर्जा दिया जाए। नियमित शिक्षकों को पहले ही 'डाइंग (मरणासन्न) कैडर' माना जा चुका है और साल 2025 तक राज्य के सभी नियमित शिक्षक रिटायर हो जाएंगे। यानी उसके बाद बिहार में सरकारी शिक्षा की पूरी ज़िम्मेदारी इन्हीं नियुक्त शिक्षकों पर होगी।
 
बिहार राज्य प्राथमिक शिक्षक संघ के पटना ज़िला सचिव प्रेमचंद्र कहते हैं, 'हम प्राथमिक शिक्षक नियोजन में बिहार के मूल निवासी होने की अनिवार्यता का स्वागत करते हैं। लेकिन सरकार से पुरानी सेवा शर्त लागू करने की मांग करते हैं। सरकार ने जो किया है उससे शिक्षक बंधुआ मज़दूर ही बनेंगे और ये चुनावी लॉलीपाप के अलावा कुछ नहीं।' इस बीच कुछ संगठनों ने 'बदला लो, बदल डालो' के नारे के साथ शिक्षक दिवस के दिन काला दिवस मनाने का फ़ैसला लिया है। टीईटी, एसटीईटी उत्तीर्ण नियोजित शिक्षक संघ उनमें से एक है।
 
संघ के प्रवक्ता अश्विनी पांडेय ने बीबीसी से कहा, 'नई सेवाशर्त में सरकार ने अर्नड लीव महज 120 दिन की दी गई है जबकि ये 300 दिन की होती है। शिशु देखभाल के लिए कोई छुट्टी नहीं है, बीमा का कोई प्रावधान नहीं है। और सरकार को ईपीएफ इसलिए देना पड़ा क्योंकि 2019 में हाईकोर्ट का जजमेंट आया था। सरकार हमें अपने चुनावी एजेंडा के तहत थोड़ा थोड़ा न देकर हमारी वाजिब मांगें पूरी करें। क्योंकि सरकारी स्कूल रसातल में जाएगें तो देश बर्बाद होगा।'
 
15 साल में वेतन 5 से 25 हज़ार हुआ
 
वहीं शिक्षक कोटे से बीजेपी के विधान पार्षद नवल किशोर यादव ने बीबीसी से कहा, 'मैं ये मानता हूं कि ट्रांसफ़र को लेकर सरकार को फ़्री कर देना चाहिए। यानी एक बार सभी शिक्षकों को उनकी मनचाही जगह पोस्टिंग मिलनी चाहिए। बाकी सारे मामले मसलन ईपीएफ आदि में सुधार होता रहेगा। लेकिन ट्रांसफ़र पॉलिसी में तुरंत सुधार ज़रूरी है।'
 
वहीं उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी के मुताबिक, 'बीते 15 साल में शिक्षकों की सेवाशर्त में काफी सुधार हुआ है। वेतन 5 हज़ार से बढ़कर 25 हज़ार हो गया। जनता ने अगर फिर मौका दिया तो शिक्षकों की बाकी अपेक्षाएं भी एनडीए सरकार ही पूरा करेगी।'
 
बिहार में शिक्षकों की यात्रा
 
वरिष्ठ पत्रकार लक्ष्मीकांत सजल बिहार में शिक्षा मित्रों की बहाली से लेकर नियोजित (अब नियुक्त) शिक्षकों का सफ़र बताते हैं। वो बताते हैं कि जब सर्व शिक्षा अभियान लागू हो रहा था तो राज्य को अनुदान का मुख्य आधार शिक्षकों की संख्या थी।
 
लालू यादव जब सरकार में आए तो उन्होंने बिहार पब्लिक सर्विस कमीशन (बीपीएससी) से शिक्षकों की बहाली शुरू की और इसमें प्रशिक्षण की अनिवार्यता नहीं रखी। लेकिन पहले से ही अत्यधिक काम के बोझ से परेशान बीपीएससी, को शिक्षकों की बहाली प्रक्रिया में लंबा वक्त लग रहा था। ऐसे में शिक्षा मित्रों की बहाली शुरू की गई। जिसको बहाल करने का अधिकार पंचायतों का था।
 
तकरीबन 85 हज़ार शिक्षा मित्रों की बहाली 11 माह के लिए, 1500 रुपए के मानदेय पर किया गया। बाद में जब नीतीश सरकार आई तो इन शिक्षा मित्रों को नियोजित शिक्षक बना दिया गया। 1500 रुपए के मानदेय को बढ़ाने के साथ साथ इनका सेवा कार्यकाल 60 वर्ष तक कर दिया गया। सरकार ने पंचायत शिक्षक, प्रखंड शिक्षक, नगर शिक्षक, ज़िला शिक्षक बनाए जिसके लिए 8,500 से अधिक नियोजन इकाईयों को नियुक्ति के अधिकार दिए गए।
 
साल 2015 में शिक्षकों को नियत वेतन के बदले वेतनमान दिया गया और सेवा शर्त बेहतर बनाने के लिए एक उच्च स्तरीय कमिटि बनाई गई। लेकिन इस बीच शिक्षकों ने समान काम, समान वेतन की मांग को लेकर पटना हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया, जहां शिक्षकों के पक्ष में फ़ैसला आया। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने पटना हाई कोर्ट के फ़ैसले को निरस्त कर दिया।
 
नई सेवा शर्त पर लक्ष्मीकांत सजल कहते हैं, 'मुझे दो फ़ायदे दिख रहे हैं। पहला नए वेतनमान से एक (नियुक्त) शिक्षक को कम से कम 4 हज़ार रुपए का फ़ायदा होगा। दूसरा ये कि, पुराने वेतनमान वाले शिक्षक (नियमित शिक्षक) 2025 तक रिटायर हो जाएंगे।' 'ऐसे में प्रमोशन के ऑप्शन्स होंगे। इसलिए इस पूरे मुद्दे पर राजनीति से बचना चाहिए। शिक्षक राजनीति को गाइड करें न कि शिक्षक खुद राजनीति से गाइड हों।' (फोटो सौजन्य : बीबीसी)
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