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Written By BBC Hindi
Last Modified: गुरुवार, 20 फ़रवरी 2020 (20:19 IST)

सुंदरकांड को केजरीवाल की राजनीति से जोड़ना कितना सही?

सुंदरकांड को केजरीवाल की राजनीति से जोड़ना कितना सही? - Sunderkand and Kejriwal Politics
ब्रजेश मिश्र, बीबीसी संवाददाता, नई दिल्ली
''अगर महीने में एक दिन सुंदरकांड का पाठ होगा तो क्या उससे दिल्ली विधानसभा के काम रुक जाएंगे, सड़क और सीवर का काम रुक जाएगा? ये आपकी ग़लतफ़हमी है।'' ये शब्द हैं दिल्ली में आम आदमी पार्टी (आप) के विधायक सौरभ भारद्वाज के।
 
आप विधायक ने 18 फ़रवरी को एक ट्वीट किया जिसे लेकर लोग सवाल उठाने लगे कि क्या ये उनकी पार्टी का एजेंडा है।
 
ग्रेटर कैलाश से विधायक सौरभ भारद्वाज ने लिखा, ''हर महीने के पहले मंगलवार को सुन्दर कांड का पाठ अलग-अलग इलाक़ों में किया जाएगा। निमंत्रण- सुन्दर काण्ड, शाम 4:30 बजे, 18 फ़रवरी, मंगलवार। प्राचीन शिव मंदिर, चिराग़ दिल्ली (निकट चिराग़ दिल्ली मेट्रो स्टेशन गेट न.1)।'
 
दिल्ली में आप ने काम के नाम पर वोट मांगे। अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी का पूरा चुनाव प्रचार दिल्ली में शिक्षा, स्वास्थ्य और विकास के दूसरे मुद्दों पर ही टिका रहा। हालांकि विपक्षी पार्टी बीजेपी ने राष्ट्रवाद से लेकर राम मंदिर तक के मुद्दे को भुनाने की कोशिश की।
 
मतदान से पहले अरविंद केजरीवाल का हनुमान मंदिर जाकर दर्शन करना भी चर्चा में रहा और बीजेपी नेताओं ने केजरीवाल पर सवाल भी उठाए। हालांकि विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की शानदार जीत हुई और एक बार फिर 62 सीटों के साथ पार्टी सत्ता में है।
 
चुनावी जीत में भी गुणगान
दिल्ली विधानसभा चुनाव नतीजों के दिन जब आप को शानदार जीत मिली तो सौरभ भारद्वाज ने एक ट्वीट करके हनुमान का गुणगान किया। उन्होंने लिखा, ''हनुमान का बज गया डंका। पाखंडियों की जल गई लंका। जय बजरंग बली!!!''
 
11 फ़रवरी को ही एक अन्य ट्वीट में उन्होंने इस बात का ऐलान कर दिया था कि हर मंगलवार वो हनुमान की भक्ति में ऐसा कोई आयोजन करने वाले हैं। उन्होंने लिखा था, ''आज के बाद भाजपा मंगलवार को कभी वोट की गिनती नहीं कराएगी। आज से मेरी ग्रेटर कैलाश विधानसभा में हर मंगलवार, भाजपा भक्तों को हनुमान जी की याद दिलाई जाएगी। जय बजरंग बली।''
 
इस आयोजन को लेकर सौरभ भारद्वाज ने बीबीसी से बातचीत में कहा कि पार्टी के कुछ अन्य विधायक भी इस आयोजन को अपने विधानसभा क्षेत्र में करने के इच्छुक हैं और आने वाले वक़्त में ऐसे और भी आयोजन देखे जा सकते हैं। हालांकि वो इस बात से इनकार करते हैं कि पार्टी का इससे कोई कोई लेना-देना है।
 
उन्होंने कहा, ''ये मेरा आयोजन है और हम इसे हर महीने के पहले मंगलवार को करेंगे। कुछ विधायकों से भी बात हुई है वो भी तैयार हैं। शायद वो भी अपने विधानसभा क्षेत्र में ये करेंगे। लेकिन पार्टी की ओर से इसके लिए कोई दिशा निर्देश नहीं दिए गए हैं, देना भी नहीं चाहिए और देंगे भी नहीं। धर्म अपना निजी विश्वास है। बतौर विधायक मैं यह कर रहा हूं।''
 
सौरभ भारद्वाज कहते हैं, ''हम छठ पूजा का आयोजन हर साल करते हैं, दुर्गा पूजा का आयोजन हर साल कराते हैं। उत्तराखंड के लोगों के लिए उत्तरायणी का आयोजन कराते हैं, दशहरे का आयोजन कराते हैं, इफ़्तार पार्टी भी कराते हैं। क्योंकि रमज़ान में इफ़्तार ही करते हैं। ईद तो वो अपने घरों में ही मनाते हैं और हम उनके घर जाते हैं। आप कहेंगे कि क्रिसमस ही क्यों तो ईसाइयों में तो यही होता है। हम क्रिसमस पर सैंटा बनकर गिफ़्ट भी बांटते हैं।''
 
बीजेपी से निपटने का तरीक़ा?
आम आदमी पार्टी धर्मनिरपेक्ष एजेंडा के साथ राजनीति में उतरी। क्या अब बीजेपी को टक्कर देने की धुन में पार्टी हिन्दू वोट बैंक को अपनी तरफ़ करना चाहती है और इसी वजह से पार्टी के नेता अब धार्मिक आयोजनों में रुचि दिखा रहे हैं।
 
सौरभ भारद्वाज कहते हैं, ''धर्मनिरपेक्ष होने का मतलब नास्तिक होना नहीं होता है। कुछ लोगों ने इसको अलग तरह से दिखाना शुरू कर दिया है। धर्मनिरपेक्ष होने का मतलब किसी धर्म से नफ़रत करना नहीं है। मैं धर्मनिरपेक्ष व्यक्ति हूं और मुझे अपनी धार्मिक भावनाओं को अपनाने का पूरा अधिकार है। मैं किसी की धार्मिक भावनाओं से न तो नफ़रत करता हूं और ना किसी की धार्मिक भावनाएं आहत करता हूं।''
 
लेकिन हर महीने होने वाले इस आयोजन से क्या आम आदमी पार्टी एक ट्रेंड सेट करने की कोशिश में है कि वो हिंदुओं की भावनाओं का ख़याल रख रही है और हिंदुत्व का झंडा लेकर राजनीति कर रही बीजेपी ही इकलौती पार्टी नहीं है। जिस तरह बीजेपी ने लगातार राम और राम मंदिर का मुद्दा उठाया और उसके नाम पर वोट लेती रही, क्या अब आम आदमी पार्टी हनुमान के सहारे अपनी राजनीति आगे बढ़ाएगी?
 
इस सवाल पर सौरभ भारद्वाज कहते हैं, ''हम किसी से ज़बरदस्ती नहीं कर रहे कि आप आइए और सुंदरकांड में बैठिए, अगर नहीं बैठे तो आपकी पार्टी से सदस्यता ख़त्म हो जाएगी, आपका बिजली बिल महंगा हो जाएगा, पानी देना बंद कर देंगे, ऐसा तो कुछ नहीं है। ये वॉलंटियर करने वाली चीज़ है हम करें ना करें। इसे करने से किसी का नुक़सान नहीं है। नुक़सान नहीं है तो हम करते रहेंगे। जैसे लोग पहले तीर्थयात्रा पर जाते थे और अब सरकार ने भेजना शुरू कर दिया तो इसमें तो कोई परेशानी नहीं है।''
 
क्या AAP की राजनीति का तरीक़ा बदल रहा है?
सौरभ भारद्वाज कहते हैं, ''लोगों को ग़लतफ़हमी है कि हिंदुत्व की राह बीजेपी की राह है। जब-जब हम हिंदू धर्म को बीजेपी के हवाले कर देते हैं हम वेबवजह बीजेपी को हिंदुत्व का मसीहा बना देते हैं। हम हनुमान के नाम पर वोट नहीं मांग रहे हैं। इसमें फ़र्क़ है।''
 
समाचार एजेंसी एएनआई को दिए एक इंटरव्यू में सौरभ भारद्वाज ने यह भी बताया था कि उन्हें सुंदरकांड के पाठ के लिए पहले से बुकिंग मिल चुकी हैं और इसके लिए स्पॉन्सर भी मिल गए हैं। कई रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन (RWA) इसमें दिलचस्पी दिखा रहे हैं।
 
आम आदमी पार्टी के विधायक की यह नई पहल पार्टी की राजनीति और उसके एजेंडा को किस तरह प्रभावित करेगी, इस सवाल पर वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी कहती हैं कि इस मामले में एक बेहद बारीक सी लाइन है अगर ऐसे आयोजनों में उसे पार किया जाता है जिससे दूसरे धर्म के लोगों की भावनाएं आहत हो सकती हैं और उसका असर पार्टी की छवि पर भी पड़ सकता है।
 
बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा, ''एक कहावत है लोहा लोहे को काटता है, तो आम आदमी पार्टी ने भी वही चीज़ें की हैं जो नरेंद्र मोदी करते थे। मोदी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में केदारनाथ जाकर दर्शन किया था और उसकी तस्वीरें भी सामने आई थीं, केजरीवाल ने भी दिल्ली चुनाव में हनुमान मंदिर जाकर पूजा की थी ताकि उनके लिए शुभ हो आगे चलकर। केजरीवाल ने बड़ी खूबी से ये काम किया और हनुमान को अपनी पार्टी के प्रतीक के तौर पर पेश कर दिया। इसीलिए जब चुनाव के दौरान बीजेपी समर्थक जयश्रीराम के नारे लगा रहे थे तो आप समर्थक जय बजरंगबली के नारे लगा रहे। अगर सौरभ भारद्वाज हर महीने में एक बार ये करना चाहते हैं तो करें लेकिन अगर इसका ढिंढोरा पीटते हैं तो कहीं ना कहीं इसमें राजनीति की बू आने लगती है।''
 
हनुमान के सहारे बढ़ेगी राजनीति?
बीजेपी ने राम का मुद्दा उठाया और अब आप के नेता हनुमान को लेकर आगे बढ़ रहे हैं, क्या आम आदमी पार्टी उसी की राह में आगे बढ़ रही है?
 
नीरजा चौधरी मानती हैं कि बीजेपी की तरह नहीं है। उनका एजेंडा भेदभाव वाला नहीं है और अब तक आम आदमी पार्टी ने किसी भी तरह से हिंदू-मुसलमान को बांटने की कोशिश नहीं की।
 
वो कहती हैं, ''आम आदमी पार्टी ये दिखाना चाहती है कि वो हिंदू विरोधी नहीं है, इसलिए ऐसी चीज़ें सामने आ रही हैं। वो बांटने वाली राजनीति नहीं कर रही। वो दिखाना चाहती है कि हम सब के लिए हैं। चुनाव प्रचार में उन्होंने हिंदू प्रतीकों का इस्तेमाल किया है। यह ज़रूर है कि वो पन्ना बीजेपी की किताब से ले रहे हैं लेकिन उसका मकसद नफ़रत वाला नहीं है। लेकिन एक राजनीतिक प्रतिनिधि होते हुए आप चुनाव प्रचार में इसका ढिंढोरा पीट सकते हैं लेकिन आम तौर पर यही करेंगे तो उससे नुकसान हो सकता है।''
 
नीरजा चौधरी यह भी मानती हैं कि आम आदमी पार्टी के युवा नेता जो उभरकर सामने आए हैं वो सांप्रदायिक नहीं हैं। उनकी कोशिश रही है कि चुनाव के दौरान भी वो संयमित रहें और अपने काम के एजेंडा पर ही अड़े रहें और बीजेपी उन्हें हिंदू-मुसलमान की राजनीति में घेरने ना पाए।
 
वो कहती हैं, ''चुने हुए प्रतिनिधि होने के नाते अगर आप ऐसा करते हैं तो भले ही आप हिंदू हैं लेकिन आपके क्षेत्र में दूसरे लोग भी हैं, उनकी भावनाओं का ख़्याल रखें और क्या आपकी इस पहल से उन पर कुछ असर पड़ रहा है। यह एक बारीक सी लाइन है जो आगे चलकर उनकी राजनीति पर असर डाल सकती है। उन्हें इसमें संतुलन बनाकर चलना होगा।''
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