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Written By BBC Hindi
Last Modified: मंगलवार, 15 नवंबर 2022 (07:56 IST)

जी20 में भारतः विश्व के महारथियों के बीच क्या हासिल कर पाएंगे मोदी?

जी20 में भारतः विश्व के महारथियों के बीच क्या हासिल कर पाएंगे मोदी? - PM Modi in G20 summit
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस साल इंडोनेशिया में हो रहे जी20 शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए बाली पहुंच चुके हैं। प्रधानमंत्री बाली में क़रीब 45 घंटे रहेंगे और भारत के विदेश मंत्रालय के मुताबिक इस दौरान उनकी लगभग 20 मुलाक़ातें तय हैं।
 
बाली में भारतीय प्रधानमंत्री सिर्फ़ अंतरराष्ट्रीय नेताओं से ही नहीं बल्कि स्थानीय भारतीय मूल के लोगों से भी मिल रहे हैं। सोमवार शाम नरेंद्र मोदी ने बाली में भारतीय समुदाय के लोगों से मुलाक़ात भी की है। 
 
बाली में चल रहा शिखर सम्मेलन भारत के लिए इसलिए भी ख़ास मायने रखता है क्योंकि अगले साल के सम्मेलन का मेज़बान भारत ही है।
 
मंगलवार को इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विडोडो औपचारिक रूप से भारत से जी20 की अध्यक्षता संभालने का आग्रह करेंगे।
 
अगले महीने से भारत जी20 का अध्यक्ष होगा और अगले साल होने वाले विश्व नेताओं के इस सम्मेलन का एजेंडा भारत ही तय करेगा।
 
जी20 दुनिया की बीस सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं का समूह है जो वैश्विक अर्थव्यवस्था की दिशा और दशा तय करता है। 
 
जी20 शिखर सम्मेलन के दौरान वैश्विक अर्थव्यवस्था के एजेंडे तय किए जाते हैं। इसमें दुनिया की शीर्ष 19 अर्थव्यवस्था वाले देश और यूरोपीय संघ शामिल है। 
 
दुनियाभर का 85 प्रतिशत कारोबार जी20 सदस्य देशों में ही होता है। 1999 के एशियाई वित्तीय संकट के बाद बने इस संगठन का असली असर साल 2008 के बाद से दिखा जब आर्थिक मंदी के बाद सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्षों का सालाना सम्मेलन शुरू हुआ। 
 
शुरुआती सालों में जी20 सम्मेलन से अंतरराष्ट्रीय कारोबार और आर्थिक लक्ष्यों को लेकर देशों के बीच समन्वय स्थापित हुआ और इसका असर भी दिखा। 
 
आगे चलकर जैसे-जैसे विश्व के मुद्दे बदले, जी20 का एजेंडा भी बदलता गया और जलवायु परिवर्तन और ‘अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद’ जैसे मुद्दों पर भी चर्चा होने लगी। लेकिन जी20 का एजेंडा व्यापक हुआ तो उसका असर भी कम। 
 
अब इसकी अध्यक्षता भारत के पास आ रही है, ऐसे में भारत के पास जी20 को फिर से उसके आर्थिक लक्ष्यों की तरफ ले जाने का मौका होगा।
 
भारत को इस 17वीं जी-20 सम्मेलन से क्या उम्मीद करनी चाहिए और 18वीं जी-20 सम्मेलन की अध्यक्षता करने का ये मौका कितना महत्वपूर्ण है?
 
इस सवाल के जबाव में जेएनयू के प्रोफेसर स्वर्ण सिंह कहते हैं, "सबसे पहले तो जी 20 शिखर सम्मेलन की ये परंपरा रही है कि पिछले साल के अध्यक्ष औऱ आने वाले साल के अध्यक्ष देश जो हैं वो एक दूसरे के साथ निरंतर तालमेल बनाए रखते हैं।"
 
"पिछले एक साल से भारत लगातार इंडोनेशिया से जुड़ा हुआ है कि जी-20 को किस तरफ़ ले जाना है और अलग-अलग मुद्दों को लेकर कैसे इस पर सहमति बनानी है। तो ये अच्छा अवसर होगा भारत के लिए दूसरे मुल्क़ के नेताओं से तालमेल बनाने का, उनको अगले साल भारत आने का निमंत्रण देने का और अपनी बात आगे रखने का।"
 
क्या मुद्दे उठाएगा भारत?
जी20 सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीन अहम सत्रों में हिस्सा लेंगे। ये हैं- खाद्य और ऊर्जा सुरक्षा, डिजीटल ट्रांसफॉर्मेशन और स्वास्थ्य।
 
भारतीय प्रधानमंत्री दुनियाभर के नेताओं के साथ वैश्विक अर्थव्यवस्था, ऊर्जा, पर्यावरण कृषि और कई अन्य मुद्दों पर भी चर्चा करेंगे।
 
प्रोफ़ैसर स्वर्ण सिंह मानते हैं कि ये भारत के पास वैश्विक मुद्दों को अपनी सोच को दुनिया के सामने रखने का बड़ा मौका है। स्वर्ण सिंह कहते हैं, "भारत ने बहुत से मुद्दे उठाए हैं, जैसे इंटरनेशनल सोलर एलायंस की बात हो या प्रधानमंत्री ने पिछले साल ग्लासगो में जो लाइफस्टाइल फॉर इंविरॉनमेंट की बात की थी,तो भारत को एक मौका मिलता है कि इतने बड़े मंच से अपनी बात कहने का और उसको एक दिशानिर्देश देने का।" भारत अब अगले सम्मेलन की अध्यक्षता भी कर रहा है और भारत ही इसका एजेंडा तय करेगा।
 
भारत इस समय दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है दुनिया में सबसे तेज़ी से आगे बढ़ने वाले देशों में शामिल है।
 
प्रोफ़ेसर स्वर्ण सिंह कहते हैं कि भारत को अध्यता मिलना ना सिर्फ़ बड़ी बात है बल्कि अपनी सोच को सामने रखने का बड़ा अवसर भी है।
 
प्रोफ़ैसर स्वर्ण सिंह कहते हैं, "इस पूरे परिप्रेक्ष्य में भारत को इन बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के साथ जुड़कर पहले अपने राष्ट्रहित को साधने का मौका मिलता है । इसके साथ-साथ पूरे विश्व में वित्तीय सोच और वित्तीय तालमेल को किस तरह से बनाकर जो बड़ी समस्याएं हैं विश्व की, चाहे वो पर्यावरण को लेकर हो, ऊर्जा को लेकर हो, उनको कैसे सुलझाया जा सकता है, उस पर अपनी सोच सामने रखने और इन सभी अर्थव्यवस्थाओं को एक दिशानिर्देश देने का अच्छा अवसर मिलता है भारत को।"
 
किस किस से मिलेंगे मोदी?
तरराष्ट्रीय सम्मेलनों के दौरान वैश्विक नेताओं के एक दूसरे से द्विपक्षीय वार्ता करने का मौका भी मिलता है।
 
भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी बाली में कई नेताओं से मिल सकते हैं, हालांकि अभी तक किस-किस से उनकी मुलाक़ात तय है इसका एजेंडा तय नहीं है।
 
लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ब्रितानी प्रधानमंत्री ऋषि सुनक और फ़्रांस के राष्ट्रपति इमेनुअल मैक्रों से मुलाक़ात होगी। इसके अलावा सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान से भी प्रधानमंत्री मोदी की मुलाक़ात हो सकती है।
 
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन भी सम्मेलन में पहुंच रहे हैं, लेकिन नरेंद्र मोदी से उनकी मुलाक़ात होगी या नहीं, इस बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है।
 
इसी साल सितंबर में जब प्रधानमंत्री मोदी एससीओ (शंघाई कोऑपरेशन आर्गेनाइज़ेशन) के सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए समरकंद पहुंचे थे तब चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ उनकी द्विपक्षीय मुलाक़ात के क़यास लगाए गए थे। 
 
हालांकि दोनों नेताओं के बीच मुलाक़ात नहीं हुई थी। जी20 शिखर सम्मेलन के दौरान भी दोनों नेताओं के बीच किसी संभावित मुलाक़ात के बारे में अभी तक कोई जानकारी नहीं दी गई है।
 
तनावपूर्ण माहौल में हो रहा है सम्मेलन
इस साल का जी20 शिखर सम्मेलन विवादों और चुनौतियों के साये में हो रहा है। यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद से दुनियाभर में सुरक्षा चिंताएं बढ़ी हुई हैं और अर्थव्यवस्थाएं गिर रही हैं। यूक्रेन युद्ध की वजह से महंगाई भी बढ़ रही है, ख़ासकर तेल और खाद्य पदार्थों के दाम बढ़ रहे हैं।
 
सम्मेलन के दौरान अमेरिका और पश्चिमी सहयोगी देश बढ़ रही महंगाई, ख़ासकर तेल और खाद्य पदार्थों के बढ़ते दामों के लिए पुतिन को ज़िम्मेदार ठहराते हुए रूस पर यूक्रेन युद्ध समाप्त करने के लिए दबाव बना सकते हैं। 
 
रूस जी20 का अहम सदस्य देश है लेकिन इस साल रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन इस सम्मेलन में हिस्सा नहीं ले रहे हैं। उनकी जगह रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोफ़ शामिल हैं। 
 
वहीं यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की वीडियो लिंक के ज़रिए इस सम्मेलन को संबोधित करेंगे। रूस इससे भी नाराज़ हो सकता है। 
 
यूक्रेन युद्ध को लेकर भारत ने अभी तक रूस की आलोचना नहीं की है। ऐसे में अगर जी20 सम्मेलन में वैश्विक नेता प्रधानमंत्री मोदी पर रूस पर भारत के प्रभाव का इस्तेमाल करने का दवाब बनाएंगे तो भारत क्या रुख लेगा ये भी देखने की बात होगी।
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